UAPA मामलों में 90 दिन से अधिक की हिरासत बढ़ाने का अधिकार सिर्फ स्पेशल या सेशंस कोर्ट को, मजिस्ट्रेट को नहीं: राजस्थान हाईकोर्ट
राजस्थान हाईकोर्ट ने एक महत्वपूर्ण आदेश देते हुए मुख्य न्यायिक मजिस्ट्रेट (CJM) द्वारा UAPA आरोपी की न्यायिक हिरासत को अतिरिक्त 90 दिन बढ़ाने के आदेश को अवैध, अधिकार क्षेत्र से बाहर और विकृत मानते हुए रद्द कर दिया।
अदालत ने कहा कि इस तरह की हिरासत बढ़ाने का अधिकार केवल स्पेशल कोर्ट या उसकी अनुपस्थिति में सेशंस कोर्ट के पास है। मजिस्ट्रेट कोर्ट ऐसा आदेश पारित नहीं कर सकता।
जस्टिस सुदेश बंसल की एकल पीठ ने स्पष्ट किया कि UAPA के तहत दर्ज अपराध NIA Act 2008 की अनुसूची में शामिल अपराध हैं। ऐसे मामलों से संबंधित सभी कार्यवाही स्पेशल कोर्ट के अधिकार क्षेत्र में आती हैं।
अदालत ने कहा,
“न्यायिक मजिस्ट्रेट के पास आरोपी की 90 दिन तक की हिरासत पर विचार करने का अधिकार है लेकिन इससे अधिक अवधि के लिए हिरासत बढ़ाने के लिए सेशंस कोर्ट या स्पेशल कोर्ट का स्पष्ट आदेश आवश्यक है।”
मामले में 23 वर्षीय आरोपी पर सोशल मीडिया पर कथित रूप से धर्म विरोधी गतिविधियों और पाकिस्तानी नागरिकों से संपर्क रखने के आरोप लगे थे।
FIR दर्ज होने के बाद आरोपी को 90 दिनों की न्यायिक हिरासत में भेजा गया। उसके बाद CJM ने उसकी हिरासत 90 दिन और बढ़ा दी तथा उसके डिफॉल्ट बेल का आवेदन भी खारिज कर दिया।
हाईकोर्ट ने रिकॉर्ड्स और प्रासंगिक प्रावधानों का परीक्षण करने पर पाया कि UAPA मामलों में सिर्फ स्पेशल कोर्ट ही सुनवाई कर सकती है। ऐसे मामलों में यदि 90 दिन से अधिक की हिरासत आवश्यक हो तो पब्लिक प्रॉसीक्यूटर को स्पष्ट प्रगति रिपोर्ट और कारण प्रस्तुत करने होते हैं। साथ ही सुप्रीम कोर्ट के फैसले स्टेट ऑफ वेस्ट बंगाल बनाम जयेता दास का हवाला देते हुए कहा गया कि मजिस्ट्रेट सिर्फ 90 दिन तक की हिरासत के मामले में ही अधिकार रखते हैं।
अदालत ने कहा कि इस मामले में न तो पब्लिक प्रॉसीक्यूटर द्वारा कोई प्रगति रिपोर्ट दी गई, न ही सेशंस या स्पेशल कोर्ट का कोई स्पष्ट आदेश रिकॉर्ड पर था।
हाईकोर्ट ने टिप्पणी की,
“अभियुक्त की 90 दिन से अधिक की हिरासत बढ़ाने का CJM का आदेश पूर्णतः अवैध, विकृत और अधिकार क्षेत्र से परे था।”
डिफॉल्ट बेल के मुद्दे पर हाईकोर्ट ने माना कि याचिका भले ही सेशंस कोर्ट के समक्ष रखी जानी चाहिए थी लेकिन चूंकि डिफॉल्ट बेल आरोपी का अविच्छेद्य अधिकार है, जो अनुच्छेद 21 के तहत मिलने वाले मौलिक अधिकार से जुड़ा है। इसलिए तकनीकी पेचीदगियों में न पड़ते हुए आरोपी को बेल देने के अधिकार की पुष्टि की जाती है।
अंततः कोर्ट ने CJM के आदेशों को रद्द करते हुए याचिका स्वीकार की और निर्देश दिया कि ट्रायल कोर्ट आरोपी को डिफॉल्ट बेल पर रिहा करे।