Bhima Koregaon Case | सुप्रीम कोर्ट ने प्रोफेसर हनी बाबू की जमानत याचिका पर एनआईए को नोटिस जारी किया

Update: 2024-01-03 13:05 GMT

सुप्रीम कोर्ट ने बुधवार (3 जनवरी) को दिल्ली यूनिवर्सिटी के प्रोफेसर हनी बाबू की जमानत याचिका पर नोटिस जारी किया, जिन्हें भीमा कोरेगांव-एल्गार परिषद मामले में राष्ट्रीय जांच एजेंसी (एनआईए) ने गिरफ्तार किया है।

जस्टिस अनिरुद्ध बोस और जस्टिस संजय करोल खंडकी पीठ इस मामले में उनकी जमानत याचिका खारिज करने के बॉम्बे हाईकोर्ट के सितंबर, 2022 के फैसले को चुनौती देने वाली बाबू की विशेष अनुमति याचिका पर सुनवाई कर रही थी। पुणे के भीमा कोरेगांव में 2018 में हुई जाति-आधारित हिंसा के सिलसिले में गैरकानूनी गतिविधियां (रोकथाम) अधिनियम, 1967 के तहत गिरफ्तार किए जाने के बाद बाबू जुलाई 2020 से जेल में बंद हैं।

सुनवाई के दौरान, बाबू की ओर से पेश वकील ने अदालत को बताया कि वह 57 साल के हैं और दिल्ली यूनिवर्सिटी के प्रतिष्ठित प्रोफेसर हैं।

उन्होंने आगे कहा,

"उनके खिलाफ आरोप यह है कि उनके लैपटॉप पर कुछ कोड नाम पाए गए। माई लॉर्ड्स, यह मामला पूरी तरह से आपके लॉर्डशिप के फैसले के अंतर्गत आता है..."

जस्टिस बोस ने संक्षेप में कहा,

"नोटिस जारी करें। तीन सप्ताह में जवाब दाखिल किया जा सकता है।"

मामले की पृष्ठभूमि

राष्ट्रीय जांच एजेंसी ने हनी बाबू पर 15 अन्य लोगों के साथ पुणे के भीमा कोरेगांव में जातीय हिंसा के लिए जिम्मेदार होने का आरोप लगाया। हालांकि उनमें से एक जेसुइट पुजारी और आदिवासी अधिकार कार्यकर्ता फादर स्टेन स्वामी का जुलाई 2021 में निधन हो गया।

पुणे पुलिस और बाद में एनआईए ने तर्क दिया कि कोरेगांव भीमा की लड़ाई की दो सौवीं वर्षगांठ मनाने के लिए आयोजित कार्यक्रम में एल्गार परिषद में भड़काऊ भाषण दिए जाने से भीमा कोरेगांव गांव के पास मराठा और दलित समूहों के बीच हिंसक झड़पों को जन्म दिया। इसके चलते 16 कार्यकर्ताओं को कथित तौर पर हिंसा की साजिश रचने और योजना बनाने के आरोप में गिरफ्तार किया गया और मुख्य रूप से उनके इलेक्ट्रॉनिक डिवाइस से प्राप्त पत्रों और ईमेल के आधार पर गैरकानूनी गतिविधियां (रोकथाम) अधिनियम (UAPA Act) के विभिन्न प्रावधानों के तहत आरोप लगाए गए।

भारतीय दंड संहिता (आईपीसी) और UAPA Act की विभिन्न धाराओं के तहत आरोपों का सामना कर रहे बाबू को 28 जुलाई, 2020 को केंद्रीय एजेंसी द्वारा गिरफ्तार किया गया था। ट्रायल कोर्ट द्वारा ठुकराए जाने के बाद प्रोफेसर ने जमानत के लिए बॉम्बे हाईकोर्ट का रुख किया।

हालांकि, सितंबर, 2022 में हाईकोर्ट ने सबूतों की जांच के आधार पर अपना निर्णय अस्वीकार कर दिया, जिसमें बाबू के पास से कथित तौर पर बरामद की गई 'सीक्रेसी हैंडबुक' भी शामिल थी। अदालत ने कहा कि बाबू की गतिविधियां अकादमिक हितों से परे हैं, जो रिवोल्यूशनरी डेमोक्रेटिक फ्रंट (आरडीएफ) और सीपीआई (माओवादी) के साथ गहरी भागीदारी का संकेत देती हैं।

जस्टिस नितिन जामदार और जस्टिस एनआर बोरकर की खंडपीठ ने साजिश की गंभीरता और इसमें बाबू की भूमिका पर चिंता व्यक्त की। व्यापक संभावनाओं और सामग्री की समग्रता का हवाला देते हुए अदालत ने बाबू के खिलाफ एनआईए के आरोपों पर विश्वास करने के लिए उचित आधार पाया, जिसमें दावा किया गया कि उसने आतंकवादी कृत्यों की साजिश रची, प्रयास किया, वकालत की और उकसाया। तदनुसार, खंडपीठ ने आरोपों की गंभीरता और कथित साजिश से उत्पन्न संभावित खतरे को देखते हुए जमानत के लिए उनकी याचिका खारिज की।

केस टाइटल- हनी बाबू बनाम राष्ट्रीय जांच एजेंसी | डायरी नंबर 35415/2023

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