सिर्फ इसलिए घर नहीं गिराया जा सकता कि कोई आरोपी है: सुप्रीम कोर्ट बुलडोजर कार्रवाई पर दिशा-निर्देश तैयार करेगा

Update: 2024-09-02 08:42 GMT

सुप्रीम कोर्ट ने सोमवार (2 सितंबर) को अखिल भारतीय दिशा-निर्देश तैयार करने की मंशा जाहिर की, जिससे इस चिंता को दूर किया जा सके कि कई राज्यों में अधिकारी दंडात्मक कार्रवाई के तौर पर अपराध के आरोपी व्यक्तियों के घरों को गिराने का सहारा ले रहे हैं।

जस्टिस बीआर गवई और जस्टिस केवी विश्वनाथन की पीठ ने विभिन्न राज्यों में बुलडोजर कार्रवाई को चुनौती देने वाली याचिकाओं पर सुनवाई करते हुए पक्षों से मसौदा सुझाव प्रस्तुत करने को कहा, जिन पर अखिल भारतीय दिशा-निर्देश तैयार करने के लिए न्यायालय द्वारा विचार किया जा सके।

प्रस्ताव सीनियर एडवोकेट नचिकेता जोशी को सौंपे जाने हैं जिन्हें उन्हें एकत्रित करके न्यायालय के समक्ष प्रस्तुत करने को कहा गया है।

पीठ ने मामले को दो सप्ताह बाद सूचीबद्ध करते हुए कहा,

"हमें इस मुद्दे को अखिल भारतीय स्तर पर सुलझाने का प्रयास करना चाहिए।"

सुनवाई के दौरान पीठ ने मौखिक रूप से सजा के तौर पर घर गिराने के बारे में चिंता व्यक्त की।

जस्टिस गवई ने कहा,

"सिर्फ इसलिए घर कैसे गिराया जा सकता है, क्योंकि वह आरोपी है? अगर वह दोषी भी है तो भी घर नहीं गिराया जा सकता।"

जस्टिस गवई ने कहा कि न्यायालय अनधिकृत निर्माणों की रक्षा नहीं करेगा, लेकिन उन्होंने कहा कि कुछ दिशा-निर्देश आवश्यक हैं।

जस्टिस विश्वनाथन ने कहा,

"कुछ दिशा-निर्देश क्यों नहीं बनाए जा सकते? इसे सभी राज्यों में लागू किया जाना चाहिए। इसे सुव्यवस्थित करने की आवश्यकता है।"

जस्टिस गवई ने कहा कि अगर निर्माण अनधिकृत भी है तो भी कानून के अनुसार प्रक्रिया के अनुसार विध्वंस किया जा सकता है।

जस्टिस विश्वनाथन ने कहा,

"एक पिता का बेटा अड़ियल हो सकता है, लेकिन अगर इस आधार पर घर गिराया जाता है तो यह कोई तरीका नहीं है।"

उत्तर प्रदेश राज्य की ओर से पेश सॉलिसिटर जनरल तुषार मेहता ने कहा कि राज्य का रुख उसके हलफनामे से स्पष्ट है, जिसमें कहा गया कि केवल इसलिए कि किसी व्यक्ति पर किसी अपराध में शामिल होने का आरोप है, उसे ध्वस्त करने का आधार नहीं बनाया जा सकता।

हलफनामे से एसजी ने पढ़ा,

"किसी भी अचल संपत्ति को इसलिए ध्वस्त नहीं किया जा सकता, क्योंकि मालिक/कब्जाधारी अपराध में शामिल है।"

एसजी ने कहा कि यूपी सरकार के खिलाफ दायर याचिका में उल्लिखित मामलों में उल्लंघन के लिए व्यक्तियों को नोटिस भेजे गए। उन्होंने कोई जवाब नहीं दिया, इसलिए नगर निगम कानूनों में प्रक्रिया का पालन करते हुए अनधिकृत निर्माण को ध्वस्त कर दिया गया।

जमीयत उलेमा-ए-हिंद की ओर से पेश सीनियर एडवोकेट दुष्यंत दवे ने कहा कि अप्रैल 2022 में दंगों के तुरंत बाद दिल्ली के जहांगीरपुरी में कई लोगों के घरों को इस आरोप में ध्वस्त कर दिया गया कि उन्होंने दंगे भड़काए थे।

सीनियर एडवोकेट चंदर उदय सिंह ने उदयपुर के मामले का हवाला दिया, जहां व्यक्ति का घर इसलिए ध्वस्त कर दिया गया, क्योंकि किराएदार के बेटे पर अपराध का आरोप था।

मामले से अलग होने से पहले न्यायालय ने भारतीय महिला राष्ट्रीय महासंघ द्वारा दायर हस्तक्षेप आवेदन को भी अनुमति दे दी। महासंघ का प्रतिनिधित्व एडवोकेट निज़ाम पाशा और रश्मि सिंह कर रहे हैं।

मामले की पृष्ठभूमि

दिल्ली के जहांगीरपूरी में अप्रैल 2022 में निर्धारित विध्वंस अभियान से संबंधित 2022 में सुप्रीम कोर्ट के समक्ष याचिकाओं का समूह दायर किया गया था। अभियान को अंततः रोक दिया गया था लेकिन याचिकाकर्ताओं ने यह घोषित करने के लिए प्रार्थना की थी कि अधिकारी दंड के रूप में बुलडोजर कार्रवाई का सहारा नहीं ले सकते।

इनमें से एक याचिका पूर्व राज्यसभा सांसद और CPI (M) नेता वृंदा करात द्वारा दायर की गई थी, जिसमें अप्रैल में शोभा यात्रा जुलूसों के दौरान सांप्रदायिक हिंसा के बाद जहांगीरपुरी क्षेत्र में तत्कालीन उत्तरी दिल्ली नगर निगम द्वारा किए गए विध्वंस को चुनौती दी गई।

सितंबर 2023 में जब मामले की सुनवाई हुई तो सीनियर एडवोकेट दुष्यंत दवे (कुछ याचिकाकर्ताओं की ओर से पेश हुए) ने राज्य सरकारों द्वारा अपराध के आरोपी लोगों के घरों को ध्वस्त करने की बढ़ती प्रवृत्ति पर चिंता व्यक्त की उन्होंने इस बात पर ज़ोर दिया कि घर का अधिकार संविधान के अनुच्छेद 21 के तहत जीवन के अधिकार का एक पहलू है।

उन्होंने यह भी आग्रह किया कि न्यायालय को ध्वस्त किए गए घरों के पुनर्निर्माण का आदेश देना चाहिए।

केस टाइटल- जमीयत उलमा आई हिंद बनाम उत्तरी दिल्ली नगर निगम | रिट याचिका (सिविल) संख्या 295/2022 (और इससे जुड़े मामले)

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