सुप्रीम कोर्ट ने B.Sc (पॉलिमर केमिस्ट्री) के B.Sc (केमिस्ट्री) के बराबर नहीं होने की पुष्टि की

Update: 2024-08-07 05:13 GMT

सुप्रीम कोर्ट ने केरल हाईकोर्ट के उस निर्णय की पुष्टि की, जिसमें कहा गया कि केरल लोक सेवा आयोग द्वारा 2008 में जारी अधिसूचना के अनुसार भौतिक विज्ञान के लिए हाई स्कूल शिक्षक के पद पर भर्ती के लिए B.Sc (पॉलिमर केमिस्ट्री) की डिग्री को B.Sc (केमिस्ट्री) के बराबर नहीं माना जा सकता।

न्यायालय ने कहा कि यह भर्ती प्राधिकारी को बताना है कि किसी विशेष योग्यता को निर्धारित योग्यता के बराबर माना जाना चाहिए या नहीं।

2008 में केपीएससी ने हाई स्कूल सहायक (भौतिक विज्ञान) के लिए एक भर्ती अधिसूचना जारी की। निर्धारित योग्यता यह थी कि उम्मीदवार के पास भौतिक विज्ञान में बीएड डिग्री और भौतिकी/रसायन विज्ञान/गृह विज्ञान में बीएससी होनी चाहिए।

अपीलकर्ता, जिसके पास B.Sc (पॉलिमर केमिस्ट्री) और B.Ed (फिजिकल साइंस) की डिग्री है, उसने परीक्षा के लिए आवेदन किया। उसे इस आधार पर मेरिट सूची से बाहर कर दिया गया कि वह आवश्यक योग्यता मानदंडों को पूरा नहीं करती। हालांकि, उसने कालीकट यूनिवर्सिटी से सर्टिफिकेट प्रस्तुत किया कि B.Sc (पॉलिमर केमिस्ट्री) B.Sc (केमिस्ट्री) के बराबर है, लेकिन इसे स्वीकार नहीं किया गया।

व्यथित होकर अपीलकर्ता ने केरल प्रशासनिक न्यायाधिकरण का दरवाजा खटखटाया, जिसने 2012 में उसका आवेदन खारिज कर दिया। उसी वर्ष केरल हाईकोर्ट ने भी केएटी के फैसले के खिलाफ दायर उसकी याचिका खारिज कर दी।

सुप्रीम कोर्ट ने मंगलवार को हाईकोर्ट और केएटी के फैसलों की पुष्टि की।

जस्टिस हिमा कोहली और जस्टिस संदीप मेहता की खंडपीठ ने जहूर अहमद राथर और अन्य बनाम शेख इम्तियाज अहमद और अन्य (2019) में मिसाल का हवाला दिया, जिसमें कहा गया कि न्यायिक समीक्षा न तो निर्धारित योग्यता के दायरे का विस्तार कर सकती है और न ही किसी अन्य दी गई योग्यता के साथ निर्धारित योग्यता की समानता तय कर सकती है।

जस्टिस मेहता द्वारा लिखित निर्णय में कहा गया,

"इसलिए योग्यता की समतुल्यता ऐसा मामला नहीं है, जिसे न्यायिक पुनर्विचार की शक्ति के प्रयोग में निर्धारित किया जा सके। किसी विशेष योग्यता को समतुल्य माना जाना चाहिए या नहीं, यह राज्य का मामला है, जो भर्ती करने वाले प्राधिकारी के रूप में निर्धारित करता है।"

उन्नीकृष्णन सी.वी. एवं अन्य बनाम भारत संघ 2023 लाइव लॉ (एस.सी.) 256 के निर्णय पर भी भरोसा किया गया, जिसमें कहा गया कि समतुल्यता एक तकनीकी शैक्षणिक मामला है, इसे निहित या ग्रहण नहीं किया जा सकता।

न्यायालय ने कहा,

"समतुल्यता से संबंधित यूनिवर्सिटी के शैक्षणिक निकाय का कोई भी निर्णय विशिष्ट आदेश या संकल्प द्वारा, विधिवत प्रकाशित होना चाहिए।"

न्यायालय ने उन्नीकृष्णन सी.वी. के निर्णय के आलोक में अपीलकर्ता के समतुल्यता का दावा खारिज कर दिया।

न्यायालय ने आगे कहा,

"उपर्युक्त उदाहरणों से उत्पन्न कानून के स्थापित सिद्धांतों के मद्देनजर, हमारा दृढ़ मत है कि अपीलकर्ता दिनांक 30 अप्रैल, 2008 की अधिसूचना द्वारा विज्ञापित पद के लिए योग्य नहीं है।"

केस टाइटल: शिफाना पी.एस. बनाम केरल राज्य

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