बलात्कार के अपराधों, SC/ST Act के मामलों में जमानत देने से पहले शिकायतकर्ता/पीड़ित की सुनवाई अनिवार्य : सुप्रीम कोर्ट
आपराधिक कार्यवाही में पीड़ित की भागीदारी के महत्व की पुष्टि करते हुए सुप्रीम कोर्ट ने हाल ही में गंभीर अपराधों के आरोपी एक व्यक्ति को दी गई जमानत रद्द की, जहां जमानत की कार्यवाही पीड़िता की अनुपस्थिति में की गई।
जस्टिस बेला एम. त्रिवेदी और जस्टिस सतीश चंद्र शर्मा की खंडपीठ ने इलाहाबाद हाईकोर्ट के उस आदेश के खिलाफ पीड़ित द्वारा दायर आपराधिक अपील पर सुनवाई की, जिसमें आरोपी को जमानत दी गई, जिसने न तो पीड़िता को जमानत आवेदन में पक्ष बनाया था, न ही सरकारी वकील ने पीड़िता या उसके प्रतिनिधि को हाईकोर्ट के समक्ष कार्यवाही के बारे में सूचित किया।
न्यायालय ने कानून के अनिवार्य प्रावधानों का पालन किए बिना जमानत आवेदन पर लापरवाही से निर्णय लेने के हाईकोर्ट के निर्णय को अस्वीकार किया। न्यायालय ने तर्क दिया कि गंभीर अपराध के आरोपी की जमानत अर्जी की सावधानीपूर्वक जांच की आवश्यकता है, इसलिए पीड़िता को कार्यवाही के बारे में सूचित न करना, जिसके कारण वह जमानत की सुनवाई के दौरान उपस्थित नहीं हो सकी, सीआरपीसी की धारा 439(1ए) और SC/ST Act की धारा 15ए(3) के तहत मुकदमे में भाग लेने के उसके अधिकार का उल्लंघन है।
न्यायालय ने टिप्पणी की,
“इस मामले में प्रतिवादियों के कहने पर CrPC की धारा 439(1ए) और SC/ST Act की धारा 15ए(3) में निहित उक्त वैधानिक प्रावधानों का घोर उल्लंघन किया गया। हाईकोर्ट ने भी अपने आदेश में दोनों अधिनियमों की उक्त अनिवार्य आवश्यकता पर विचार नहीं किया और संबंधित प्रतिवादियों को बहुत ही लापरवाही और सरसरी तरीके से और कोई ठोस कारण बताए बिना जमानत दे दी है, जबकि संबंधित प्रतिवादी प्रथम दृष्टया बहुत गंभीर अपराध में शामिल हैं।”
आरोपी पर आईपीसी की धारा 376डीए और POCSO Act, 2012 की धारा 5(जी) और 6 तथा अनुसूचित जाति और अनुसूचित जनजाति (अत्याचार निवारण) अधिनियम, 1989 (SC/ST Act) की धारा 3(2) और 5(ए) के तहत अपराध दर्ज हैं।
आईपीसी की धारा 376 की उपधारा (3) या धारा 376एबी या धारा 376डीए या धारा 376डीबी के तहत दंडनीय अपराधों में सुनवाई के लिए सीआरपीसी की धारा 439(1ए) के तहत व्यक्ति को जमानत के लिए आवेदन की सुनवाई के समय सूचना देने वाले या उसके द्वारा अधिकृत किसी व्यक्ति की उपस्थिति अनिवार्य होगी।
इसके अलावा SC/ST Act की धारा 15ए (3) में यह अनिवार्य किया गया,
“पीड़ित या उसके आश्रित को किसी भी न्यायालय की कार्यवाही, जिसमें कोई जमानत कार्यवाही भी शामिल है, की उचित, सटीक और समय पर सूचना पाने का अधिकार होगा और विशेष लोक अभियोजक या राज्य सरकार इस अधिनियम के तहत किसी भी कार्यवाही के बारे में पीड़ित को सूचित करेगी।”
न्यायालय ने कहा,
“यह ध्यान देने योग्य है कि सीआरपीसी की धारा 439(1ए) के अनुसार, आईपीसी की धारा 376 की उपधारा (3) या धारा 376एबी या धारा 376डीए या धारा 376डीबी के तहत व्यक्ति को जमानत के लिए आवेदन की सुनवाई के समय सूचना देने वाले या उसके द्वारा अधिकृत किसी व्यक्ति की उपस्थिति अनिवार्य है। इसी प्रकार, राज्य सरकार के विशेष लोक अभियोजक के लिए भी अनुसूचित जाति एवं अनुसूचित जनजाति (अत्याचार निवारण) अधिनियम, 1989 की धारा 15ए की उपधारा (3) में उल्लिखित जमानत कार्यवाही सहित न्यायालय की कार्यवाही के बारे में पीड़ित को सूचित करना अनिवार्य है।”
यह देखते हुए कि “संबंधित प्रतिवादियों – अभियुक्तों ने हाईकोर्ट के समक्ष उनके द्वारा दायर जमानत कार्यवाही में वर्तमान अपीलकर्ता को पक्षकार – प्रतिवादी के रूप में शामिल नहीं किया और संबंधित लोक अभियोजक ने भी अपीलकर्ता – पीड़ित को उक्त कार्यवाही के बारे में सूचित नहीं किया था”, न्यायालय ने अपील को स्वीकार कर लिया।
“इन परिस्थितियों में हमारा मत है कि हाईकोर्ट द्वारा सीआरपीसी के साथ-साथ SC/ST Act में निहित अनिवार्य प्रावधानों की पूरी तरह से अवहेलना करते हुए पारित किए गए विवादित आदेश निरस्त किए जाने योग्य हैं और इन्हें निरस्त किया जाता है। संबंधित प्रतिवादी यानी खरगेश उर्फ गोलू, पुत्र मुकेश कुमार और करण, पुत्र परमहंस सिंह को 30.12.2024 को या उससे पहले ट्रायल कोर्ट के समक्ष आत्मसमर्पण करना होगा।
केस टाइटल: X बनाम उत्तर प्रदेश राज्य और अन्य