आपराधिक अपीलों की लंबी सूची सुनवाई के लिए लंबित: राजस्थान हाईकोर्ट ने 10 साल की सजा काट चुके आजीवन कारावास के दोषी की सजा निलंबित की

Update: 2024-06-17 09:31 GMT

राजस्थान हाईकोर्ट ने हत्या के अपराध में आजीवन कारावास की सजा पाए व्यक्ति की सजा निलंबित की। कोर्ट ने मामले में उसकी अपील लंबित रहने तक उसे जमानत पर रिहा किया। व्यक्ति ने धारा 389, सीआरपीसी के तहत आवेदन दायर किया था, जिसमें तर्क दिया गया कि वह 10 साल से अधिक समय से हिरासत में है और निकट भविष्य में अपील पर सुनवाई होने की कोई संभावना नहीं है।

धारा 389 सीआरपीसी में प्रावधान है कि यदि किसी ऐसे मामले में अपील लंबित है, जिसमें किसी व्यक्ति को दोषी ठहराया गया है तो अपीलीय अदालत उस व्यक्ति की सजा निलंबित करने और उसे जमानत पर रिहा करने का आदेश दे सकती है।

जस्टिस दिनेश मेहता की अगुवाई वाली खंडपीठ ने दोनों पक्षों की दलीलों पर ध्यान दिया और निम्नलिखित टिप्पणी की:

“अपीलकर्ता-आवेदक पहले ही 10 साल से अधिक की सजा काट चुका है। जाहिर तौर पर निकट भविष्य में वर्तमान अपील पर सुनवाई होने की कोई संभावना नहीं है। इस तथ्य को छोड़कर कि अपीलकर्ता-आवेदक ऐसे अपराध में शामिल है, जिसके कारण उसे आजीवन कारावास की सजा हुई, सजा के निलंबन से इनकार करने के लिए गंभीर परिस्थितियों के रूप में कोई भी बात रिकॉर्ड पर नहीं लाई गई है। आवेदक के वकील ने सोनाधर बनाम छत्तीसगढ़ राज्य (सोनाधर मामला) और सौदान सिंह बनाम उत्तर प्रदेश राज्य (सौदान सिंह मामला) के सुप्रीम कोर्ट के मामलों का हवाला दिया। सौदान सिंह मामले में न्यायालय ने टिप्पणी की थी कि कुछ अपवादों को छोड़कर, उन मामलों में जमानत दी जानी चाहिए, जहां दोषियों ने पर्याप्त लंबी सजा काट ली हो और हाईकोर्ट में अपील लंबित हो। सोनाधर मामले में भी न्यायालय ने इसी तरह की टिप्पणी की थी, “हमारा मानना ​​है कि सभी व्यक्ति जिन्होंने 10 साल की सजा पूरी कर ली है और अपील सुनवाई के करीब नहीं है और कोई भी परिस्थितियाँ नहीं हैं, उन्हें जमानत पर रिहा किया जाना चाहिए।”

यह तर्क दिया गया कि आवेदन अस्वीकार करने के लिए कोई कारण या गंभीर परिस्थितियां नहीं थीं, और न ही मामला किसी भी असाधारण परिस्थितियों में आता है।

दूसरी ओर, सरकारी वकील ने आवेदन के खिलाफ तर्क देते हुए कहा कि किया गया अपराध जघन्य है और सजा निलंबित करने से समाज में प्रतिकूल संदेश जाएगा।

तदनुसार, आवेदन स्वीकार किया गया, अपील के लंबित रहने के दौरान आवेदक की मूल सजा निलंबित कर दिया गया और उसे जमानत पर रिहा कर दिया।

केस टाइटल: दीपक खोरवाल बनाम राजस्थान राज्य

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