धर्मांतरण विरोधी कानून लाने की प्रक्रिया में : राजस्थान सरकार ने सुप्रीम कोर्ट को बताया
राजस्थान राज्य ने सुप्रीम कोर्ट को सूचित किया कि वह धर्मांतरण विरोधी कानून बनाने की प्रक्रिया में है। धोखाधड़ी और बलपूर्वक धर्मांतरण को रोकने की मांग करने वाली जनहित याचिका के जवाब में दायर हलफनामे में राज्य ने प्रस्तुत किया कि उसके पास धर्मांतरण से निपटने के लिए कोई विशिष्ट कानून नहीं है।
हालांकि, राज्य ने प्रस्तुत किया कि वह "अपना स्वयं का कानून लाने की प्रक्रिया में है और तब तक इस विषय पर कानून और सुप्रीम कोर्ट द्वारा जारी दिशा-निर्देशों का सख्ती से पालन करेगा।"
यह याचिका भारतीय जनता पार्टी (BJP) सदस्य एडवोकेट अश्विनी उपाध्याय ने 2022 में दायर की, जिसमें केंद्र और राज्यों को "धोखाधड़ी से धर्मांतरण और डराने, धमकाने, उपहार और मौद्रिक लाभों के माध्यम से धोखे से धर्मांतरण को नियंत्रित करने के लिए कड़े कदम उठाने के निर्देश देने की मांग की गई।"
नवंबर 2022 में याचिका पर विचार करते हुए जस्टिस एमआर शाह और जस्टिस हिमा कोहली की खंडपीठ ने यह देखते हुए कि यदि बलपूर्वक धर्म परिवर्तन सच है, तो यह "गंभीर मुद्दा" है, जो राष्ट्र की सुरक्षा को प्रभावित कर सकता है, केंद्र से जवाब मांगा था। न्यायालय ने राज्यों से भी जवाब मांगा था।
न्यायालय ने याचिका में याचिकाकर्ता द्वारा दिए गए कुछ बयानों पर भी आपत्ति जताई जो अल्पसंख्यक धर्मों के लिए अपमानजनक थे और उन्हें हटाने के लिए कहा। न्यायालय ने याचिकाकर्ता का नाम भी कॉजटाइल से हटा दिया और इसे "इन री: द इश्यू ऑफ रिलीजियस कन्वर्जन" में बदल दिया।
इस याचिका के साथ न्यायालय ने अन्य जनहित याचिकाओं को भी टैग किया, जो धार्मिक रूपांतरण के संबंध में उत्तर प्रदेश, मध्य प्रदेश, हरियाणा, गुजरात आदि राज्यों द्वारा पारित कानूनों को चुनौती देते हुए दायर की गईं।
हाल ही में, अन्य मामले की सुनवाई करते हुए सुप्रीम कोर्ट की पीठ ने मौखिक रूप से टिप्पणी की कि यूपी धर्मांतरण विरोधी कानून के कुछ हिस्से धार्मिक स्वतंत्रता की गारंटी देने वाले संविधान के अनुच्छेद 25 का उल्लंघन करते प्रतीत होते हैं।
केस टाइटल: धार्मिक रूपांतरण के मुद्दे पर WP(C) नंबर 63/2022]