राजस्थान हाईकोर्ट ने जांच अधिकारी के खिलाफ ट्रायल कोर्ट की निंदनीय टिप्पणियों को हटाने से किया इनकार
राजस्थान हाईकोर्ट ने हाल ही में सहायक उप निरीक्षक द्वारा दायर याचिका खारिज की, जिसमें आपराधिक मामले में जांच अधिकारी के रूप में कार्य करते समय ट्रायल कोर्ट द्वारा उसके बारे में की गई कुछ निंदनीय टिप्पणियों को हटाने की मांग की गई थी।
जस्टिस समीर जैन की पीठ ने कहा कि ट्रायल कोर्ट के आदेश ने किसी भी व्यक्ति/प्राधिकरण के खिलाफ अपमानजनक टिप्पणी करने से पहले न्यायालयों को निर्धारित ट्रिपल टेस्ट को संतुष्ट किया।
याचिकाकर्ता का मामला यह था कि उसे आपराधिक अतिचार के अपराध के लिए दायर FIR के संबंध में जांच अधिकारी के रूप में नियुक्त किया गया था, जिसमें याचिकाकर्ता द्वारा आरोप पत्र दायर किया गया। ट्रायल कोर्ट ने संदेह का लाभ देते हुए आरोपी को बरी कर दिया और याचिकाकर्ता के बारे में अपमानजनक टिप्पणी की।
दूसरी ओर सरकारी वकील ने दलील दी कि टिप्पणी केवल मामले में याचिकाकर्ता द्वारा की गई घटिया जांच के संबंध में की गई थी।
कोर्ट ने उत्तर प्रदेश राज्य बनाम मोहम्मद नईम के सुप्रीम कोर्ट के मामले पर भरोसा किया, जिसमें सुप्रीम कोर्ट ने निम्नलिखित तीन पैरामीटर निर्धारित किए थे, जिन्हें अदालतों द्वारा उन व्यक्तियों/प्राधिकारियों के खिलाफ अपमानजनक टिप्पणी करते समय विचार किया जाना चाहिए, जिनका आचरण अदालत के समक्ष विचाराधीन है:
(क) क्या जिस पक्ष का आचरण प्रश्नगत है, वह अदालत के समक्ष है या उसे अपना स्पष्टीकरण देने या बचाव करने का अवसर मिला है।
(ख) क्या उस आचरण से संबंधित अभिलेख पर साक्ष्य मौजूद हैं जो टिप्पणियों को उचित ठहराते है ।
(ग) क्या मामले के निर्णय के लिए उसके अभिन्न अंग के रूप में, उस आचरण पर टिप्पणी करना आवश्यक है।
कोर्ट ने पाया कि याचिकाकर्ता से ट्रायल कोर्ट द्वारा इस मामले में क्रॉस एक्जामिनेशन की गई, जिसमें उसने कई बार अपने बयानों को संशोधित किया। इसलिए याचिकाकर्ता को सुनवाई का उचित अवसर प्रदान किया गया।
दूसरा यह माना गया कि ट्रायल कोर्ट द्वारा याचिकाकर्ता के मनमाने कृत्यों जैसे घटिया जांच करना प्रक्रिया का पालन किए बिना अनुमान के आधार पर संपत्ति जब्त करना किसी भी जांच से पहले आरोपी को पुलिस स्टेशन बुलाना आदि को स्पष्ट रूप से बताते हुए इस तरह की टिप्पणियों को उचित ठहराने के लिए पर्याप्त सबूत पेश किए गए।
अंत में न्यायालय ने यह भी फैसला सुनाया कि याचिकाकर्ता द्वारा की गई लापरवाहीपूर्ण जांच ने सीधे तौर पर ट्रायल कोर्ट के समक्ष मामले को प्रभावित किया, क्योंकि उसके कारण ट्रायल कोर्ट को संदेह के लाभ के आधार पर आरोपी को बरी करने के लिए मजबूर होना पड़ा।
इस विश्लेषण के आधार पर न्यायालय ने माना कि ट्रायल कोर्ट का आदेश उचित तर्क था, जिसमें कोई अनियमितता नहीं दिखाई गई।
तदनुसार, याचिका खारिज कर दी गई।
केस टाइटल- गिरिराज शर्मा बनाम राजस्थान राज्य और अन्य।