वैकल्पिक उपाय उपलब्ध कोई असाधारण परिस्थिति नहीं बनी: राजस्थान हाइकोर्ट ने नाबालिग बेटे की कस्टडी के लिए हेबियस कॉर्पस याचिका खारिज की
राजस्थान हाइकोर्ट ने हाल ही में स्पष्ट किया कि बच्चों की कस्टडी के विवादों में हेबियस कॉर्पस याचिकाएं आमतौर पर सुनवाई योग्य नहीं होतीं, जब कानून के तहत वैकल्पिक उपाय उपलब्ध हो और कस्टडी विवाद काफी लंबे समय से चल रहा हो।
जोधपुर में बैठी पीठ ने फैसला सुनाते हुए कहा,
“आम तौर पर किसी बच्चे की कस्टडी के दावे के संबंध में क़ानून के तहत प्रभावी उपाय प्रदान किए जाते हैं, जिसमें विस्तृत जांच की जानी होती है और विशेष रूप से बच्चे के कल्याण को ध्यान में रखते हुए अंतिम निष्कर्ष पर पहुंचा जाता है। नाबालिग बच्चा कस्टडी के मुद्दे जो लंबे समय तक मौजूद रहते हैं, जैसा कि यहां शामिल है। कुछ असाधारण परिस्थितियों को छोड़कर हेबियस कॉर्पस में निपटाया नहीं जा सकता है।”
जस्टिस पुष्पेंद्र सिंह भाटी और जस्टिस राजेंद्र प्रकाश सोनी की खंडपीठ ने कहा कि हेबियस कॉर्पस याचिकाएं केवल असाधारण परिस्थितियों में ही सुनवाई योग्य हैं और इसमें ऐसे उदाहरण भी शामिल होंगे, जहां नाबालिग बच्चे की अवैध कस्टडी काफी हद तक साबित हुई है।
हालांकि, अदालत ने कहा कि याचिकाकर्ता और उसकी पत्नी अपने बेटे के जन्म के तुरंत बाद काफी समय से अलग रह रहे थे। 2023 में पत्नी की मृत्यु के बाद बच्चा अपने नाना-नानी के साथ रह रहा था। डिवीजन बेंच ने कहा कि ऐसी स्थिति में अदालत को अनुच्छेद 226 के तहत शक्तियों का प्रयोग करने की आवश्यकता नहीं है।
अदालत ने कहा कि पिता और मां दोनों 2020 से अलग रह रहे थे और अलग होने के बाद चार साल से अधिक समय तक पिता के पास बच्चे की कस्टडी नहीं थी। ऐसी परिस्थितियों में कस्टडी के मुद्दे पर तत्काल निर्णय की आवश्यकता नहीं पैदा होती, वह भी बंदी प्रत्यक्षीकरण याचिका के माध्यम से तो नही होती है।
अदालत ने स्पष्ट शब्दों में कहा कि बच्चे की कस्टडी के लिए हेबियस कॉर्पस याचिका में उठाए गए मुद्दे हमेशा मामले के तथ्यात्मक मैट्रिक्स पर निर्भर होंगे।
अदालत ने कहा कि कस्टडी के संबंध में कोई भी हालिया बदलाव बच्चे के सर्वोपरि कल्याण के लिए महत्वपूर्ण हो सकता है। यदि किसी बच्चे की कस्टडी में उसके कल्याण को प्रभावित करने वाले ऐसे अचानक और हालिया बदलाव को अदालत के ध्यान में लाया जा सकता है, तो संभावना है कि इसके लिए अनुच्छेद 226 के तहत न्यायनिर्णयन की आवश्यकता है।
अदालत ने कहा,
"जैसा भी हो मौजूदा मामले में यह दिखाने के लिए कुछ भी नहीं है कि पिता को हाल ही में किसी भी समय अपने बेटे की कस्टडी से वंचित किया गया।
अदालत ने आगे कहा,
"अलग होने के बाद से बच्चा मृत पत्नी के परिवार के साथ रह रहा है और पिता ने उसके पालन-पोषण में कोई भूमिका नहीं निभाई।"
अदालत ने कहा,
"इसलिए यह नहीं कहा जा सकता कि बच्चा 'अवैध कस्टडी' में है, जिसके लिए अदालत के हस्तक्षेप की जरूरत है।"
तेजस्विनी गौड़ और अन्य बनाम शेखर जगदीश प्रसाद तिवारी और अन्य (2019) 7 एससीसी 42 मामले में सुप्रीम कोर्ट के फैसले पर भरोसा करते हुए अदालत ने अनुमान लगाया कि हेबियस कॉर्पस याचिका केवल तभी उपलब्ध होगी, जब कोई सामान्य या प्रभावकारी उपाय उपलब्ध नहीं होगा।
हाइकोर्ट के समक्ष उत्तरदाताओं की ओर से उपस्थित सीनियर वकील ने तर्क दिया कि याचिकाकर्ता के लिए हिंदू अल्पसंख्यक और संरक्षकता अधिनियम 1956 के तहत उचित उपाय उपलब्ध है।
अदालत ने महसूस किया कि कोई 'असाधारण परिस्थितियां' नहीं हैं और हेबियस कॉर्पस याचिका बच्चे के कल्याण और संभावनाओं के बारे में किसी निष्कर्ष पर पहुंचने का साधन नहीं हो सकती। डिवीजन बेंच ने इस बात पर भी जोर दिया कि सक्षम अदालत के समक्ष विस्तृत जांच के माध्यम से नाबालिग बच्चे के सर्वोपरि कल्याण का आकलन किया जाना चाहिए, जहां याचिकाकर्ता सभी प्रासंगिक कानूनी मुद्दों को उठाने में सक्षम होगा।
इस प्रकार उपरोक्त टिप्पणियों के प्रकाश में और वर्तमान मामले के तथ्यात्मक मैट्रिक्स के साथ-साथ पूर्वोक्त पूर्ववर्ती कानूनों को देखते हुए वर्तमान याचिका को हेबियस कॉर्पस याचिका के रूप में इसकी स्थिरता के एकमात्र आधार पर खारिज कर दिया गया।
अदालत ने निष्कर्ष निकाला बंदी प्रत्यक्षीकरण याचिका 'असाधारण परिस्थितियों' के अभाव में सुनवाई योग्य नहीं है।
केस टाइटल- धर्मेंद्र चौधरी बनाम राजस्थान राज्य, सचिव-गृह विभाग और अन्य के माध्यम से।