धारा 17-A का संरक्षण भ्रष्ट अधिकारियों के लिए ढाल नहीं बन सकता यदि ऑडियो/वीडियो में प्रथम दृष्टया साक्ष्य मौजूद हो: राजस्थान हाईकोर्ट

Update: 2025-08-04 09:06 GMT

राजस्थान हाईकोर्ट ने कहा कि यदि किसी आरोपी के विरुद्ध भ्रष्टाचार के आरोप में ऑडियो या वीडियो जैसे प्रथम दृष्टया इलेक्ट्रॉनिक साक्ष्य मौजूद हैं तो केवल धारा 17-A, भ्रष्टाचार निवारण अधिनियम के तहत पूर्वानुमति न मिलने के आधार पर उसके विरुद्ध अभियोजन न चलाना न्याय का उपहास होगा।

धारा 17-A के अनुसार यदि कोई अपराध किसी सरकारी अधिकारी द्वारा अपने पद का दायित्व निभाते हुए किसी निर्णय या सिफारिश से संबंधित हो तो उस पर जांच या पूछताछ से पहले सक्षम प्राधिकारी की स्वीकृति आवश्यक है। हालांकि यदि व्यक्ति को मौके पर ही रिश्वत लेते पकड़ा गया हो, तो अनुमति आवश्यक नहीं होती।

जस्टिस कुलदीप माथुर ने कहा कि यह सही है कि धारा 17-A का उद्देश्य सार्वजनिक अधिकारियों को दुर्भावनापूर्ण या निराधार शिकायतों से बचाना है, लेकिन यह प्रावधान भ्रष्ट अधिकारियों के लिए व्यक्तिगत लाभ हेतु की गई सिफारिश या निर्णय को छुपाने का माध्यम नहीं बन सकता।

कोर्ट ने कहा,

"यदि किसी आरोपी के विरुद्ध ऑडियो/वीडियो जैसे इलेक्ट्रॉनिक साक्ष्य उपलब्ध हैं, और यह जांचना आवश्यक नहीं है कि उसकी सिफारिश या निर्णय वस्तुनिष्ठ था या नहीं, तो ऐसे मामलों में अभियोजन की अनुमति न देना न्याय के खिलाफ होगा।"

यह टिप्पणी कोर्ट ने उस याचिका पर सुनवाई करते हुए की, जिसमें FIR रद्द करने की मांग की गई थी। FIR में याचिकाकर्ता और एक स्कूल की प्रिंसिपल पर शिकायतकर्ता के खिलाफ एक शिकायत निपटाने के एवज में रिश्वत मांगने का आरोप था। शिकायत के आधार पर ट्रैप की योजना बनाई गई, जिसमें सह-आरोपी प्रिंसिपल को रंगे हाथों पकड़ा गया और बाद में याचिकाकर्ता को भी गिरफ्तार किया गया।

याचिकाकर्ता का तर्क था कि वह मौके पर नहीं पकड़ा गया था और उस पर लगाया गया आरोप उसकी किसी आधिकारिक सिफारिश से संबंधित था, इसलिए धारा 17-A के तहत सक्षम प्राधिकारी की पूर्वानुमति के बिना जांच नहीं की जा सकती थी।

कोर्ट ने रिकॉर्ड और दलीलों पर विचार करते हुए पाया कि याचिकाकर्ता और सह-आरोपी के बीच हुई टेलीफोनिक बातचीत में रिश्वत की मांग को लेकर सहमति दिखाई देती है, जो याचिकाकर्ता की संलिप्तता का प्रथम दृष्टया प्रमाण है।

कोर्ट ने यह स्पष्ट किया कि जब भ्रष्टाचार का आरोप किसी फाइल पर लिए गए निर्णय या सिफारिश के मूल्यांकन पर आधारित हो, तभी पूर्व स्वीकृति आवश्यक होती है। लेकिन जब इलेक्ट्रॉनिक साक्ष्य सीधे रिश्वत की मांग को दर्शाते हैं, तब धारा 17-A का उपयोग अभियोजन को टालने के लिए नहीं किया जा सकता।

अंततः कोर्ट ने FIR रद्द करने की याचिका यह कहते हुए खारिज कर दी कि यह अनुरोध न्यायसंगत नहीं है।

टाइटल : चंद्रकांत मावत बनाम राज्य राजस्थान एवं अन्य

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