अतिक्रमणकारियों के प्रति कोई सहानुभूति नहीं: राजस्थान हाईकोर्ट ने राज्य के अधिकारियों को अवैध निर्माण हटाने का निर्देश दिया, पुलिस को कार्रवाई की चेतावनी दी
राजस्थान हाईकोर्ट ने स्पष्ट किया कि अतिक्रमणकारियों के प्रति कोई सहानुभूति नहीं हो सकती। न्यायालय ने नगरीय विकास एवं आवास विभाग के अतिरिक्त मुख्य सचिव को निर्देश दिया कि वे विभिन्न शहरों और कस्बों के नगर निगमों और नगर परिषदों को शहर/कस्बों की सड़कों और फुटपाथों पर किए गए अवैध अतिक्रमणों को हटाने के लिए उचित कदम उठाने के निर्देश जारी करें।
मनोज टिबरेवाल आकाश मामले का हवाला देते हुए जस्टिस संजीव प्रकाश शर्मा और जस्टिस संजीत पुरोहित ने कहा,
"अतिक्रमण हटाने का ऐसा अभियान राज्य स्तर पर चलाया जाना चाहिए और अतिक्रमणों से कानून के अनुसार निपटा जाना चाहिए। ऐसे अतिक्रमणकारियों के प्रति कोई सहानुभूति नहीं दिखाई जा सकती और यदि यह पाया जाता है कि किसी कानूनी प्राधिकारी या पुलिस अधिकारी ने अतिक्रमण की अनुमति दी थी तो उनके खिलाफ भी उचित कार्रवाई की जा सकती है।"
न्यायालय ने यह भी कहा कि अतिक्रमणों को ध्वस्त करने से पहले संबंधित अतिक्रमणकारियों को अपने स्तर पर अतिक्रमण हटाने के लिए 7-8 दिन का समय दिया जाना चाहिए, जिसके बाद अतिक्रमण हटाने का खर्च अतिक्रमणकारियों से वसूला जाना चाहिए।
न्यायालय ने यह भी निर्देश दिया कि जयपुर विकास प्राधिकरण (JDA) और नगरीय विकास एवं आवास विभाग के अतिरिक्त मुख्य सचिव, राज्य राजमार्गों/राष्ट्रीय राजमार्गों द्वारा जयपुर शहर से जुड़ी सड़कों पर किए गए अतिक्रमणों को चिह्नित करने के लिए कदम उठाएं।
उपरोक्त उद्देश्य के लिए न्यायालय ने कहा कि मास्टर प्लान/क्षेत्रीय विकास योजना में मानक निर्धारित किए गए और उन्हें ध्यान में रखा जाना चाहिए।
योजना में निर्धारित सड़कों के माप के अनुसार,
"यदि सड़कों या पैदल यात्रियों के लिए बने रास्तों पर कोई अतिक्रमण पाया जाता है तो उसे हटा दिया जाएगा। यह स्पष्ट किया जाता है कि सड़कों के अलावा, फुटपाथों पर भी कोई अतिक्रमण नहीं रहना चाहिए।"
खंडपीठ ने कहा कि उपरोक्त प्रक्रिया पूरी की जाएगी और यदि कोई आपत्ति उठाई जाती है तो किसी भी ग्राम प्राधिकरण द्वारा जारी पट्टों या किसी अन्य न्यायालय के आदेशों पर भरोसा किया जा सकता है, क्योंकि कोई भी न्यायालय अतिक्रमण को प्रोत्साहित करने के लिए अधिकृत नहीं है इसलिए ये अतिक्रमण हटाने में बाधा नहीं बनेंगे।
मामले को 7 अक्टूबर तक स्थगित करते हुए न्यायालय ने इस संबंध में एक रिपोर्ट प्रस्तुत करने का निर्देश दिया।
खंडपीठ ने आगे कहा,
उस दिन विभाग का जिम्मेदार अधिकारी उपस्थित रहेगा और JDA में प्रवर्तन शाखा के प्रमुख के साथ-साथ अन्य विकास प्राधिकरणों के प्रवर्तन शाखाओं के प्रमुख भी न्यायालय में उपस्थित रहेंगे।
केस टाइटल: विजय कुमार बोयत पुत्र राजू बोयत एवं अन्य बनाम वैभव गालरिया, प्रमुख सचिव एवं अन्य।