राजस्थान हाईकोर्ट ने साइबर क्राइम आरोपी को दी सशर्त जमानत, शर्तों में टेलीग्राम और व्हाट्सएप यूज करने पर लगाई रोक
राजस्थान हाईकोर्ट ने हाल ही में साइबर अपराध के एक 19 वर्षीय आरोपी को सशर्त ज़मानत दी, जिसमें टेलीग्राम और व्हाट्सएप जैसे सोशल मीडिया ऐप का इस्तेमाल करने पर रोक भी शामिल है, जमानत दी गई।
जस्टिस समीर जैन ने इस तथ्य पर ध्यान दिया कि आवेदक युवा है, "जो अपनी किशोरावस्था के अंतिम चरण में है" और वह 15.07.2025 से हिरासत में है। कोर्ट ने कहा कि आरोप पत्र दायर किया जा चुका है।
इस प्रकार, मामले के गुण/दोष पर टिप्पणी किए बिना इस कोर्ट ने निम्नलिखित शर्तों के अधीन ज़मानत याचिका स्वीकार कर ली:
1. आवेदक अपने नाम से संचालित बैंक अकाउंट का पूरा विवरण जांच अधिकारियों को देगा।
2. वह अपने नियमित व्यक्तिगत वैध उद्देश्यों के लिए केवल एक ही खाते का उपयोग और संचालन करेगा।
3. वह केवल उसी सिम कार्ड का उपयोग करेगा, जो आधार अधिकारियों से जुड़ा और रजिस्टर्ड है और मोबाइल फ़ोन का उपयोग करके कोई भी गैरकानूनी गतिविधि करने या उसमें शामिल होने का प्रयास नहीं करेगा। यदि उसके पास कोई अतिरिक्त नंबर है, जो उसके द्वारा संचालित है या उसके नाम से जारी किया गया, जो आधार अधिकारियों के पास रजिस्टर्ड नहीं है तो उसे संबंधित पुलिस स्टेशन में जमा करना होगा।
4. वह पुलिस के साथ हर संभव सहयोग करेगा और हर महीने की 5 तारीख को अपनी उपस्थिति दर्ज कराएगा।
5. मुकदमे के दौरान उसे टेलीग्राम और व्हाट्सएप जैसे किसी भी सोशल मीडिया एप्लिकेशन का उपयोग करने से प्रतिबंधित किया गया है।
6. उसकी ज़मानत उसके किसी रक्त संबंधी द्वारा दी जानी है।
यह मामला साइबर अपराध से संबंधित है, जिसमें आवेदक पर BNS की कई धाराओं के साथ-साथ सूचना प्रौद्योगिकी अधिनियम की धारा 66 और राजस्थान सार्वजनिक जुआ अध्यादेश, 1949 की धारा 13 के तहत आरोप लगाया गया। यह आरोप लगाया गया कि अभियुक्त द्वारा कई बैंक खातों का दुर्भावनापूर्वक उपयोग किया गया।
एमिक्स क्युरी और राज्य के वकील ने प्रस्तुत किया कि आवेदक जिस क्षेत्र का निवासी है, वह आमतौर पर भारत में साइबर अपराध के अपराधों में शामिल व्यक्तियों से संबंधित है। यह तर्क दिया गया कि विभिन्न बैंक अकाउंट का उपयोग दुर्भावनापूर्वक किया गया और प्रथम दृष्टया आरोप साइबर अपराध में आवेदक की संलिप्तता के हैं।
इसके अनुसार, जमानत याचिका का निपटारा कर दिया गया।
Title: Manraj v State of Rajasthan