Rajasthan Tenancy Act| राजस्व अभिलेखों में खनन उद्देश्यों के लिए दर्ज भूमि का उपयोग कृषि उद्देश्यों के लिए नहीं किया जा सकता: हाईकोर्ट
राजस्थान हाईकोर्ट ने फैसला सुनाया कि चूंकि खनन को राजस्थान काश्तकारी अधिनियम 1955 (Rajasthan Tenancy Act) के तहत कृषि गतिविधि नहीं कहा जा सकता है, इसलिए खनन कार्यों के लिए उपयोग की जाने वाली भूमि को कृषि उद्देश्यों के लिए उपयोग की जाने वाली भूमि नहीं कहा जा सकता। खासकर तब जब राजस्व अभिलेखों में भूमि की प्रकृति खनन उद्देश्यों के लिए दर्ज की गई हो।
जस्टिस रेखा बोराणा की पीठ एक ट्रायल कोर्ट के आदेश के खिलाफ दायर पुनर्विचार याचिकाओं पर सुनवाई कर रही थी, जिसमें एक वाद को खारिज करने के आवेदनों को खारिज कर दिया गया और वादों को बनाए रखने योग्य माना गया।
याचिकाकर्ताओं के खिलाफ वादी की सहमति के बिना विषय भूमि पर खनन संचालन करने से रोकने के लिए स्थायी निषेधाज्ञा के लिए वाद दायर किए गए। इन वादों में वाद को खारिज करने के लिए आवेदन इस आधार पर दायर किए गए कि विचाराधीन भूमि एक कृषि भूमि थी। इस प्रकार एक कृषि भूमि के संबंध में स्थायी निषेधाज्ञा के लिए वाद एक सिविल कोर्ट के समक्ष बनाए रखने योग्य नहीं था।
ट्रायल कोर्ट ने इस आधार पर आवेदनों को खारिज कर दिया कि राजस्व अभिलेखों में भूमि को खनन क्षेत्र के रूप में दर्ज किया गया।
याचिकाकर्ताओं का मामला यह था कि केवल इसलिए कि भूमि के संबंध में खनन कार्यों के लिए मंजूरी दी गई थी इसकी प्रकृति कृषि से नहीं बदली।
यह प्रस्तुत किया गया कि खनन लाइसेंस का अनुदान केवल एक विशेष उद्देश्य के लिए था। चूंकि भूमि को कभी परिवर्तित नहीं किया गया इसलिए यह प्रभावी रूप से कृषि योग्य ही रही।
इसके विपरीत प्रतिवादियों के वकील ने तर्क दिया कि खनन एक नागरिक अधिकार है। एक बार खनन लाइसेंस दिए जाने के बाद भूमि की प्रकृति बदल गई क्योंकि इसका अब कृषि के लिए उपयोग नहीं किया जाता था।
इसके अलावा अधिनियम की धारा 5(24) पर भरोसा किया गया, जिसमें भूमि को परिभाषित किया गया और यह तर्क दिया गया कि परिभाषा के विपरीत भूमि न तो कृषि उद्देश्यों के लिए किराए पर दी गई और न ही रखी गई। इसलिए इसे कृषि भूमि नहीं कहा जा सकता।
वकीलों की सुनवाई के बाद न्यायालय ने अधिनियम की धारा 5(24) और धारा 5(2) का अवलोकन किया, जिसमें क्रमशः “भूमि” और “कृषि” को परिभाषित किया गया और माना कि इनके संयुक्त पठन से यह प्रतिबिंबित होता है कि खनन को कृषि गतिविधि नहीं कहा जा सकता है। खनन कार्यों के लिए उपयोग की जाने वाली भूमि को कृषि उद्देश्यों के लिए उपयोग की जाने वाली भूमि नहीं कहा जा सकता है।
इसके अलावा न्यायालय ने राजस्व अभिलेखों में भूमि को खनन उद्देश्यों के लिए के रूप में दर्ज किए जाने के तथ्य पर प्रकाश डाला और कहा,
“स्पष्ट रूप से भूमि न तो खेती योग्य है और न ही किसी कृषि उद्देश्यों के लिए उपयोग की जा रही है, इसलिए कानून की स्थिति के अनुसार भी कि भूमि की प्रकृति केवल उपयोग में परिवर्तन से नहीं बदलेगी, स्पष्ट रूप से विचाराधीन भूमि की प्रकृति राजस्व अभिलेखों में 'खनन उद्देश्यों' के लिए दर्ज की गई है। किसी भी तरह से राजस्व अभिलेख में उक्त प्रविष्टि को 'कृषि उद्देश्यों' के लिए नहीं पढ़ा जा सकता है। इसलिए विचाराधीन भूमि निश्चित रूप से 1955 के अधिनियम की धारा 5(24) के तहत प्रदान की गई परिभाषा के अंतर्गत नहीं आएगी।”
तदनुसार, न्यायालय को ट्रायल कोर्ट के आदेश में हस्तक्षेप करने का कोई आधार नहीं मिला और याचिकाओं को खारिज कर दिया गया।
टाइटल: एस.ए.एस. आर.के. मार्बल उद्योग बनाम पुष्टिमार्गीय एवं अन्य तथा अन्य संबंधित याचिकाएँ