गम्भीर प्रक्रियागत त्रुटि की अनदेखी नहीं कर सकता संवैधानिक न्यायालय: जमानत याचिका में अंतर्निहित शक्तियों का उपयोग करते हुए राजस्थान हाईकोर्ट ने कहा
राजस्थान हाईकोर्ट ने क्षेत्राधिकार के बिना केन्द्रीय नारकोटिक्स ब्यूरो की कार्रवाई और अभियोजन प्रक्रिया पर गंभीर सवाल उठाते हुए ब्यूरो को सम्बन्धित विशेष न्यायालय से मामले को वापस लेने और एक महीने के भीतर सक्षम न्यायालय में प्रस्तुत करने के आदेश दिए हैं।
NDPS Act के तहत दर्ज एक मामले में गिरफ्तार एक आरोपी की जमानत याचिका पर सुनवाई करते हुए न्यायालय ने पाया कि जब्ती की प्रक्रिया मध्य प्रदेश के मंदसौर में होने के बावजूद सीबीएन ने मामले राजस्थान के चित्तौडग़ढ़ में संस्थित करवाया है। जो कि निर्धारित कानूनी प्रक्रिया का उल्लंघन है। इसलिए सीबीएन को मामले को वापस लेकर क्षेत्राधिकार वाले सम्बन्धित न्यायालय में पुन: प्रस्तुत करने के निर्देश दिए जाते हैं।
जोधपुर में बैठी जस्टिस फरजंद अली की एकलपीठ ने कहा,
यह मामला इस न्यायालय के समक्ष केवल नियमित जमानत के लिए विचारार्थ आया था, लेकिन सुनवाई के दौरान गंभीर दोष पाए गए और इसलिए न्याय के हित में इसमें निहित असाधारण शक्तियों का प्रयोग करके निर्देश पारित करना उचित समझा गया। संवैधानिक न्यायालय के पास अंतर्निहित शक्तियां हमेशा उपलब्ध रहती हैं और इससे कोई फर्क नहीं पड़ता कि मामले की प्रकृति क्या है और रोस्टर ने उसे क्या सौंपा है। जिस दिन न्यायालयों की स्थापना हुई, उसी दिन अंतर्निहित शक्तियां उसके पास थीं, ताकि वह न्याय प्रदान करने के लिए आवश्यक आदेश पारित कर सके या कानून की प्रक्रिया के दुरुपयोग को रोकने के लिए आवश्यक और न्याय के उद्देश्यों को सुरक्षित करने के लिए समीचीन हो। धारा 482 सीआरपीसी का स्पष्ट प्रावधान उच्च न्यायालय के न्यायाधीश के पास पहले से ही अंतर्निहित, जन्मजात और निहित शक्ति की प्रकृति को संरक्षित और मान्यता देता है। यह न्यायालय इस तथ्य की अनदेखी नहीं कर सकता कि मामले में गंभीर त्रुटि उत्पन्न हुई है, जिसमें अभियोजन एजेंसी और निचली अदालत दोनों ने मुकदमे के स्थान के सम्बन्ध में स्पष्ट वैधानिक प्रावधान का ध्यान नहीं रखा है और इसलिए न्याय के हित में आदेश पारित करना उचित समझा जाता है, ताकि मादक पदार्थों के कब्जे वाले अपराधी को प्रक्रियागत त्रुटि का लाभ न मिले, बल्कि ऐसे गंभीर अपराध के आरोपी को मुक्त न किया जाए। इसलिए जमानत आवेदन पर निर्णय लिया जा रहा है और कानूनी प्रावधानों के अनुसार मुकदमे के उचित स्थान के लिए निर्देश जारी करने के संबंध में इसमें निहित शक्तियों का प्रयोग किया जा रहा है।
जस्टिस अली की पीठ ने आगे कहा,
न्यायालयों का उद्देश्य न्याय और केवल न्याय प्रदान करना है और इसी उद्देश्य से इसकी स्थापना की गई है। संवैधानिक न्यायालय होने के नाते, इस न्यायालय का यह कर्तव्य है कि वह नागरिकों के हितों की रक्षा करे, कानून के उल्लंघन की रक्षा करे और साथ ही ऐसे अभियुक्त के विरुद्ध विधिसम्मत अभियोजन के लिए उचित आदेश पारित करे, जिसके विरुद्ध अभिलेखों में पर्याप्त सामग्री उपलब्ध है।
केस टाइटलः धर्मेन्द्र सिंह बनाम भारत संघ
रजाक खान हैदर @ लाइव लॉ नेटवर्क