सुप्रीम कोर्ट ने मौखिक रूप से टिप्पणी की कि "NDPS मामले में अग्रिम जमानत कभी नहीं दी जाती"। इसके साथ ही कोर्ट ने पंजाब एंड हरियाणा हाईकोर्ट द्वारा नारकोटिक ड्रग्स एंड साइकोट्रोपिक सब्सटेंस एक्ट, 1985 (NDPS Act) के तहत दर्ज एक आरोपी को अग्रिम जमानत देने से इनकार करने के मामले में हस्तक्षेप करने से इनकार कर दिया।
जस्टिस पंकज मित्तल और जस्टिस केवी विश्वनाथन की खंडपीठ ने मामले की सुनवाई की और इस प्रकार आदेश पारित किया:
"हम इस बात से संतुष्ट नहीं हैं कि NDPS मामले में याचिकाकर्ता को अग्रिम जमानत देने से इनकार करने में हाईकोर्ट द्वारा कोई त्रुटि की गई।"
हालांकि, इसने यह भी कहा कि याचिकाकर्ता ट्रायल कोर्ट के समक्ष आत्मसमर्पण कर सकता है और नियमित जमानत के लिए आवेदन कर सकता है, जिसे कानून के अनुसार उसके गुण-दोष के आधार पर निपटाया जाएगा।
अभियोजन पक्ष के अनुसार, सह-आरोपी के खुलासे में याचिकाकर्ता का नाम सामने आया, जिसके कब्जे से 60 किलोग्राम डोडा पोस्त और 1 किलोग्राम 800 ग्राम अफीम बरामद की गई। सह-आरोपी ने याचिकाकर्ता को प्रतिबंधित पदार्थ का आपूर्तिकर्ता बताया।
राज्य ने हाईकोर्ट के समक्ष जमानत याचिका का विरोध किया, जिसमें कहा गया कि बरामद किया गया प्रतिबंधित पदार्थ वाणिज्यिक मात्रा में आता है, जो NDPS Act की धारा 37 के अंतर्गत आता है। कार्यप्रणाली का पता लगाने के लिए याचिकाकर्ता से हिरासत में पूछताछ की आवश्यकता है।
दूसरी ओर, याचिकाकर्ता ने दावा किया कि उसे झूठा फंसाया गया और खुलासे के बयानों के आधार पर फंसाया गया। हालांकि उसका नाम FIR में नहीं था।
पक्षकारों की सुनवाई के बाद हाईकोर्ट ने पाया कि याचिकाकर्ता को सह-आरोपी द्वारा विशेष रूप से आपूर्तिकर्ता के रूप में नामित किया गया और याचिकाकर्ता और सह-आरोपी के बीच टेलीफोन पर बातचीत के रिकॉर्ड भी थे। इसके अलावा, उक्त आरोपियों के बीच बैंक लेनदेन भी थे।
इस प्रकार, हाईकोर्ट ने अग्रिम जमानत देने का कोई मामला नहीं पाया। इससे व्यथित होकर याचिकाकर्ता ने सुप्रीम कोर्ट का दरवाजा खटखटाया।
पिछले वर्ष सितंबर में सुप्रीम कोर्ट ने NDPS मामले में अग्रिम जमानत दिए जाने पर आश्चर्य व्यक्त किया था। जस्टिस बीआर गवई (वर्तमान चीफ जस्टिस ऑफ इंडिया), जस्टिस अरविंद कुमार और जस्टिस केवी विश्वनाथन की बेंच ने पश्चिम बंगाल राज्य से आरोपी को दी गई अग्रिम जमानत रद्द करने की मांग करने वाले आवेदन दायर करने पर विचार करने को कहा।
बेंच ने कहा था,
"NDPS मामले में अग्रिम जमानत देना एक बहुत ही गंभीर मुद्दा है। इसलिए हम राज्य को निर्देश देते हैं कि वह इस बात पर विचार करे कि क्या वह आरोपी को दी गई अग्रिम जमानत रद्द करने के लिए आवेदन करने का प्रस्ताव रखता है।"
हालांकि, इस वर्ष अप्रैल में सुप्रीम कोर्ट ने NDPS मामले में अन्य आरोपी को अग्रिम जमानत दी, जिस पर टैपेंटाडोल हाइड्रोक्लोराइड टैबलेट (मध्यम से गंभीर तीव्र दर्द के इलाज के लिए इस्तेमाल की जाने वाली दर्द निवारक दवा) रखने का मामला दर्ज किया गया। चूंकि टेपेंटाडोल हाइड्रोक्लोराइड अधिनियम की अनुसूची में शामिल नहीं है, इसलिए न्यायालय ने कहा कि यह एक मनोविकारकारी पदार्थ नहीं है।
Case Title: DINESH CHANDER Versus STATE OF HARYANA, SLP(Crl) No. 9540/2025