भर्ती विज्ञापन में सेवा नियम शर्तों पर भारी पड़े: राजस्थान हाईकोर्ट ने नगर निगम प्राधिकारी द्वारा सफाई कर्मचारियों की बर्खास्तगी खारिज की

Update: 2024-08-06 07:33 GMT

राजस्थान हाईकोर्ट ने हाल ही में विभिन्न सफाई कर्मचारियों को राहत प्रदान की, जिनकी सेवाएं इसलिए समाप्त कर दी गई थीं, क्योंकि उनके अनुभव पत्र को पद के लिए विज्ञापन/अधिसूचना में उल्लिखित सक्षम प्राधिकारी द्वारा प्रमाणित नहीं किया गया।

जस्टिस विनीत कुमार माथुर की एकल पीठ ने 2 अगस्त के अपने आदेश में कहा कि चूंकि राजस्थान नगर पालिका (सफाई कर्मचारी सेवा) नियम, 2012 में ऐसी आवश्यकता निर्धारित नहीं की गई, इसलिए विज्ञापन/अधिसूचना में उल्लिखित शर्त नियमों के लिए विदेशी थी।

नियम 6 का अवलोकन करते हुए जस्टिस माथुर ने कहा कि प्रावधान के अनुसार सफाई कर्मचारी के रूप में सीधी भर्ती चाहने वाले उम्मीदवार के पास किसी भी नगर पालिका, केंद्रीय या राज्य विभाग स्वायत्त निकाय/अर्ध सरकारी संस्थाओं में सफाई कर्मचारी के रूप में कम से कम एक वर्ष का अनुभव होना चाहिए, जो केंद्र या राज्य सरकार के आदेश के तहत गठित हो, जिसमें अनुबंध के आधार पर या प्लेसमेंट एजेंसियों के माध्यम से नियुक्त व्यक्ति भी शामिल हैं।

याचिकाकर्ताओं की दलीलों से सहमत होते हुए हाईकोर्ट ने कहा,

"किसी भी तरह से यह अनुमान नहीं लगाया जा सकता कि प्रमाण पत्र पर किसी विशेष प्राधिकारी द्वारा हस्ताक्षर किए जाने चाहिए। इसका मतलब यह है कि सफाई कर्मचारी/कर्मचारी के पद पर काम करने का एक वर्ष का अनुभव दिखाने वाला प्रमाण पत्र नियमों के अनुसार सफाई कर्मचारी के पद पर रहने के लिए किसी व्यक्ति को योग्य बनाने के लिए पर्याप्त था। वर्तमान मामले में चूंकि याचिकाकर्ताओं द्वारा स्वच्छता निरीक्षक के हस्ताक्षर के साथ एक वर्ष का अनुभव प्रमाण पत्र प्रस्तुत किया गया, इसलिए यह पात्रता की कसौटी पर खरा उतरता है।"

नियम विज्ञापन की शर्तों पर प्रभावी होगा

जस्टिस माथुर ने आगे कहा कि यदि कानून के किसी प्रावधान में किसी उम्मीदवार द्वारा किसी विशेष प्राधिकारी के हस्ताक्षर के तहत प्रमाण पत्र प्रस्तुत करने का प्रावधान नहीं है तो हस्ताक्षर के तहत ऐसा प्रमाण पत्र प्रस्तुत करने के लिए अधिसूचना में उल्लिखित शर्त स्पष्ट रूप से नियमों के विरुद्ध है।

पीठ ने कहा,

"नियम में उल्लिखित प्रावधान विज्ञापन में उल्लिखित शर्तों पर प्रभावी होगा। इसलिए याचिकाकर्ताओं द्वारा स्वच्छता निरीक्षक के हस्ताक्षर के तहत प्रस्तुत अनुभव के प्रमाण पत्र नियमों के प्रावधानों को पूरा करते हैं। इसलिए उन्हें वैध माना जाता है।

जस्टिस ने रेखांकित किया,

"ऐसा कोई भी प्रमाण-पत्र अभिलेखों में नहीं है, जिससे यह पता चले कि याचिकाकर्ताओं द्वारा प्रस्तुत प्रमाण-पत्र जाली या मनगढ़ंत हैं। इसलिए सभी उद्देश्यों और उद्देश्यों के लिए यह माना जाता है कि याचिकाकर्ता सफाई कर्मचारी के पद पर नियुक्ति के लिए आवश्यक अनुभव की पात्रता रखते हैं।"

हाईकोर्ट ने याचिकाकर्ताओं के वकील की इस दलील से भी सहमति जताई कि वे अनुभव प्रमाण-पत्र पर हस्ताक्षर की बारीकियों को समझने के लिए पर्याप्त साक्षर नहीं थे। कहा कि इसके लिए उन्हें दंडित नहीं किया जा सकता। हाईकोर्ट ने यह भी कहा कि चूंकि याचिकाकर्ता प्रतिवादियों के लिए 6 वर्षों से काम कर रहे थे, इसलिए न्याय भी उनके पक्ष में था। इसने कहा कि न्याय के उद्देश्य तभी पूरे होंगे, जब उन्हें उनकी सेवाओं को समाप्त करने के लिए प्राधिकरण द्वारा अपनाए गए हाइपरटेक्निकल रुख से अलग पद पर बने रहने की अनुमति दी जाएगी।

पक्षकारों द्वारा दलीलें

याचिकाएं सफाई कर्मचारी (सफाई कर्मचारी) के रूप में नियुक्त विभिन्न व्यक्तियों द्वारा दायर की गईं, जिन्हें 2018 के विज्ञापन/अधिसूचना के अनुसार नियुक्त किया गया। इसके बाद 2020 में बांसवाड़ा नगर परिषद द्वारा उनकी सेवाएं इस आधार पर समाप्त कर दी गईं कि पद की पात्रता आवश्यकताओं के अनुसार उनके द्वारा प्रस्तुत अनुभव पत्र पर अधिसूचना में उल्लिखित प्राधिकारी द्वारा हस्ताक्षर नहीं किए गए। इसके खिलाफ उन्होंने हाईकोर्ट का रुख किया।

याचिकाकर्ताओं के वकील ने तर्क दिया कि नियमों के नियम 6 के अनुसार किसी विशेष प्राधिकारी से प्रमाण पत्र प्राप्त करना अनिवार्य नहीं है। याचिकाकर्ता समाज के सबसे निचले पायदान से हैं और इस तरह की आवश्यकता के परिणामों को समझने के लिए पर्याप्त साक्षर नहीं हैं, इसलिए उन्होंने अपने विभाग के सेनेटरी इंस्पेक्टर से पत्र पर हस्ताक्षर करवा लिए, जिसके अधीन वे पहले से ही कर्तव्यों का निर्वहन कर रहे थे।

वकील ने आगे तर्क दिया कि एक बार यह स्थापित हो जाने के बाद कि आवेदकों के पास आवश्यक अनुभव है। अनुभव पत्र पर किसने हस्ताक्षर किए इस सवाल से ज्यादा फर्क नहीं पड़ता। खासकर जब नियमों में ऐसी कोई आवश्यकता का उल्लेख नहीं किया गया।

इस बीच प्रतिवादी अधिकारियों ने कहा कि हाईकोर्ट के 2019 के निर्देशों (अलग मामले में) के अनुसार, जांच शुरू की गई, जिसके अनुसार कारण बताओ नोटिस जारी किए गए। याचिकाकर्ता श्रमिकों द्वारा जवाब दाखिल किए गए। चूंकि अधिकारी जवाबों से असंतुष्ट थे, इसलिए श्रमिकों की सेवाएं समाप्त कर दी गईं, क्योंकि उनका अनुभव प्रमाण पत्र संबंधित विज्ञापन/अधिसूचना में उल्लिखित प्राधिकारी के हस्ताक्षर के तहत नहीं था।

योग्यता के तथ्य बनाम योग्यता के प्रमाण पर

जस्टिस माथुर ने डॉली छंदा बनाम अध्यक्ष, जेईई और अन्य में सुप्रीम कोर्ट के 2004 के फैसले का भी हवाला दिया, जिसमें कहा गया कि किसी मामले के तथ्यों के आधार पर किसी विशेष योग्यता के प्रमाण के लिए कुछ छूट दी जा सकती है। साथ ही कठोर सिद्धांतों को लागू नहीं किया जाना चाहिए, क्योंकि यह प्रक्रिया के क्षेत्र से संबंधित है।

हाईकोर्ट ने भारतीय खाद्य निगम बनाम रिमझिम में सुप्रीम कोर्ट के 2019 के निर्णय का भी उल्लेख किया, जिसमें सुप्रीम कोर्ट ने आवश्यक आवश्यकताओं के बीच अंतर किया, जो एक तथ्य था। इसका प्रमाण का तरीका जो सहायक था। सुप्रीम कोर्ट ने माना कि योग्यता के प्रमाण और वास्तव में उस योग्यता को प्राप्त करने के तथ्य के बीच अंतर है। तथ्य और उसके प्रमाण के बीच भ्रमित करना एक धुंधली समझ है।

याचिकाओं को स्वीकार करते हुए हाईकोर्ट ने याचिकाकर्ता कर्मचारियों की सेवाओं को समाप्त करने का आदेश रद्द कर दिया।

केस टाइटल- पायल और अन्य बनाम राजस्थान राज्य और अन्य और बैच याचिकाएँ

Tags:    

Similar News