पुलिस को अपराधियों जैसा काम करने दिया जाएगा तो आम जनता का भरोसा उठ जाएगा: अवैध वसूली के तथ्य सामने आने पर राजस्थान हाईकोर्ट ने कहा
मादक पदार्थों की तस्करी के आरोप में फंसाने की धमकी देकर जबरन वसूली और अवैध हिरासत के गम्भीर आरोप सामने आने पर राजस्थान हाईकोर्ट ने सोमवार (7 अक्टूबर) को दो पुलिसकर्मियों को तत्काल निलम्बित कर दिया। जोधपुर में जस्टिस फरजंद अली की एकलपीठ ने आदेश में कहा कि यदि कानून के रक्षक माने जाने वाले पुलिस अधिकारियों को अपराधियों जैसा काम करने दिया जाएगा और उनके खिलाफ भारी मात्रा में वसूली के आरोपों की अनदेखी की जाएगी तो आम जनता का पुलिस पर से भरोसा उठ जाएगा और समाज में रोष बढ़ेगा।
जमानत याचिका की सुनवाई के दौरान हाईकोर्ट ने पुलिस अधिकारियों द्वारा 70 लाख रुपए मांगने और 35 लाख रुपए वसूलने से सम्बन्धित इलेक्ट्रॉनिक साक्ष्यों का विवेचन करते हुए महसूस किया कि पुलिस अधिकारियों के खिलाफ लगाए गए आरोपों में दम है।
हाईकोर्ट ने कहा कि प्रथम दृष्टया रिकॉर्ड पर मजबूत सामग्री उपलब्ध है, जो जबरन वसूली और अवैध हिरासत के अपराध को अंजाम देने में पुलिस निरीक्षक जितेन्द्र सिंह, हेड कांस्टेबल स्वरूप बिश्नोई और अन्य की मिलीभगत को दर्शाती है। पर्चा कायमी रिपोर्ट और जब्ती रिपोर्ट में उल्लेखित समय और स्थान अन्य स्थानों पर लगे कैमरों के सीसीटीवी फुटेज से मेल नहीं खा रहा है।
कोर्ट ने आगे कहा कि वीडियो फुटेज से पता चलता है कि जिस वाहन से मादक पदार्थ बरामद किया गया है, उसे दिनांक 29.01.2023 को प्रात: 09.47 बजे नारनाडी रोड पर जाते हुए देखा जा सकता है तथा वही वाहन दिनांक 29.01.2023 को सायं 04.00 बजे उसी क्षेत्र से वापस आता है तथा रोचक बात यह है कि उसे एक सफेद रंग की कार द्वारा एस्कॉर्ट किया जा रहा है, जिसके बारे में आरोप है कि पुलिस अधिकारी निजी कार में वहां मौजूद थे तथा वे वाहन को एस्कॉर्ट कर रहे थे। नारनाडी रोड तथा बोरानाडा पुलिस स्टेशन बोरानाडा के क्षेत्राधिकार में आते हैं तथा यदि आरोपों को सत्य माना जाए तो यह बात सामने आएगी कि पुलिस निरीक्षक जितेन्द्र सिंह तथा उनके सहयोगी ने वाहन को किसी अन्य स्थान से उठाया तथा फिर उसे बासनी पुलिस स्टेशन के बाहर ले आए तथा उसके बाद तलाशी तथा जब्ती की औपचारिकताएं पूरी की गई।
हालांकि न्यायालय ने कहा कि NDPS Act के दण्डात्मक प्रावधानों के तहत अपराध कुछ आरोपियों द्वारा किया गया है, जो वाहन ले जा रहे थे या अन्य जो प्रतिबंधित पदार्थ में सवार थे और जिन्हें इसे प्राप्त करना था। साथ ही यह अनुमति नहीं दी जा सकती कि पुलिस अधिकारी आरोपियों से पैसे ऐंठने के उद्देश्य से उनकी अवैध गतिविधियों का लाभ उठा सकते हैं। यदि कोई अपराध किया जाता है, तो आरोपी को सजा मिलनी चाहिए और कोई भी दोषी बच नहीं सकता, लेकिन पुलिस अधिकारियों को इसका फायदा उठाकर आरोपी से पैसे ऐंठने की अनुमति नहीं दी जा सकती।
जस्टिस अली ने आदेश में लिखा,
यदि किसी पुलिस अधिकारी द्वारा रिश्वत मांगने, वसूली करने तथा अवैध हिरासत में रखने और झूठे मामले में फंसाने के सम्बन्ध में जांच किसी अन्य पुलिस अधिकारी से कराने दी जाएगी तो सच्चाई सामने आने की संभावना बहुत कम हो जाएगी। यह पुरानी कहावत है कि न्याय केवल किया ही नहीं जाना चाहिए, बल्कि ऐसा प्रतीत भी होना चाहिए कि न्याय हुआ है और इसलिए यह न्यायालय इस बात पर विचार कर रहा है कि निरीक्षक जितेन्द्र सिंह तथा अन्य पुलिसकर्मियों के खिलाफ भ्रष्टाचार के आरोपों की जांच सीबीआई जैसी केन्द्रीय एजेंसी को क्यों नहीं सौंपी जानी चाहिए। गंभीर आरोपों के सम्बन्ध में एक जांच दोषी पुलिस अधिकारियों अर्थात एसएचओ जितेन्द्र सिंह और हेड कांस्टेबल स्वरूपा राम और अन्य के खिलाफ विचाराधीन है या लंबित है और इस न्यायालय ने भी सच्चाई को उजागर करने के उद्देश्य से जांच की प्रक्रिया का निरीक्षण करने का मन बना लिया है। इस प्रकार, शासकीय नियमों के अनुसार, किसी कर्मचारी को जांच की अवधि के दौरान या जब गंभीर आरोपों से सम्बन्धित जांच विचाराधीन हो, निलम्बित रखा जा सकता है। इसलिए यह आदेश देना उचित समझा जाता है कि एसएचओ जितेन्द्र सिंह और हेड कांस्टेबल स्वरूपा राम को बिना किसी अनावश्यक देरी के तत्काल निलम्बित किया जाता है। इस मामले में सुचारू और निर्बाध जांच सुनिश्चित करने तथा दोषी अधिकारियों को जांच की प्रक्रिया को प्रभावित करने से रोकने के लिए आज से पांच दिनों की अवधि के भीतर पुलिस महानिदेशक/उपयुक्त प्राधिकारी द्वारा निलम्बन का औपचारिक आदेश पारित किया जाएगा। मामले को आगे की सुनवाई के लिए 17.10.2024 को सूचीबद्ध किया जाता है।
केस टाइटल - सत्यनारायण बनाम राजस्थान राज्य
रजाक खान हैदर @ लाइव लॉ नेटवर्क