साप्ताहिक, राष्ट्रीय अवकाश कार्य अनुभव की अवधि से बाहर नहीं: राजस्थान हाईकोर्ट ने बोनस अंक मांगने वाले लैब तकनीशियन के मामले में दोहराया
राज्य सरकार द्वारा रविवार/राष्ट्रीय अवकाश को छोड़े बिना महिला लैब तकनीशियन को उसके वास्तविक कार्य अनुभव के अनुसार "बोनस अंक" देने पर विचार करने के लिए कहने वाले आदेश के खिलाफ याचिका खारिज करते हुए राजस्थान हाईकोर्ट की जोधपुर पीठ ने दोहराया कि जब तक लैब तकनीशियन/असिस्टेंट लैब में काम करते हैं, तब तक उनके द्वारा प्राप्त "अनुभव" को गिना जाना चाहिए।
ऐसा करते हुए खंडपीठ ने एकल न्यायाधीश की पीठ के निर्णय को बरकरार रखा, जिसने संविदा लैब तकनीशियन की याचिका स्वीकार करते हुए कहा था कि लैब तकनीशियन या लैब सहायक के पद पर कार्य अनुभव "प्रकृति में समान है, जब तक वे लैब में अपना कर्तव्य निभाते हैं।"
जस्टिस चंद्रशेखर और जस्टिस कुलदीप माथुर की खंडपीठ ने अपने आदेश में कहा,
"प्रतिवादी (राज्य) द्वारा इस बात से इनकार नहीं किया जा सकता कि (राजस्थान मेडिकल एवं स्वास्थ्य अधीनस्थ सेवा) नियम 1965 के तहत लैब सहायक के पद के लिए योग्यता (i) विज्ञान के साथ सीनियर सेकेंडरी या इसके समकक्ष और (ii) राज्य सरकार द्वारा मान्यता प्राप्त संस्थान से मेडिकल लैब तकनीशियन में कोई डिप्लोमा है।"
पीठ ने कहा कि राज्य ने दलील दी कि राजस्थान मेडिकल एवं स्वास्थ्य अधीनस्थ सेवा (संशोधन) नियम 2018 के लागू होने के बाद राज्य सरकार के अस्पतालों में "लैब असिस्टेंट/लैब तकनीशियन के रूप में काम करने का 3 साल का अनुभव" रखने वाले व्यक्ति भी "पात्र हैं"।
यह देखते हुए कि कर्मचारी प्रयोगशाला तकनीशियन के रूप में संविदा के आधार पर काम कर रहा था, पीठ ने कहा,
"हम रिट कोर्ट द्वारा व्यक्त किए गए दृष्टिकोण से इस हद तक सहमत हैं कि जब तक लैब तकनीशियन या लैब असिस्टेंट लैब में काम करते हैं, तब तक उनके द्वारा प्राप्त अनुभव को गिना जाना चाहिए।"
यह आदेश राज्य सरकार द्वारा एकल न्यायाधीश पीठ के 24 मार्च के आदेश के खिलाफ दायर अपील में आया। एकल न्यायाधीश पीठ ने कहा था कि प्रतिवादी प्रयोगशाला तकनीशियन के उस अभ्यावेदन खारिज करने का राज्य का निर्णय "अवैध" था, जिसमें मांग की गई कि रविवार और शनिवार को छोड़े बिना उसके वास्तविक कार्य अनुभव को गिना जाए।
एकल न्यायाधीश पीठ के समक्ष प्रतिवादी तकनीशियन ने मेडिकल स्वास्थ्य और कल्याण विभाग के 3 जुलाई, 2023 के आदेश को चुनौती दी थी, जिसमें रविवार और छुट्टियों को छोड़े बिना उसके वास्तविक कार्य अनुभव के अनुसार उसे बोनस अंक प्रदान करने का उसका दावा खारिज कर दिया गया।
खंडपीठ ने सुरेश चौधरी बनाम राजस्थान राज्य (2021) में हाईकोर्ट के निर्णय का हवाला दिया, जिस पर एकल न्यायाधीश ने भी यह राय बनाने के लिए भरोसा किया था कि प्रतिवादी का अभ्यावेदन खारिज करना अवैध था।
सुरेश चौधरी में यह माना गया:
"श्रम कानूनों के अनुसार, सभी संगठन/संस्थाएं/उद्यम आदि, चाहे वे सरकारी स्वामित्व वाले हों या निजी, उनको साप्ताहिक अवकाश रखना आवश्यक है या प्रत्येक कर्मचारी को एक साप्ताहिक अवकाश देने के लिए बाध्य हैं। यदि याचिकाकर्ता को प्रतिवादी द्वारा स्वयं साप्ताहिक अवकाश दिया गया तो ऐसे अवकाशों को छोड़कर उसके अनुभव को अति-तकनीकी रूप से नहीं गिना जा सकता। याचिकाकर्ता के कार्य दिवसों की गणना 339 (324+15) दिन करने तथा ऐसी अवधि को वास्तविक कार्य दिवस मानने की राज्य की कार्रवाई स्पष्ट रूप से अवैध है तथा याचिकाकर्ता के मौलिक अधिकारों का उल्लंघन है।"
इस निर्णय के आधार पर एकल न्यायाधीश पीठ ने प्रतिवादी का अभ्यावेदन खारिज करने का आदेश खारिज कर दिया तथा उसे "पात्रता के अनुसार बोनस अंक प्रदान करने तथा उसके प्रदर्शन का पुनर्मूल्यांकन करने" तथा रविवार और राष्ट्रीय अवकाशों को छोड़े बिना उसके कार्य अनुभव की गणना करने के लिए उसकी उम्मीदवारी पर विचार करने का आदेश दिया।
उपरोक्त पर ध्यान देते हुए खंडपीठ ने उसके बाद कहा,
"सामान्य खंड अधिनियम के तहत धारा 3 के खंड 35 के तहत महीने को ब्रिटिश कैलेंडर के अनुसार गणना किए गए महीने के रूप में परिभाषित किया गया है। यह अच्छी तरह से स्थापित है कि एक महीने की गणना करते समय रविवार और छुट्टियों को बाहर नहीं रखा जाता।"
एकल न्यायाधीश पीठ के निर्णय से सहमत होते हुए खंडपीठ ने राज्य की अपील खारिज कर दी।
केस टाइटल: राजस्थान राज्य एवं अन्य बनाम भारती