प्रवर्तन निदेशालय (ED) ने झारखंड हाईकोर्ट के उस आदेश को चुनौती देते हुए सुप्रीम कोर्ट का दरवाजा खटखटाया, जिसके तहत झारखंड के पूर्व मुख्यमंत्री हेमंत सोरेन को कथित भूमि घोटाले से संबंधित मनी लॉन्ड्रिंग मामले में जमानत दी गई थी।
गौरतलब है कि इस साल 31 जनवरी को गिरफ्तार किए गए सोरेन पर अवैध खनन मामले के साथ-साथ राज्य की राजधानी रांची में कथित भूमि घोटाले के संबंध में मनी लॉन्ड्रिंग के आरोपों की जांच की जा रही है। ED दोनों मामलों की जांच कर रहा है और उसका तर्क है कि लगभग 8.5 एकड़ संपत्ति अपराध की आय है। इसने सोरेन पर अनधिकृत कब्जे और उपयोग का आरोप लगाया है।
जांच एजेंसी ने इन आय के अधिग्रहण, कब्जे और उपयोग में सोरेन की प्रत्यक्ष भागीदारी का आरोप लगाया, उन पर भानु प्रताप प्रसाद सहित अन्य लोगों के साथ मिलीभगत करने का आरोप लगाया, जो अर्जित संपत्ति को बेदाग दिखाने के लिए मूल रिकॉर्ड को छुपा रहे थे।
लोकसभा चुनाव 2024 से पहले सोरेन ने अंतरिम जमानत के लिए सुप्रीम कोर्ट का दरवाजा खटखटाया था, लेकिन उनकी याचिका पर विचार नहीं किया गया। गर्मियों की छुट्टियों के दौरान, सुप्रीम कोर्ट की वेकेशन बेंच ने ED की गिरफ्तारी को चुनौती देने वाली उनकी याचिका पर विचार करने से इनकार किया। बेंच ने मौखिक रूप से टिप्पणी की कि उन्होंने ईडी द्वारा दायर शिकायत पर विशेष अदालत द्वारा संज्ञान लेने से संबंधित तथ्यों का खुलासा नहीं किया है। इसी के कारण याचिका वापस ले ली गई।
इसके तुरंत बाद सोरेन ने जमानत के लिए झारखंड हाईकोर्ट का दरवाजा खटखटाया। पक्षकारों को सुनने और रिकॉर्ड को देखने के बाद हाईकोर्ट ने सोरेन के पक्ष में फैसला सुनाया, यह देखते हुए कि उन्हें संबंधित भूमि के कब्जे से सीधे जोड़ने वाला कोई सबूत नहीं है और ED के बयान (कि उसके हस्तक्षेप ने भूमि के अवैध कब्जे को रोका) अस्पष्ट है।
हाईकोर्ट ने आगे कहा कि सोरेन के मामले में PMLA Act की धारा 45 के तहत दोहरी शर्तें पूरी होती हैं और इसलिए उन्हें रिहा किया जाना चाहिए।
हाईकोर्ट ने कहा,
"व्यापक संभावनाओं के आधार पर मामले का समग्र परिप्रेक्ष्य विशेष रूप से या अप्रत्यक्ष रूप से याचिकाकर्ता को शांति नगर, बारागैन, रांची में 8.86 एकड़ भूमि के अधिग्रहण और कब्जे के साथ-साथ "अपराध की आय" से जुड़े मामले में शामिल नहीं बताता है। किसी भी रजिस्टर/राजस्व रिकॉर्ड में याचिकाकर्ता की उक्त भूमि के अधिग्रहण और कब्जे में प्रत्यक्ष भागीदारी की छाप नहीं है। इस न्यायालय द्वारा दर्ज किए गए निष्कर्षों का परिणाम PMLA Act की धारा 45 के अनुसार इस शर्त को पूरा करता है कि "यह मानने का कारण" है कि याचिकाकर्ता कथित अपराध का दोषी नहीं है।"
यह भी नोट किया गया कि आरोपी-भानु प्रताप प्रसाद के परिसर से बरामद कई रजिस्टरों और राजस्व रिकॉर्ड में सोरेन या उनके परिवार के सदस्यों का नाम नहीं है। इस आदेश से व्यथित होकर ED ने सुप्रीम कोर्ट का दरवाजा खटखटाया और दावा किया कि हाईकोर्ट का आदेश "अवैध" है और वह यह नहीं कह सकता कि सोरेन के खिलाफ प्रथम दृष्टया कोई सबूत नहीं है।