न्यायिक कार्रवाई के लिए हाईकोर्ट न्यायिक अधिकारी से स्पष्टीकरण नहीं मांग सकता : सुप्रीम कोर्ट

Update: 2024-12-18 04:38 GMT

राजस्थान हाईकोर्ट द्वारा जिला एवं सेशन जज के विरुद्ध की गई प्रतिकूल टिप्पणियों को खारिज करते हुए सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि हाईकोर्ट किसी मामले में लिए गए निर्णय के लिए न्यायिक अधिकारी से स्पष्टीकरण नहीं मांग सकता।

हाईकोर्ट ने कहा कि स्पष्टीकरण केवल प्रशासनिक पक्ष से ही मांगा जा सकता है।

जस्टिस अभय एस ओक और जस्टिस ऑगस्टीन जॉर्ज मसीह की खंडपीठ न्यायिक अधिकारी द्वारा दायर याचिका पर सुनवाई कर रही थी, जो राजस्थान हाईकोर्ट द्वारा उसके विरुद्ध की गई कुछ प्रतिकूल टिप्पणियों से व्यथित था। हाईकोर्ट ने पाया कि न्यायिक अधिकारी ने जमानत आवेदन खारिज करते समय हाईकोर्ट के पिछले निर्णय के अनुसार अभियुक्त के आपराधिक इतिहास का विवरण शामिल नहीं किया। हाईकोर्ट ने पाया कि यह "अनुशासनहीनता" के बराबर है और "अवमानना ​​के बराबर भी हो सकता है" और उससे स्पष्टीकरण मांगा।

विवादित आदेश में हाईकोर्ट के एकल जज ने न्यायिक अधिकारी के खिलाफ कड़ी टिप्पणियां कीं, जिसमें कहा गया कि वह न्यायिक अनुशासनहीनता के लिए उत्तरदायी है। आवश्यक कार्रवाई के लिए मामले की ओर हाईकोर्ट के चीफ जस्टिस का ध्यान आकर्षित किया।

हाईकोर्ट की कार्रवाई पर सुप्रीम कोर्ट ने बहुत आपत्ति जताई। सबसे पहले सुप्रीम कोर्ट ने माना कि अभियुक्त के पूर्ववृत्त को शामिल करने के लिए जारी किए गए निर्देशों को अनिवार्य नहीं माना जा सकता।

न्यायालय ने कहा,

"यदि हाईकोर्ट यह निर्देश देता है कि प्रत्येक जमानत आदेश में चार्ट को एक विशेष प्रारूप में शामिल किया जाना चाहिए तो यह ट्रायल कोर्ट को दिए गए विवेक में हस्तक्षेप होगा।"

दूसरे, न्यायालय ने न्यायिक कार्रवाई के लिए न्यायाधीश से स्पष्टीकरण मांगने वाले हाईकोर्ट को अस्वीकार कर दिया।

जस्टिस ओक द्वारा लिखे गए निर्णय में कहा गया,

"हम यह समझने में विफल हैं कि अपीलकर्ता ने अनुच्छेद 9 में शामिल सुझाव का पालन न करके अनुशासनहीनता या अवमानना ​​का कार्य कैसे किया। दूसरे, यह मानते हुए भी कि अपीलकर्ता अनुशासनहीनता का दोषी था, न्यायिक पक्ष में उच्च न्यायालय को न्यायिक अधिकारी से स्पष्टीकरण मांगने का आदेश पारित नहीं करना चाहिए था। न्यायिक आदेश द्वारा न्यायिक अधिकारी से स्पष्टीकरण मांगने का निर्देश अनुचित था। न्यायिक अधिकारी से स्पष्टीकरण केवल प्रशासनिक पक्ष से ही मांगा जा सकता है।"

निर्णय में कहा गया,

"अपीलकर्ता को जवाब देने के लिए मजबूर किया गया और उसके पास जवाब प्रस्तुत करके माफ़ी मांगने के अलावा कोई विकल्प नहीं बचा। हाईकोर्ट के प्रति अत्यंत सम्मान के साथ इस तरह का अभ्यास करना हाईकोर्ट के बहुमूल्य न्यायिक समय की बर्बादी थी, जिसमें बहुत अधिक मामले लंबित हैं।"

न्यायालय ने सोनू अग्निहोत्री बनाम चंद्रशेखर के हालिया निर्णय का हवाला दिया, जिसमें हाईकोर्ट के जजों को न्यायिक अधिकारियों की व्यक्तिगत आलोचना से बचने की सलाह दी गई।

सोनू अग्निहोत्री मामले में न्यायालय ने कहा,

"गलत आदेशों की आलोचना करने और न्यायिक अधिकारी की आलोचना करने में अंतर है। पहला भाग अनुमेय है। आलोचना की दूसरी श्रेणी से बचना ही बेहतर है।"

तदनुसार, न्यायिक अधिकारी के खिलाफ प्रतिकूल टिप्पणियों को हटा दिया गया। न्यायालय ने यह भी माना कि ऐसी टिप्पणियां प्रशासनिक पक्ष के अधिकारी के खिलाफ किसी कार्रवाई का आधार नहीं हो सकतीं।

केस टाइटल: अय्यूब खान बनाम राजस्थान राज्य

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