Fake Encounter Case | सुप्रीम कोर्ट ने विधानसभा चुनाव लड़ने के लिए मुंबई के पूर्व पुलिस अधिकारी प्रदीप शर्मा की सजा निलंबित करने से इनकार किया

Update: 2024-08-06 04:55 GMT

सुप्रीम कोर्ट ने फर्जी मुठभेड़ मामले में मुंबई पुलिस के पूर्व एनकाउंटर स्पेशलिस्ट प्रदीप शर्मा की सजा निलंबित करने से इनकार किया।

यह आवेदन शर्मा द्वारा दायर की गई अपील में हाल ही में बॉम्बे हाईकोर्ट द्वारा उन्हें आजीवन कारावास की सजा सुनाए जाने के आदेश को चुनौती देते हुए दायर किया गया।

जस्टिस हृषिकेश रॉय और जस्टिस प्रशांत कुमार मिश्रा की बेंच ने अप्रैल में उनकी याचिका पर महाराष्ट्र राज्य को नोटिस जारी किया। इसके अलावा बेंच ने शर्मा को अगली सुनवाई तक सरेंडर करने से छूट देकर अंतरिम राहत दी थी।

महाराष्ट्र में आगामी चुनावों के मद्देनजर निलंबन की मांग की गई, जहां याचिकाकर्ता चुनाव लड़ना चाहता था। हालांकि, बेंच ने आवेदन पर विचार करने से मना कर दिया। अंत में याचिकाकर्ता की ओर से सीनियर एडवोकेट मुकुल रोहतगी ने आवेदन वापस ले लिया।

यह हत्या वर्ष 2006 की है और यह गैंगस्टर छोटा राजन के कथित पूर्व सहयोगी लखन भैया से संबंधित है। ट्रायल कोर्ट के बरी करने के फैसले को पलटते हुए जस्टिस रेवती मोहिते डेरे और जस्टिस गौरी गोडसे की हाईकोर्ट बेंच ने कहा कि ट्रायल जज ने सभी परिस्थितियों को "अनदेखा" किया।

इसके अलावा, कोर्ट ने बरी करने के निष्कर्ष को "विकृत" और "अस्थिर" भी कहा, क्योंकि इसने प्रासंगिक सामग्री को अनदेखा किया और बाहर रखा।

कोर्ट ने कहा,

"परिस्थितियां प्रदीप शर्मा के अपराध की ओर इशारा करती हैं।"

संक्षिप्त तथ्यात्मक पृष्ठभूमि

वाशी निवासी लखन भैया (33), जिनका असली नाम रामनारायण गुप्ता था, कथित तौर पर एक पूर्व गैंगस्टर थे, उनका 11 नवंबर, 2006 को वर्सोवा में फर्जी पुलिस गोलीबारी में अपहरण कर लिया गया और उनकी हत्या कर दी गई। विशेष जांच दल (SIT) ने आरोप लगाया कि मुठभेड़ का नेतृत्व पूर्व सीनियर निरीक्षक प्रदीप शर्मा ने किया, जिन्होंने लखन भैया के असंतुष्ट व्यापारिक साझेदार के साथ मिलकर उन्हें मारने की साजिश रची थी।

हालांकि, जुलाई 2013 में मुख्य आरोपी प्रदीप शर्मा को बरी कर दिया गया, जबकि तीन अन्य पुलिसकर्मियों - इंस्पेक्टर प्रदीप सूर्यवंशी, दिलीप पलांडे और कांस्टेबल तानाजी देसाई - उनको हत्या का दोषी ठहराया गया। शेष 18 आरोपियों को मुठभेड़ में मदद करने का दोषी ठहराया गया।

मामले में अभियोजन पक्ष के 100 गवाहों और बचाव पक्ष के दो गवाहों की जांच की गई। ट्रायल कोर्ट ने बैलिस्टिक रिपोर्ट पर विश्वास नहीं किया, जिसमें दिखाया गया कि लखन भैया के सिर से बरामद गोली शर्मा की बंदूक से चलाई गई।

मुकदमे के दौरान अभियोजन पक्ष को भी बड़ा झटका लगा, जब एकमात्र चश्मदीद गवाह अनिल भेड़ा - जिसे पीड़ित के साथ अगवा किया गया, 2011 में अदालत में गवाही देने से कुछ दिन पहले गायब हो गया। उसका सड़ा हुआ शव दो महीने बाद मिला। लखन भैया के भाई रामप्रसाद गुप्ता ने शर्मा को बरी किए जाने के खिलाफ अपील दायर की और मुठभेड़ दल का हिस्सा रहे 12 पुलिस अधिकारियों के लिए मौत की सजा की मांग की। हालांकि, हाईकोर्ट ने शर्मा को आजीवन कारावास की सजा सुनाते हुए 13 दोषियों की आजीवन कारावास की सजा बरकरार रखा और छह नागरिकों को बरी किया।

अदालत ने 2011 में गवाही से कुछ दिन पहले एकमात्र चश्मदीद गवाह अनिल भेड़ा की “भयानक” मौत पर भी दुख जताया और इसे “शर्मनाक” और “न्याय का उपहास” कहा कि मुख्य गवाह की जान चली गई, लेकिन आज तक किसी पर भी मामला दर्ज नहीं किया गया। इसने उम्मीद जताई कि भेड़ा के अपराधियों पर मुकदमा चलाया जाएगा।

शर्मा 1983 बैच के महाराष्ट्र पुलिस अधिकारी हैं, जिन पर 25 साल की पुलिस सेवा में 112 गैंगस्टरों को मारने का आरोप है। उन्हें पहली बार 2008 में संविधान के दुर्लभ अधिनियम के तहत अंडरवर्ल्ड से उनके संबंधों और 3,000 करोड़ रुपये से अधिक की संपत्ति जमा करने के आरोपों के लिए बर्खास्त किया गया।

2009 में उन्हें इन आरोपों से मुक्त कर दिया गया और उन्हें इंस्पेक्टर के पद पर बहाल कर दिया गया, लेकिन जनवरी 2010 में लखन भैया हत्याकांड के सिलसिले में उन्हें गिरफ़्तार किया गया और फिर से बर्खास्त कर दिया गया। 2013 में बरी होने के बाद शर्मा को 2021 में एंटीलिया बम कांड और मनसुख हिरन हत्या मामले में फिर से गिरफ़्तार किया गया।

हालांकि, पिछले साल सुप्रीम कोर्ट ने शर्मा को ज़मानत दे दी थी।

केस टाइटल: प्रदीप रामेश्वर शर्मा बनाम महाराष्ट्र राज्य, डायरी नंबर 13604-2024

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