राजस्थान हाईकोर्ट ने आवारा सांड के हमले से हुई मौत पर मुआवजा बरकरार रखा, "सड़कों पर घूम रहे जानवरों" के लिए बीकानेर नगर निगम को फटकार लगाई

Update: 2024-02-22 05:29 GMT

स्थाई लोक अदालत द्वारा आवारा सांड से मौत पर 3 लाख रुपये जुर्माने का मुआवजा देने की पुष्टि करते हुए राजस्थान हाईकोर्ट ने आवारा सांडों की मौत की जिम्मेदारी बीकानेर नगर निगम को फटकार लगाई।

जस्टिस विनीत कुमार मधुर की एकल-न्यायाधीश पीठ ने कहा कि कानूनी सेवा प्राधिकरण अधिनियम, 1987 की धारा 22-ए इस बात पर विचार करती है कि 'सार्वजनिक उपयोगिता सेवा' में 'सार्वजनिक संरक्षण या स्वच्छता की प्रणाली' शामिल है। इस परिभाषा पर भरोसा करते हुए जोधपुर की पीठ ने कहा कि लोक अदालत ने मृतक के पति और बच्चों को मुआवजे के भुगतान के लिए निगम को जिम्मेदार ठहराकर सही किया।

पीठ ने कहा,

“चूंकि याचिकाकर्ता सड़कों से कचरा और खाने की चीजें हटाने के अपने कर्तव्यों का पालन करने में विफल रहे, जिसके परिणामस्वरूप आवारा जानवर सड़कों पर घूम रहे हैं। स्थायी लोक अदालत के पास मामले से निपटने के लिए 1987 के अधिनियम की धारा 22 ए (बी) (iv) के मद्देनजर अधिकार क्षेत्र था। इसलिए लोक अदालत ने आवेदन पर सही निर्णय लिया।"

इसके साथ ही अदालत ने 1987 के अधिनियम की धारा 22-सी (8) पर भरोसा करने के लोक अदालत के फैसले को बरकरार रखा और मुआवजा देने का निर्देश दिया।

जस्टिस विनीत कुमार ने संरक्षण और स्वच्छता की व्यवस्था बनाए रखने में निगम की खामियों पर भी ध्यान दिया, जिसके परिणामस्वरूप आवारा जानवरों ने राहगीरों का जीवन कठिन बना दिया।

अदालत ने कहा,

“…अब समय आ गया है, जब ऐसे मामलों में चोटों और मौतों का सामना करने वाले व्यक्तियों को मुआवजा देकर, जैसा कि स्थायी लोक अदालत द्वारा अपनाया गया। ऐसे मामलों में मुआवजे का भुगतान करने के लिए नगर निगम पर दायित्व तय करने की कड़ी कार्रवाई मददगार होग।”

चूंकि इस बारे में कोई विवाद नहीं है कि घटना कैसे हुई, जिसके परिणामस्वरूप संबंधित व्यक्ति की मृत्यु हो गई, अदालत ने कहा कि निगम कानून द्वारा अनिवार्य अपनी सेवाओं और कर्तव्यों का पालन करने में विफल रहा है। तदनुसार, अदालत ने अधिकारियों द्वारा पसंद की गई रिट खारिज कर दी और निजी उत्तरदाताओं को अदालत के आदेश के अनुसार दोषी अधिकारियों से मुआवजा वसूलने की अनुमति दी।

अदालत ने आगे कहा,

"...चूंकि, वर्तमान मामले में याचिकाकर्ता आवारा सांडों और गायों को सड़क से दूर रखने में विफल रहा, इसके परिणामस्वरूप बीकानेर सहित हर जगह कई दुर्घटनाएं हुईं।",

याचिकाकर्ता की ओर से पेश वकीलों ने दलील दी कि सड़कों पर आवारा जानवरों की आवाजाही के लिए नगर निगम जिम्मेदार नहीं है। उनके अनुसार, लोक अदालत के पास इस मामले पर विचार करने का कोई अधिकार क्षेत्र नहीं है, क्योंकि निगम द्वारा प्रदान की गई सेवाएं 1987 अधिनियम की धारा 22 ए (बी) की परिभाषाओं के अंतर्गत नहीं आतीं।

केस टाइटल: नगर निगम, बीकानेर एवं अन्य बनाम धन्ना राम और अन्य।

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