क्या गंभीर आर्थिक अपराध के मामलों में गिरफ्तारी वारंट जमानती वारंट में बदला जा सकता है? राजस्थान हाईकोर्ट ने मामला बड़ी पीठ को भेजा
राजस्थान हाईकोर्ट ने इस प्रश्न को बड़ी पीठ को भेज दिया कि क्या PMLA (धन शोधन निवारण अधिनियम), Custom, CGST (केंद्रीय वस्तु एवं सेवा कर) के प्रावधानों के तहत गंभीर आर्थिक अपराधों के साथ-साथ भारतीय दंड संहिता(IPC)/भारतीय न्याय संहिता (BNS) के तहत दंडनीय जघन्य अपराधों में गिरफ्तारी वारंट को जमानती वारंट में बदला जा सकता है।
जस्टिस अनूप कुमार ढांड ने कहा,
"नकली चालानों में दिखाई गई कथित आपूर्ति के आधार पर नकली ITC देने के इरादे से नकली/अस्तित्वहीन फर्मों का निर्माण करना और इस तरह विभिन्न लाभार्थियों को नकली ITC देना। इस प्रकार करोड़ों रुपये की कर चोरी करना, जो देश की अर्थव्यवस्था को प्रभावित करता है, निश्चित रूप से गंभीर आर्थिक अपराधों के दायरे में आएगा।"
इस मामले में याचिकाकर्ता/करदाता के विरुद्ध Custom Act की धारा 132 के साथ CGST Act की धारा 132 के अंतर्गत शिकायत प्रस्तुत की गई, जिसमें आरोप लगाया गया कि इनपुट टैक्स क्रेडिट के रूप में 10,65,23,833/- रुपये का दावा किया गया।
मजिस्ट्रेट ने आक्षेपित आदेश के तहत करदाता के विरुद्ध संज्ञान लिया और करदाता की उपस्थिति सुनिश्चित करने के लिए गिरफ्तारी वारंट जारी किए।
अपर मुख्य न्यायिक मजिस्ट्रेट (आर्थिक अपराध), जयपुर महानगर-II ने CrPC की धारा 70(2) के तहत करदाता द्वारा गिरफ्तारी वारंट को जमानती वारंट में परिवर्तित करने के लिए दायर आवेदन खारिज कर दिया।
करदाता ने तर्क दिया कि करदाता के विरुद्ध आरोप केवल 6 लाख रुपये की कर चोरी का है, इसलिए इन परिस्थितियों में करदाता की गिरफ्तारी आवश्यक नहीं है।
विभाग ने दलील दी कि करदाता के खिलाफ 10,65,23,833 रुपये की कर चोरी का आरोप है। करदाता का उपरोक्त कृत्य जघन्य आर्थिक अपराध की श्रेणी में आता है।
पीठ ने कहा कि इस आर्थिक अपराध को, जिसमें गहरी साजिशें रची गईं और जिससे सरकारी खजाने को भारी नुकसान हुआ है, गंभीरता से लिया जाना चाहिए। इसे एक गंभीर अपराध माना जाना चाहिए, जो पूरे देश की अर्थव्यवस्था को प्रभावित कर रहा है। इस प्रकार देश की वित्तीय सेहत के लिए एक गंभीर खतरा पैदा कर रहा है।
केवल इसलिए कि कथित अपराध न्यायिक मजिस्ट्रेट (प्रथम श्रेणी) की अदालत में सुनवाई योग्य है। इसके लिए केवल पाँच वर्ष के कारावास का प्रावधान है, अभियुक्त के पक्ष में ज़मानत याचिकाओं पर निर्णय लेने का कोई सीधा-सादा फॉर्मूला नहीं हो सकता। पीठ ने कहा कि प्रत्येक ज़मानत याचिका पर उसके तथ्यों, परिस्थितियों और मामले के गुण-दोष के आधार पर निर्णय लिया जाना आवश्यक है।
पीठ ने करदाता के वकील की इस बात से असहमति जताई कि करदाता केवल इसलिए ज़मानत पाने का हकदार है, क्योंकि CGST Act, 2017 की धारा 132 के तहत कथित अपराध पांच साल के कारावास से दंडनीय है। इस पर प्रथम श्रेणी मजिस्ट्रेट की अदालत में सुनवाई हो सकती है।
पीठ ने कहा कि इस देश का एक आम आदमी राष्ट्र और राज्यों के विकास और निर्माण के लिए केंद्र और राज्य सरकारों को CGST और CGST सहित सभी प्रकार के करों का भुगतान कर रहा है, लेकिन याचिकाकर्ता जैसे लोग फर्जी फर्म बनाकर राष्ट्र और राज्यों के विकास में बाधा डाल रहे हैं और सरकारी खजाने को भारी नुकसान पहुंचा रहे हैं।
कोर्ट की समन्वय पीठों के परस्पर विरोधी विचारों को देखते हुए पीठ ने मामले को चीफ जस्टिस के पास भेज दिया ताकि एक विशेष/वृहद पीठ का गठन किया जा सके, जो यह उत्तर दे सके कि क्या आर्थिक अपराध या हत्या/बलात्कार/दहेज हत्या/डकैती जैसे जघन्य अपराध करने वाले अभियुक्तों के विरुद्ध जारी गिरफ्तारी वारंट को अभियुक्त के अधिकार के रूप में ज़मानती वारंट में बदला जा सकता है।
Case Title: Nirmal Kumar Sharma v. Union Of India