मिसिंग व्यक्तियों के मामलों में जांच से असंतुष्ट होने पर बन्दी प्रत्यक्षीकरण याचिका सामान्य तौर पर नहीं दायर की जा सकती: राजस्थान हाईकोर्ट
राजस्थान हाईकोर्ट ने एक बन्दी प्रत्यक्षीकरण याचिका (Habeas Corpus) खारिज कर दी। कोर्ट ने कहा कि किसी लापता व्यक्ति के मामले में यह याचिका सिर्फ इसलिए नहीं दी जा सकती कि जांच की स्थिति जाननी हो या जांच के तरीके से संतुष्ट न हों।
न्यायालय ने बताया कि बन्दी प्रत्यक्षीकरण की शक्ति बढ़ी है, लेकिन इसके लिए कोई सख्त नियम नहीं है। यदि किसी को जांच की निगरानी या प्रभावी जांच के निर्देश चाहिए, तो इसके लिए आपराधिक प्रक्रिया कानून में वैकल्पिक उपाय उपलब्ध हैं, और ऐसे मामलों को सक्षम अदालत देखेगी।
यह याचिका उस व्यक्ति के भाई ने दायर की थी जो लंबी चिकित्सा छुट्टी के बाद अपनी ड्यूटी में शामिल नहीं हुआ और लापता हो गया था। राज्य ने कोर्ट को बताया कि उसे फरार घोषित किया गया और उसके खिलाफ गिरफ्तारी वारंट जारी किए गए। वह दिल्ली के मेट्रो स्टेशन और बाद में तिरुपति में पाया गया।
कोर्ट ने कहा कि बन्दी प्रत्यक्षीकरण तभी जारी किया जा सकता है जब कोई अवैध हिरासत हो। इस मामले में ऐसा कोई आरोप नहीं था। याचिकाकर्ता सिर्फ जांच की स्थिति से असंतुष्ट था।
इसलिए, न्यायालय ने याचिका खारिज कर दी और कहा कि ऐसे मामलों में सक्षम अदालत वैकल्पिक उपायों के तहत फैसला करेगी।