सिर्फ़ संदेह के आधार पर जनप्रतिनिधि को निलंबित करना जनता के हितों के विपरीत : राजस्थान हाईकोर्ट

Update: 2025-09-26 11:39 GMT

राजस्थान हाईकोर्ट ने जैतारण नगरपालिका बोर्ड के चेयरमैन का निलंबन आदेश रद्द करते हुए कहा कि निर्वाचित जनप्रतिनिधि को बिना ठोस आरोप या प्रमाण के केवल संदेह या शिकायत के आधार पर निलंबित करना न केवल उसे चुनने वाली जनता की इच्छा के खिलाफ़ है, बल्कि उसके स्वयं के हितों को भी नुकसान पहुंचाता है।

जस्टिस कुलदीप माथुर की सिंगल बेंच ने कहा कि जनप्रतिनिधि से अपेक्षा की जाती है कि वे शासकीय अधिकारियों की सलाह और रिपोर्ट के आधार पर कार्य करें। यदि कोई फ़ाइल अधिकारियों द्वारा जांच-परख कर रखी जाती है तो सामान्य रूप से यह उम्मीद की जाती है कि प्रतिनिधि उसे स्वीकार करेगा जब तक कि उसके विपरीत कुछ प्रमाणित न हो।

अदालत ने टिप्पणी की,

"यदि किसी जनप्रतिनिधि को केवल शिकायतों या संदेह के आधार पर बिना किसी ठोस भ्रष्टाचार के आरोप या प्रमाण के निलंबित किया जाता है तो यह जनता की इच्छा के खिलाफ़ होगा। जनप्रतिनिधि के हितों के भी विपरीत होगा, क्योंकि उसे अपने पूरे कार्यकाल में जनता के लिए काम करने का अवसर नहीं मिलेगा।"

मामले में याचिकाकर्ता चेयरमैन को पट्टे जारी करने में कथित अनियमितताओं के आरोपों पर निलंबित किया गया। प्रारंभिक निलंबन को कोर्ट ने पहले ही स्थगित कर दिया। बाद में 58 आवासीय प्लॉटों के पट्टों को लेकर आई एक और शिकायत के आधार पर दोबारा निलंबन कर दिया गया।

याचिकाकर्ता ने दलील दी कि कार्यकारी अधिकारी की रिपोर्ट में कहीं भी स्पष्ट निष्कर्ष नहीं था कि पट्टों का आवंटन अवैध है। इसके बावजूद रिपोर्ट को आधार बनाकर निलंबन कर दिया गया।

अदालत ने कहा कि निलंबन का अधिकार होने मात्र से उसका प्रयोग करना आवश्यक नहीं है। यह एक विवेकाधीन शक्ति है, जिसे सतर्कता और न्यायसंगत ढंग से इस्तेमाल किया जाना चाहिए।

राज्य सरकार को निर्देश दिया गया कि पूरे रिकॉर्ड को सील कर न्यायिक अधिकारी के समक्ष रखा जाए ताकि वे शीघ्रता से न्यायिक जांच पूरी करें।

अंततः हाईकोर्ट ने याचिका स्वीकार कर ली और चेयरमैन का निलंबन रद्द कर दिया।

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