सुप्रीम कोर्ट वीकली राउंड अप : सुप्रीम कोर्ट के कुछ खास ऑर्डर/जजमेंट पर एक नज़र

Update: 2024-12-01 06:30 GMT

सुप्रीम कोर्ट में पिछले सप्ताह (25 नवंबर, 2024 से 29 नवंबर, 2024 तक) तक क्या कुछ हुआ, जानने के लिए देखते हैं सुप्रीम कोर्ट वीकली राउंड अप। पिछले सप्ताह सुप्रीम कोर्ट के कुछ खास ऑर्डर/जजमेंट पर एक नज़र।

नियमित कार्य करने वाले आउटसोर्स कर्मचारी को अनुभव अंक देने से इनकार नहीं किया जा सकता, भले ही वह स्वीकृत पद पर न हो : सुप्रीम कोर्ट

सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि केवल इसलिए अनुभव अंक देने से इनकार नहीं किया जा सकता कि उम्मीदवार ने आउटसोर्स मैनपावर के रूप में काम किया। यदि उम्मीदवार ने स्वीकृत पद के अनुरूप कार्य किया तो वह अंक पाने का पात्र है, भले ही उम्मीदवार स्वीकृत पद पर नियुक्त न हुआ हो।

अदालत ने कहा, "इस प्रकार, प्रथम प्रतिवादी को केवल इसलिए अनुभव अंक देने से इनकार नहीं किया जा सकता कि आउटसोर्स मैनपावर के रूप में नियुक्ति के समय वह स्वीकृत पद पर नियुक्त नहीं थी।"

केस टाइटल: चौधरी चरण सिंह हरियाणा कृषि यूनिवर्सिटी, हिसार एवं अन्य बनाम मोनिका एवं अन्य।

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S. 306 IPC | शादी से इनकार करना आत्महत्या के लिए उकसाना नहीं: सुप्रीम कोर्ट

सुप्रीम कोर्ट ने ऐसे व्यक्ति की सजा खारिज की, जिस पर आत्महत्या के लिए उकसाने (आईपीसी की धारा 306) का आरोप लगाया गया, क्योंकि उसकी प्रेमिका ने उससे शादी करने से इनकार करने पर आत्महत्या कर ली थी।

जस्टिस पंकज मित्तल और जस्टिस उज्जल भुयान की खंडपीठ ने कहा कि किसी से शादी करने से इनकार करना आत्महत्या के लिए उकसाने के बराबर नहीं होगा। इसके बजाय, यह दिखाया जाना चाहिए कि आरोपी ने अपने कार्यों और चूकों या अपने आचरण के निरंतर क्रम से ऐसी परिस्थितियां पैदा कीं, जिससे मृतक के पास आत्महत्या करने के अलावा कोई अन्य विकल्प नहीं बचा।

केस टाइटल: कमरुद्दीन दस्तगीर सनदी बनाम कर्नाटक राज्य एसएचओ काकती पुलिस के माध्यम से

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S. 27 Evidence Act | धारा 27 प्रकटीकरण दर्ज करने से पहले अभियुक्त द्वारा दिए गए बयान के आधार पर बरामदगी स्वीकार्य नहीं : सुप्रीम कोर्ट

सुप्रीम कोर्ट ने माना कि भारतीय साक्ष्य अधिनियम (Indian Evidence Act) की धारा 27 के तहत पुलिस थाने में बयान दर्ज करने से पहले अभियुक्त द्वारा पुलिस थाने जाते समय दिए गए बयान के आधार पर कथित रूप से आपत्तिजनक सामग्री की बरामदगी स्वीकार्य नहीं है।

न्यायालय ने हत्या के एक मामले में अभियुक्त की दोषसिद्धि यह देखते हुए खारिज की कि अभियुक्त के खिलाफ आपत्तिजनक परिस्थितियों की खोज साक्ष्य अधिनियम, 1872 की धारा 27 के तहत दिए गए प्रकटीकरण बयानों पर आधारित नहीं थी, बल्कि पुलिस द्वारा उस समय दर्ज किए गए बयान पर आधारित थी, जब वह पुलिस थाने जा रहा था।

केस टाइटल: सुरेश चंद्र तिवारी और अन्य बनाम उत्तराखंड राज्य

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Sec.319 CrPC के तहत आवेदन पर फैसला करते समय, अदालत को बहस पर भी विचार करना चाहिए: सुप्रीम कोर्ट

सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि Sec. 319 CrPC के तहत एक अतिरिक्त अभियुक्त को बुलाना केवल अभियोजन पक्ष के गवाहों के मुख्य परीक्षण पर आधारित नहीं होना चाहिए। अदालत ने कहा कि Sec. 319 CrPCके तहत आवेदन दायर करने से पहले अभियोजन पक्ष के गवाह जिरह पर भी उचित विश्वास दिया जाना चाहिए।

जस्टिस अभय एस ओका और जस्टिस एजी मसीह की खंडपीठ ने आरोपियों द्वारा दायर अपील पर सुनवाई की, जो शिकायतकर्ता के समन आवेदन को बरकरार रखने के उच्च न्यायालय के फैसले से व्यथित थे, जो अभियोजन पक्ष के गवाहों के मुख्य परीक्षण पर आधारित था।

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भ्रष्टाचार निवारण अधिनियम की धारा 20 के तहत अनुमान लगाने के लिए रिश्वत की रकम का पर्याप्त होना जरूरी नहीं है: सुप्रीम कोर्ट

2000 रुपये की रिश्वत लेने के आरोप में सरकारी कर्मचारी को दोषी ठहराते हुए सुप्रीम कोर्ट ने कहा है कि भ्रष्टाचार निवारण अधिनियम, 1988 की धारा 20 के तहत अनुमान लगाने के लिए रिश्वत की रकम का पर्याप्त होना जरूरी नहीं है।

धारा 20(3) के अनुसार, अगर रिश्वत की रकम मामूली है तो कोर्ट को सरकारी कर्मचारी के खिलाफ प्रतिकूल अनुमान लगाने से बचने का विवेकाधिकार है। सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि रिश्वत की कीमत प्रस्तावित सेवा के अनुपात में ही तय की जानी चाहिए।

मामला : कर्नाटक राज्य बनाम चंद्रशा आपराधिक अपील संख्या-2646/2024

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रिटायर्ड कर्मचारी रिटायरमेंट के बाद पदोन्नति या पदोन्नति के लाभों का हकदार नहीं : सुप्रीम कोर्ट

सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि जिस कर्मचारी की पदोन्नति उसकी रिटायरमेंट से पहले नहीं हुई है, वह पूर्वव्यापी पदोन्नति और पदोन्नति से जुड़े काल्पनिक लाभों का हकदार नहीं होगा।

जस्टिस पीएस नरसिम्हा और जस्टिस संदीप मेहता की खंडपीठ ने कहा, "पदोन्नति केवल पदोन्नति के पद पर कार्यभार ग्रहण करने पर ही प्रभावी होती है, न कि रिक्ति होने की तिथि या सिफारिश की तिथि पर।"

केस टाइटल: पश्चिम बंगाल सरकार और अन्य बनाम डॉ. अमल सतपथी और अन्य।

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जन्मजात ईसाई जाति के पुनरुत्थान के लिए जाति ग्रहण के सिद्धांत को लागू नहीं कर सकता: सुप्रीम कोर्ट

सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि ईसाई के रूप में पैदा हुआ व्यक्ति जाति के ग्रहण के सिद्धांत का आह्वान नहीं कर सकता है, क्योंकि ईसाई धर्म में जाति व्यवस्था को मान्यता नहीं दी गई है।

जस्टिस पंकज मित्तल और जस्टिस आर. महादेवन की खंडपीठ ने स्पष्ट किया कि जाति ग्रहण का सिद्धांत केवल तभी लागू होता है जब जाति आधारित धर्म का पालन करने वाला व्यक्ति जाति-विहीन धर्म में परिवर्तित हो जाता है। ऐसे में उनकी मूल जाति पर ग्रहण लगा हुआ माना जाता है। हालांकि, यदि ऐसे व्यक्ति अपने जीवनकाल के दौरान अपने मूल धर्म में फिर से परिवर्तित हो जाते हैं, तो ग्रहण हटा दिया जाता है, और जाति की स्थिति स्वचालित रूप से बहाल हो जाती है। यद्यपि, यह एक जन्म से मसीही विश् वासी के ऊपर लागू नहीं होगा।

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वास्तविक आस्था के बिना केवल आरक्षण लाभ प्राप्त करने के लिए धर्म परिवर्तन अस्वीकार्य, संविधान के साथ धोखाधड़ी: सुप्रीम कोर्ट

सुप्रीम कोर्ट ने मद्रास हाईकोर्ट का फैसला बरकरार रखा, जिसमें एक ईसाई के रूप में जन्मी महिला को अनुसूचित जाति (एससी) प्रमाण पत्र देने से इनकार कर दिया गया, जिसने पुडुचेरी में अपर डिवीजन क्लर्क की नौकरी के लिए आवेदन करते समय हिंदू होने का दावा किया था।

कोर्ट ने फैसला सुनाया कि केवल आरक्षण लाभ प्राप्त करने के लिए किए गए धार्मिक परिवर्तन, अपनाए गए धर्म में वास्तविक आस्था के बिना आरक्षण नीति के मौलिक सामाजिक उद्देश्यों को कमजोर करते हैं।

केस टाइटल: सी. सेल्वाराणी बनाम विशेष सचिव- सह जिला कलेक्टर और अन्य

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न्यायालय की नीलामी के बाद जारी बिक्री प्रमाणपत्र अनिवार्य रूप से पंजीकृत नहीं; नीलामी क्रेता को इसे प्राप्त करने के लिए स्टाम्प ड्यूटी जमा करने की आवश्यकता नहीं: सुप्रीम कोर्ट

सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि सफल नीलामी क्रेता को न्यायालय की कार्यवाही में की गई नीलामी के अनुसरण में बिक्री प्रमाणपत्र जारी करने के लिए स्टाम्प शुल्क जमा करने की आवश्यकता नहीं है। न्यायालय ने स्पष्ट किया कि स्टाम्प शुल्क तभी देय होगा जब नीलामी क्रेता प्रमाणपत्र का उपयोग किसी अन्य उद्देश्य के लिए करेगा, लेकिन तब नहीं जब प्रमाणपत्र यथावत रहेगा।

जस्टिस जेबी पारदीवाला और जस्टिस आर महादेवन की खंडपीठ ने कहा, “ऊपर चर्चित कानून की स्थिति यह स्पष्ट करती है कि प्राधिकृत अधिकारी द्वारा जारी बिक्री प्रमाणपत्र अनिवार्य रूप से रजिस्टर्ड नहीं है। जब प्राधिकृत अधिकारी द्वारा रजिस्ट्रेशन प्राधिकारी को बिक्री प्रमाणपत्र की एक प्रति अग्रेषित की जाती है तो रजिस्ट्रेशन एक्ट की धारा 89(4) के तहत मात्र दाखिल करना ही पर्याप्त है। हालांकि, स्टाम्प एक्ट की पहली अनुसूची के क्रमशः अनुच्छेद 18 और 23 का अवलोकन करने से यह स्पष्ट हो जाता है कि जब नीलामी क्रेता रजिस्ट्रेशन के लिए मूल बिक्री प्रमाणपत्र प्रस्तुत करता है तो उस पर उक्त अनुच्छेदों के अनुसार स्टाम्प शुल्क लगेगा। जब तक बिक्री प्रमाणपत्र वैसा ही रहेगा, तब तक उसका रजिस्ट्रेशन अनिवार्य नहीं है। जब नीलामी क्रेता किसी अन्य उद्देश्य के लिए प्रमाणपत्र का उपयोग करता है, तभी स्टाम्प शुल्क आदि के भुगतान की आवश्यकता उत्पन्न होगी।”

केस टाइटल: पंजाब राज्य और अन्य बनाम मेसर्स फेरस अलॉय फोर्जिंग्स प्राइवेट लिमिटेड और अन्य।

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