सारांश 128 पृष्ठों का नहीं हो सकता! सारांश को छोटा किया जाए: सुप्रीम कोर्ट ने रजिस्ट्री से कहा
सुप्रीम कोर्ट ने एक याचिका के सारांश को 128 पृष्ठों में होने पर आश्चर्य व्यक्त किया। चूंकि याचिका पक्षकार द्वारा व्यक्तिगत रूप से दायर की गई, इसलिए कोर्ट ने कहा कि रजिस्ट्री को वादी को सारांश को छोटा करने की सलाह देनी चाहिए।
जस्टिस सुधांशु धूलिया और जस्टिस अहसानुद्दीन अमानुल्लाह की पीठ ने टिप्पणी की
"अपीलकर्ता जो व्यक्तिगत रूप से उपस्थित हुआ है, उसने 128 पृष्ठों का सारांश दायर किया है जिसमें बहुत से विवरण हैं, जिनमें से अधिकांश हमारे उद्देश्यों के लिए प्रासंगिक नहीं हैं। हम समझते हैं कि अपीलकर्ता प्रशिक्षित वकील नहीं है लेकिन रजिस्ट्री को अपीलकर्ता से सारांश को छोटा करने के लिए कहना चाहिए था। सारांश 128 पृष्ठों का नहीं हो सकता!"
अपीलकर्ता ने इलाहाबाद हाईकोर्ट के उस आदेश के खिलाफ सुप्रीम कोर्ट का दरवाजा खटखटाया, जिसमें अपीलकर्ता की धारा 125 CrPC याचिका को उसके मूल नंबर पर बहाल किया गया था। फैमिली कोर्ट को कानून के अनुसार मामले का फैसला करने का निर्देश दिया गया।
सुप्रीम कोर्ट ने टिप्पणी की,
"हमें इस बात का कोई कारण नहीं दिखता कि हमें उपरोक्त आदेश में हस्तक्षेप क्यों करना चाहिए। उक्त आदेश अपीलकर्ता के पक्ष में है। इसके अलावा इसने केवल फैमिली कोर्ट आगरा को मामले को नए सिरे से तय करने का निर्देश दिया, जिसे पहले फैमिली कोर्ट आगरा ने गैर-अभियोजन के लिए खारिज कर दिया। अपीलकर्ता ने फैमिली कोर्ट आगरा के समक्ष उपस्थित होने के बजाय सीधे इस न्यायालय के समक्ष हाईकोर्ट के इस आदेश को चुनौती दी है, जिसे हम उचित नहीं मानते हैं।”
टाइटल: दीप्ति शर्मा बनाम उत्तर प्रदेश राज्य