'नाम में क्या रखा है': शेक्सपियर का हवाला देते हुए राजस्थान हाईकोर्ट ने कहा- मां को बच्चे के शैक्षणिक रिकॉर्ड में अपना नाम दर्ज कराने का पूरा अधिकार
'नाटककार विलियम शेक्सपियर के "रोमियो एंड जूलियट से उद्धरण नाम में क्या रखा है?" का हवाला देते हुए राजस्थान हाईकोर्ट ने इस बात पर जोर देते हुए कि नाम ही सब कुछ है, कहा कि यह किसी की कानूनी, सामाजिक और भावनात्मक पहचान का आधार है। इसलिए जन्मदाता होने के नाते मां को अपने बच्चों के शैक्षणिक रिकॉर्ड में अपना नाम दर्ज कराने का पूरा अधिकार है।
जस्टिस अनूप कुमार ढांड ने अपने आदेश में कहा,
"विलियम शेक्सपियर के विश्व प्रसिद्ध नाटक "रोमियो एंड जूलियट" में प्रसिद्ध उद्धरण है- "नाम में क्या रखा है?" नाम के महत्व को दर्शाते हुए कहा गया कि यह किसी व्यक्ति की प्राकृतिक विशेषताओं को दर्शाता है, जो उसकी कृत्रिम/अर्जित विशेषताओं से अधिक महत्वपूर्ण है। नाम हममें से अधिकांश लोगों को अपने माता-पिता से मिलने वाला पहला उपहार है। यह हमारी कानूनी, सामाजिक और भावनात्मक पहचान का आधार बन जाता है। किसी का नाम रखना दुनिया में उसकी उपस्थिति को पहचानना है। कई मायनों में नामहीन होना अदृश्य होना है। नाम दर्शाते हैं कि हम कौन हैं और हम कहां से आए हैं। “किसी के नाम का गलत उच्चारण करना, अनदेखा करना या जानबूझकर बदलना उसे उसकी पहचान से वंचित करना है। जन्म प्रमाण पत्र से लेकर पासपोर्ट, शैक्षणिक रिकॉर्ड से लेकर व्यावसायिक उपलब्धियों आदि तक नाम अस्तित्व का कानूनी चिह्न है। इसे खोना या बदलना चाहे गलतियों, प्रवास या बल के कारण हो, पहचान और अधिकारों को लागू करने में संघर्ष का कारण बन सकता है। किसी के नाम को नकारना व्यक्तित्व को नकारना हो सकता है। तो नाम में जो है वह सब कुछ है..मां बच्चे की प्रतिष्ठा, सहानुभूति और सामाजिक कौशल को बढ़ावा देने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाती है। मां और उसके बच्चे के बीच का बंधन खास होता है। यह समय या दूरी से अपरिवर्तित रहता है। यह शुद्धतम प्रेम है, बिना शर्त और सच्चा। मां ही बच्चे को जन्म देती है, इसलिए उसे अपने बच्चों के शैक्षणिक प्रमाणपत्रों पर अपना नाम दर्ज करवाने का पूरा अधिकार है।”
कोर्ट ने इस बात पर प्रकाश डाला कि 2001 से पहले बच्चों के शैक्षणिक रिकॉर्ड में मां का नाम जोड़ने की कोई अवधारणा नहीं है, जो न केवल अनुचित था बल्कि स्पष्ट रूप से प्रतिगामी भी था। इसलिए समय बीतने के साथ बच्चों के शैक्षणिक प्रमाणपत्रों और डिग्री में माता-पिता दोनों का नाम शामिल करना अनिवार्य हो गया।
कोर्ट एक ऐसे व्यक्ति द्वारा दायर याचिका पर सुनवाई कर रहा था जिसके कक्षा 10वीं और 12वीं के शैक्षणिक रिकॉर्ड में उसकी मां का नाम सही करवाने के आवेदन को माध्यमिक शिक्षा बोर्ड, राजस्थान अजमेर (बोर्ड) ने खारिज कर दिया था।
याचिकाकर्ता का मामला यह था कि उसके शैक्षणिक रिकॉर्ड में उसकी मां के आधिकारिक नाम के बजाय गलती से उसका उपनाम दर्ज हो गया था।
इसे सही करवाने के लिए उसने बोर्ड को अपनी मां के आधिकारिक नाम को दर्शाने वाले सभी सहायक सार्वजनिक दस्तावेजों के साथ एक आवेदन प्रस्तुत किया। हालांकि, बोर्ड ने आवेदन को खारिज कर दिया।
बोर्ड ने प्रस्तुत किया कि आवेदन याचिका खारिज कर दी गई, क्योंकि याचिकाकर्ता द्वारा इस तरह के बदलाव के लिए निर्धारित प्रक्रिया का पालन नहीं किया गया था।
विवाद सुनने के बाद न्यायालय ने याचिकाकर्ता को निर्धारित प्रक्रिया का पालन करते हुए एक और आवेदन दायर करने का निर्देश दिया और बोर्ड को याचिकाकर्ता से नया आवेदन प्राप्त करने के बाद आवश्यक सुधार करने का निर्देश दिया।
दोनों पक्षों को 3 महीने की अवधि के भीतर अभ्यास पूरा करने का निर्देश दिया गया। तदनुसार, याचिका का निपटारा किया गया।
टाइटल: चिराग नरुका बनाम अध्यक्ष, माध्यमिक शिक्षा बोर्ड, राजस्थान अजमेर और अन्य।