राजनीतिक प्रतिद्वंद्वियों द्वारा अपने राजनीतिक करियर को बर्बाद करने के लिए अपने विरोधियों को मामले में घसीटना आम बात: राजस्थान हाईकोर्ट ने SP से सरपंच के खिलाफ FIR की जांच की निगरानी करने को कहा
सरपंच के खिलाफ दर्ज FIR रद्द करने की याचिका पर राजस्थान हाईकोर्ट की जोधपुर पीठ ने पुलिस अधीक्षक (SP) को व्यक्तिगत रूप से जांच की निगरानी करने का निर्देश दिया। न्यायालय ने कहा कि ऐसे समय में जब राजनीतिक प्रतिद्वंद्वियों द्वारा अपने विरोधियों को उनके राजनीतिक करियर को नुकसान पहुंचाने के लिए मामले में घसीटना आम बात है, पुलिस को निष्पक्ष जांच करने का निर्देश देना उचित है।
न्यायालय एक सरपंच द्वारा दायर की गई याचिका पर सुनवाई कर रहा था, जिसमें उसके खिलाफ दर्ज FIR रद्द करने की मांग की गई, जिसमें शिकायतकर्ता ने आरोप लगाया कि याचिकाकर्ता के निर्देश पर कुछ लोगों ने उस पर हमला किया।
FIR BNS धारा 189(2), 115(2), 126(2) और 307 के तहत दर्ज की गई।
जस्टिस फरजंद अली ने अपने आदेश में कहा,
"प्रथम दृष्टया इस न्यायालय को लगता है कि चूंकि FIR के अवलोकन से ही संज्ञेय अपराध का पता चलता है। इसलिए जांच की जानी चाहिए। हालांकि, साथ ही यह भी महसूस किया जाता है कि वर्तमान युग में जब राजनीतिक प्रतिद्वंद्विता के बीच अपने प्रतिद्वंद्वी का नाम किसी मामले में घसीटने का चलन है, जिसका उद्देश्य उनके राजनीतिक करियर को नुकसान पहुंचाना है। इसलिए इस आपराधिक विविध याचिका का निपटारा करना उचित समझा जाता है साथ ही पुलिस को इस मामले में निष्पक्ष और शीघ्र जांच करने का निर्देश दिया जाता है।"
इस पृष्ठभूमि में न्यायालय ने याचिकाकर्ता को सभी दस्तावेजों के साथ एसपी के समक्ष अभ्यावेदन प्रस्तुत करने को कहा। उन्होंने कहा कि वह SP से अपेक्षा करता है कि वह अभ्यावेदन में किए गए कथनों पर विचार करेगा और आगे जांच अधिकारी को निष्पक्ष जांच करने और सच्चाई को रिकॉर्ड में लाने के लिए सभी आवश्यक कार्य करने का निर्देश देगा उसके बाद जांच के परिणाम को यथासंभव शीघ्रता से प्रस्तुत करेगा।
हाईकोर्ट ने SP को आगे जांच की व्यक्तिगत रूप से निगरानी करने का निर्देश दिया।
याचिकाकर्ता ने तर्क दिया कि FIR केवल उनकी प्रतिष्ठा को धूमिल करने और उनके राजनीतिक करियर को बर्बाद करने के उद्देश्य से दर्ज की गई थी। न्यायालय ने रिकॉर्ड पर मौजूद सामग्री का अवलोकन किया जिसमें एक वीडियो भी शामिल था, जिससे स्पष्ट रूप से पता चलता है कि याचिकाकर्ता घटना के समय मौके पर मौजूद नहीं था।
इसके अलावा यह माना गया कि याचिकाकर्ता को जांच के पूरे दौर के दौरान गिरफ्तार नहीं किया जाएगा। अगर जांच के बाद उसके खिलाफ कोई अपराध साबित होता है तो उसे गिरफ्तारी से पहले एक महीने का पूर्व नोटिस दिया जाएगा, जिससे वह अपने वैध अधिकारों का प्रयोग कर सके।
याचिका का निपटारा कर दिया गया।
केस टाइटल: ओम प्रकाश बनाम राजस्थान राज्य