आगे की जांच की मांग करने वाली अर्जी विरोध याचिका मानी जाएगी: सुप्रीम कोर्ट

Update: 2024-02-13 04:30 GMT

सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि आगे की जांच की मांग करने वाला आवेदन विरोध याचिका के रूप में माना जा सकता है, यदि आवेदन प्रथम दृष्टया अपराध के कमीशन को स्थापित करता है। ऐसे आवेदन को तकनीकी रूप से खारिज नहीं किया जा सकता है, क्योंकि विरोध याचिका दायर करने का प्रक्रियात्मक सहारे का पालन ​​नहीं किया गया।

न्यायालय ने कहा कि यद्यपि अपीलकर्ता के लिए उचित कदम आगे की जांच के लिए धारा 173(8) के तहत दायर करने के बजाय विरोध याचिका दायर करना होता, लेकिन यह भी कहा कि किसी याचिका को केवल इसलिए खारिज नहीं किया जाना चाहिए, क्योंकि यह गलत कैप्शन के तहत दायर की गई।

कोर्ट ने कहा,

“उस आवेदन में दिए गए कथनों से पता चलता है कि अपीलकर्ता ने आईपीसी की धारा 376, 417 और 420 के तहत आरोपों को हटाने का विरोध किया और उसने उस सामग्री को रिकॉर्ड पर लाने का प्रयास किया, जो प्रथम दृष्टया इन अपराधों के कमीशन को स्थापित करेगा। हम यह समझने में असफल हैं कि मजिस्ट्रेट को सीआरपीसी की धारा 173(8) के तहत दायर उस आवेदन पर विचार करने से किसने रोका? विरोध याचिका के रूप में और फिर गुण-दोष के आधार पर निर्णय लें। आवेदन/याचिका के कैप्शन जैसी तकनीकीता उसके सार पर विचार करने और फिर यह निर्धारित करने में बाधा नहीं बन सकती है कि मामले में आगे की जांच की आवश्यकता है या नहीं, जिससे आईपीसी की धारा 376, 417 और 420 के तहत अपराधों के प्रथम दृष्टया तत्व का पता लगाया जा सके।

जस्टिस सूर्यकांत और जस्टिस के.वी. विश्वनाथन की खंडपीठ ने हाईकोर्ट और ट्रायल कोर्ट के समवर्ती निष्कर्षों को खारिज करते हुए, जिसने शिकायतकर्ता की आगे की जांच के लिए आवेदन खारिज कर दिया, कहा कि आगे की जांच की मांग करने वाला आवेदन विरोध याचिका के रूप में मानते हुए कहा कि यह प्रत्येक न्यायालय का परम कर्तव्य है कि जहां भी अन्याय दिखाई दे, उस पर प्रहार किया जाना चाहिए और अपराध के पीड़ित की आवाज को निष्पक्षता से सुना जाना चाहिए।

खंडपीठ ने कहा,

“अपीलकर्ता द्वारा ट्रायल कोर्ट के समक्ष दिए गए आवेदन को विरोध याचिका के रूप में माना जाता है और उसे अनुमति दी जाती है। इसके परिणामस्वरूप, जांच एजेंसी को यह पता लगाने के लिए आगे की जांच करने का निर्देश दिया गया कि प्रतिवादी नंबर 2 के खिलाफ आईपीसी की धारा 376, 417 और 420 के तहत अपराध बनता है या नहीं।

मौजूदा मामले में शिकायतकर्ता ने आरोपी के खिलाफ आईपीसी की धारा 417, 376, 420, 354ए, 506(i) सपठित धारा 34 और सूचना प्रौद्योगिकी अधिनियम, 2000 की धारा 66ए के तहत पुलिस स्टेशन में एफआईआर दर्ज कराई। हालांकि, जांच के बाद अन्य आरोपों को हटाते हुए आईपीसी की धारा 354A और 506 के तहत आरोप पत्र दायर किया गया।

शिकायतकर्ता ने विरोध याचिका दायर करने के बजाय सीआरपीसी की धारा 173 (8) के तहत आगे की जांच की मांग करते हुए आवेदन दायर किया। ट्रायल कोर्ट ने इसे खारिज किया और ट्रायल कोर्ट के आदेश को हाईकोर्ट ने बरकरार रखा।

इसके बाद, शिकायतकर्ता ने सुप्रीम कोर्ट के समक्ष आपराधिक अपील दायर की।

अदालत ने देखा कि शिकायतकर्ता ने उस सामग्री को रिकॉर्ड में लाने का प्रयास किया, जो प्रथम दृष्टया अपराध के घटित होने को स्थापित करेगी। अदालत ने कहा कि जांच अधिकारी को शिकायत द्वारा प्रस्तुत ऐसे रिकॉर्ड की विश्वसनीयता की जांच करनी चाहिए।

अदालत ने कहा,

“यह उपयुक्त मामला है, जहां न्यायिक मजिस्ट्रेट को सीआरपीसी की धारा 173(8) के तहत अपनी शक्ति का इस्तेमाल करना चाहिए। जांच अधिकारी को ऐसे गंभीर आरोपों की आगे जांच करने का निर्देश दिया। आगे की जांच से इनकार करने से अपीलकर्ता के साथ घोर अन्याय हुआ।''

परिणामस्वरूप, आरोपी की स्थिति के कारण अदालत ने निर्देश दिया कि आगे की जांच विशेष जांच दल (SIT) द्वारा तीन महीने के भीतर पूरी की जाए।

अदालत ने कहा,

“पांडिचेरी राज्य को विशेष जांच दल गठित करने का निर्देश दिया जाता है, जिसका नेतृत्व सीधे तौर पर भर्ती की गई महिला आईपीएस अधिकारी के साथ-साथ डीवाईएसपी और पुलिस निरीक्षक रैंक के दो अधिकारी करेंगे। यदि राज्य कैडर में कोई महिला आईपीएस अधिकारी उपलब्ध नहीं है तो डीवाईएसपी या इंस्पेक्टर रैंक के अधिकारियों में से कोई महिला होनी चाहिए। एसआईटी द्वारा आगे की जांच तीन महीने के भीतर पूरी की जाएगी।

तदनुसार, अदालत ने निचली अदालतों का आदेश रद्द करते हुए अपील की अनुमति दी, जिसमें आगे की जांच की मांग करने वाले शिकायतकर्ता के आवेदन पर विचार करने से इनकार किया गया था।

केस टाइटल: XXX बनाम राज्य का प्रतिनिधित्व पुलिस निरीक्षक एवं अन्य द्वारा किया गया। 

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