विवादात्मक मुकदमेबाज़ी कितनी फायदेमंद? जस्टिस नरसिम्हा ने मध्यस्थता अपनाने की सलाह दी
सुप्रीम कोर्ट के जस्टिस पी. एस. नरसिम्हा ने बुधवार को लंबे समय से प्रचलित इस धारणा पर सवाल उठाया कि विवादात्मक (adversarial) न्याय प्रणाली ने भारत को हमेशा लाभ पहुँचाया है। उन्होंने कहा कि अब समय आ गया है कि यह ईमानदारी और गंभीरता से मूल्यांकन किया जाए कि इस प्रणाली ने वास्तव में न्याय व्यवस्था में कितना योगदान दिया है।
दिन की सुनवाई पूरी होने के बाद खुले अदालत में अपने विचार व्यक्त करते हुए जस्टिस नरसिम्हा ने कहा:
“हम इस गलतफहमी में जी रहे हैं कि विवादात्मक मुकदमेबाज़ी ने समाज का बहुत भला किया है। बहुत ईमानदारी से कहूँ तो हमें गंभीरता से जांच करनी चाहिए कि इससे कितनी अच्छाई हुई है। मुझे इस पर गंभीर संदेह है। यह प्रणाली बदलनी ही चाहिए।”
मध्यस्थता को मुख्य तंत्र बनाने की वकालत
जस्टिस नरसिम्हा ने जोर देकर कहा कि यदि विवाद निपटान के लिए मध्यस्थता (mediation) को न्याय प्रक्रिया के मूल तत्व के रूप में अपनाया जाए, तो इससे न्याय प्रणाली और मुकदमेबाज़ों—दोनों को—काफी लाभ होगा। उन्होंने कहा कि मध्यस्थता को वैकल्पिक व्यवस्था नहीं, बल्कि मुख्य संरचना के रूप में अपनाया जाना चाहिए।
उन्होंने कहा:
“बहुत अधिक लाभ मिलेगा यदि हम मध्यस्थता अपनाएँ।”
साथ ही उन्होंने सुझाव दिया कि निर्णयन (adjudication) और मध्यस्थता को साथ-साथ चलाया जा सकता है—
“हम बिना किसी रुकावट के मध्यस्थता और निर्णय—दोनों को एक साथ कर सकते हैं।”
अदालत के बाहर विवाद-निपटान संस्थाओं के धीमे विकास पर चिंता
जस्टिस नरसिम्हा ने यह भी कहा कि भारत में अर्बिट्रेशन और मेडिएशन अब भी असंगठित क्षेत्र (unorganised sector) हैं। उन्होंने सक्षम संस्थागत ढाँचे, प्रशिक्षित पेशेवरों और प्रणालीगत समर्थन की आवश्यकता बताई।
वकीलों को मध्यस्थ बनने का सुझाव
जस्टिस नरसिम्हा ने यह भी कहा कि वकीलों को भी मध्यस्थ की भूमिका निभानी चाहिए, लेकिन इसके लिए उन्हें कई चीज़ें “अनलर्न” करनी होंगी। उन्होंने अपने हालिया फैसले Raksha Devi v. Prakash Chand का हवाला दिया, जिसमें उन्होंने लिखा था:
“यदि वकीलों को मध्यस्थ के रूप में विकसित होना है—जो कि अनिवार्य रूप से होगा—तो उन्हें नई कौशल सीखने और विवाद समाधान के प्रति नया दृष्टिकोण अपनाने की जरूरत है, जो विवादात्मक मुकदमेबाज़ी से अलग हो।”
सिंघवी का समर्थन
सिनियर एडवोकेट डॉ. अभिषेक मनु सिंघवी ने जस्टिस नरसिम्हा की बात का समर्थन करते हुए कहा कि “सुनना (listening)” और “सुनवाई (hearing)” में अंतर है, और मध्यस्थता के लिए "सुनना" आवश्यक है।
SEBI–PACL मामले की सुनवाई के दौरान टिप्पणी
ये टिप्पणियाँ जस्टिस नरसिम्हा और जस्टिस चंदुरकर की खंडपीठ ने SEBI–PACL मामले से जुड़े आवेदनों की सुनवाई के दौरान कीं।
CJI का भी मध्यस्थता पर जोर
हाल ही में चीफ जस्टिस सूर्यकांत ने भी मध्यस्थता को बढ़ावा देते हुए कहा था कि मध्यस्थता को न्याय प्रणाली के लिए खतरे के रूप में नहीं देखा जाना चाहिए, बल्कि यह न्याय व्यवस्था को मजबूत करने का एक साधन है।