Bilkis Bano Case: सुप्रीम कोर्ट ने गुजरात सरकार की छूट खारिज करने के फैसले को चुनौती देने वाली दोषियों की याचिका पर विचार करने से किया इनकार
सुप्रीम कोर्ट ने बिलकिस बानो बलात्कार मामले में दो दोषियों की याचिका पर विचार करने से इनकार किया, जिसमें 8 जनवरी के फैसले को चुनौती दी गई थी। इसमें गुजरात सरकार द्वारा दी गई उनकी छूट को खारिज कर दिया गया और उन्हें आत्मसमर्पण करने का निर्देश दिया गया।
जस्टिस संजीव खन्ना और जस्टिस संजय कुमार की खंडपीठ ने मामले की सुनवाई की और अंततः याचिका वापस ले ली गई मानते हुए खारिज कर दिया। साथ ही कहा कि वह समन्वय पीठ द्वारा दिए गए फैसले पर अपील में नहीं बैठ सकते।
जस्टिस खन्ना ने कहा,
"अनुच्छेद 32 के तहत हम अपील में नहीं बैठ रहे हैं। यह कैसे स्वीकार्य है? यह गलत है।"
याचिकाकर्ताओं की ओर से सीनियर एडवोकेट ऋषि मल्होत्रा ने मई 2022 के फैसले का हवाला दिया, जिसमें कहा गया कि गुजरात सरकार छूट पर विचार करने के लिए सक्षम प्राधिकारी है। हालांकि, खंडपीठ ने बताया कि इस साल जनवरी में दिए गए दूसरे फैसले में पहले फैसले पर विचार किया गया। याद रहे कि दूसरे फैसले में कहा गया कि पहला फैसला अमान्य है, क्योंकि यह अदालत के साथ धोखाधड़ी करके हासिल किया गया था।
संक्षेप में कहें तो, 8 जनवरी को सुप्रीम कोर्ट ने गुजरात में 2002 के सांप्रदायिक दंगों के दौरान बिलकिस बानो सहित कई हत्याओं और सामूहिक बलात्कारों के लिए आजीवन कारावास की सजा पाए 11 दोषियों की छूट रद्द कर दी थी। यह माना गया कि गुजरात राज्य छूट के मुद्दे पर फैसला करने के लिए "उपयुक्त सरकार" नहीं है, क्योंकि मुकदमा महाराष्ट्र राज्य में चल रहा था।
चूंकि गुजरात सरकार अक्षम पाई गई, इसलिए छूट के आदेश अमान्य माने गए। तदनुसार, अदालत ने दोषियों को, जिन्हें अगस्त 2022 में समय से पहले रिहा किया गया, दो सप्ताह के भीतर जेल में आत्मसमर्पण करने का निर्देश दिया।
8 जनवरी के फैसले को चुनौती देते हुए वर्तमान याचिका दोषियों-राधेश्याम भगवानदास शाह उर्फ लाला वकील और राजूभाई बाबूलाल सोनी द्वारा दायर की गई।
याचिकाकर्ताओं ने जमानत की भी मांग की।
केस टाइटल: राधेश्याम भगवानदास शाह @लाला वकील बनाम भारत संघ, डायरी नं. - 9861/2024