राजस्थान हाईकोर्ट ने महामारी के कारण पूर्ण शैक्षणिक सत्र में शामिल न हो पाने वाले स्टूडेंट को नवोदय विद्यालय में एडमिशन की अनुमति दी
राजस्थान हाईकोर्ट ने स्कूल जवाहर नवोदय विद्यालय में स्टूडेंट को एडमिशन देने का निर्देश दिया, जो COVID-19 के कारण कुछ महीनों की देरी से शुरू होने वाली कक्षाओं के कारण पूरे शैक्षणिक सत्र में तीसरी कक्षा में शामिल नहीं हो पाया था, जबकि चयन दिशा-निर्देशों के अनुसार उम्मीदवार को पूर्ण शैक्षणिक सत्र बिताने के बाद तीसरी चौथी और पांचवीं कक्षा उत्तीर्ण करना आवश्यक है।
जस्टिस विनीत कुमार माथुर की पीठ ने कहा कि दिशा-निर्देशों में इस शर्त को निर्दिष्ट करने वाले खंड को इस तरह से उदारतापूर्वक पढ़ा जाना चाहिए कि- जो स्थिति स्टूडेंट के नियंत्रण से परे है, वह उसके एडमिशन के आड़े न आए।
“इस न्यायालय की राय में खंड 4.4 की व्याख्या उदार होनी चाहिए। इसलिए वर्तमान परिस्थितियों में याचिकाकर्ता को लाभ दिया जाना चाहिए। खासकर तब जब उसने क्रमशः IV और V कक्षाओं में अपना पूरा वर्ष का शैक्षणिक सत्र पूरा कर लिया हो। इसलिए इस न्यायालय का विचार है कि प्रतिवादियों द्वारा दिनांक 05.09.2024 के आदेश के माध्यम से एडमिशन से इनकार करने का आधार मनमाना और अनुचित है।”
न्यायालय एक स्टूडेंट द्वारा अपने प्राकृतिक अभिभावक के माध्यम से दायर एक रिट याचिका पर सुनवाई कर रहा था, जो स्कूल के प्रिंसिपल के फैसले के खिलाफ थी। इसमें उसे तीसरी कक्षा में एक पूर्ण शैक्षणिक सत्र पूरा नहीं करने के आधार पर एडमिशन देने से मना कर दिया गया था।
याचिकाकर्ता का मामला यह था कि उसके प्राथमिक विद्यालय में शैक्षणिक सत्र 2021-22, जब वह तीसरी कक्षा में था। अप्रैल 2021 में शुरू होने वाला था लेकिन COVID-19 के कारण यह कुछ महीनों की देरी से यानी सितंबर 2021 में शुरू हुआ। सत्र शुरू होने के तुरंत बाद याचिकाकर्ता ने इसमें भाग लिया। उसके बाद चौथी और पांचवीं कक्षा में पूरा शैक्षणिक सत्र दिया। हालांकि स्कूल की चयन परीक्षा पास करने के बाद भी उसे इस आधार पर प्रवेश देने से मना कर दिया गया कि वह तीसरी कक्षा में पूरा शैक्षणिक सत्र पूरा करने में विफल रहा। इस तथ्य के बावजूद कि शैक्षणिक वर्ष में अंतराल महामारी के कारण था, जो उसके नियंत्रण से बाहर था। यह तर्क दिया गया कि इस आधार पर प्रवेश से इनकार करना बहुत कठोर, मनमाना और अनुचित था।
इसके विपरीत प्रतिवादियों के वकील ने तर्क दिया कि स्कूल के परीक्षण दिशानिर्देशों के अनुसारपात्रता मानदंड में यह शामिल था कि उम्मीदवार को एक पूर्ण शैक्षणिक सत्र के लिए इनमें से प्रत्येक में भाग लेने के बाद तीसरी, चौथी और पांचवीं कक्षा उत्तीर्ण करनी चाहिए। चूंकि याचिकाकर्ता ने यह शर्त पूरी नहीं की, इसलिए वह एडमिशन पाने का हकदार नहीं था।
दलीलें सुनने के बाद न्यायालय ने कहा कि यह निर्विवाद तथ्य है कि देश महामारी का सामना कर रहा है। पहले कुछ महीनों तक कक्षाओं में न आने के कारण याचिकाकर्ता के नियंत्रण से बाहर हैं।
वैश्विक स्वास्थ्य संकट, शैक्षणिक संस्थानों के बंद होने, एडमिशन प्रक्रियाओं में देरी और शैक्षणिक समयसीमा को पूरा करने में अप्रत्याशित चुनौतियों जैसे व्यापक व्यवधानों के साथ मिलकर स्पष्ट रूप से अप्रत्याशित घटना का मामला बनता है। इन अनियंत्रित घटनाओं ने याचिकाकर्ता को तीसरी कक्षा में एक पूर्ण शैक्षणिक वर्ष की कक्षाएं लेने से रोक दिया।
इस पृष्ठभूमि में न्यायालय ने कहा कि वह शैक्षणिक संस्थान में प्रवेश के लिए दिशा-निर्देश देने में अपनी सीमाओं के प्रति सचेत है, जिसमें दिशा-निर्देशों से कोई विचलन उचित नहीं है। हालांकि प्राथमिक/उच्च प्राथमिक कक्षाओं में एडमिशन को ध्यान में रखते हुए उदार दृष्टिकोण की आवश्यकता थी। इसलिए याचिकाकर्ता को आवश्यकता में छूट प्रदान करने का विचार किया गया, जिससे परीक्षण दिशा-निर्देशों से कोई बड़ा विचलन न हो।
तदनुसार, याचिका को अनुमति दी गई। याचिकाकर्ता को तुरंत एडमिशन देने तथा उसे कक्षाओं में उपस्थित होने की अनुमति देने के निर्देश दिए गए।
टाइटल: देवेंद्र प्रजापत बनाम भारत संघ और अन्य।