यााचिका में बिक्री समझौते को रद्द करने की मांग की गई हो तो क्या एड-वैलोरम कोर्ट फीस का भुगतान संपूर्ण बिक्री मूल्य पर होगा? पंजाब एंड हरियाणा हाईकोर्ट ने जवाब दिया
पंजाब एंड हरियाणा हाईकोर्ट ने स्पष्ट किया है कि जब मुकदमा केवल विक्रय समझौते को रद्द करने और बयाना की रकम को जब्त करने के लिए हो तो कोर्ट फीस केवल बयाना की रकम पर ही लगाया जाना चाहिए, न कि पूर्ण विक्रय प्रतिफल पर।
जस्टिस सुरेश्वर ठाकुर तथा जस्टिस सुदीप्ति शर्मा ने कहा, "मांगी गई बयाना रकम पर न्यायालय शुल्क यथामूल्य (Ad Valorem Court Fees) है, हालांकि इसे वादपत्र पर चिपकाया जाना आवश्यक है, बजाय कि सम्पूर्ण विक्रय प्रतिफल पर यथामूल्य न्यायालय शुल्क चिपकाया जाए...."
मौजूदा मामले में कोर्ट एक संदर्भ पर सुनवाई कर रही थी, जिनमें मुद्दों पर मतभेद था। कुछ पीठों का विचार था कि वादी यह घोषणा चाहता है कि बिक्री के लिए समझौता समाप्त हो गया है, तो उसे कुल बिक्री प्रतिफल पर यथामूल्य न्यायालय शुल्क का भुगतान करना होगा, जबकि कुछ पीठ इस निष्कर्ष पर पहुंची हैं कि बिक्री के लिए समझौता स्वामित्व का साधन नहीं है, और इसलिए, वादपत्र पर यथामूल्य न्यायालय शुल्क देय नहीं है।
मुख्य मामले में याचिकाकर्ता ने अतिरिक्त सिविल जज (वरिष्ठ डिवीजन) की ओर से पारित एक आदेश को रद्द करने की मांग करते हुए एक सिविल रिवीजन दायर किया था, जिसमें उन्हें एक सिविल सूट पर एड-वैलोरम कोर्ट फीस का भुगतान करने का निर्देश दिया गया था, जिसमें उन्होंने बिक्री के लिए समझौते को रद्द करने की मांग की थी।
सिविल मुकदमा विशिष्ट राहत अधिनियम, 1963 की धारा 27 के तहत दायर किया गया था, जिसमें 10 कनाल 1 मरला भूमि के लिए सात मई, 2010 को निष्पादित बिक्री के अनुबंध/समझौते को रद्द करने की मांग की गई थी और कुल बिक्री मूल्य 79.4 लाख रुपये से अधिक था। मुख्य प्रश्न यह था कि क्या याचिकाकर्ता बिक्री के लिए अनुबंध को रद्द करने की मांग करते समय बिक्री प्रतिफल राशि पर यथामूल्य न्यायालय शुल्क का भुगतान करने के लिए उत्तरदायी थे।
यह तर्क दिया गया कि याचिकाकर्ता ने केवल प्रतिवादी द्वारा संविदात्मक दायित्वों को पूरा करने में विफलता के कारण अनुबंध को रद्द करने की मांग की थी और यह घोषणा नहीं मांगी थी कि अनुबंध शून्य और अमान्य है।
ट्रायल कोर्ट में प्रतिवादी ने आदेश 7 नियम 11 सीपीसी के तहत एक आवेदन दायर किया था, जिसमें तर्क दिया गया था कि अनुबंध के कुल बिक्री प्रतिफल पर यथामूल्य न्यायालय शुल्क का भुगतान किया जाना चाहिए। इसलिए, याचिकाकर्ताओं को 79.4 लाख रुपये पर न्यायालय शुल्क का भुगतान करने का निर्देश दिया गया।
प्रस्तुतियां सुनने के बाद, न्यायालय ने नोट किया कि याचिकाकर्ता ने यह दावा नहीं किया कि समझौता शून्य या अवैध था, बल्कि केवल SRA की धारा 27 के तहत निरस्तीकरण की मांग की थी।
केस टाइटल: अनिल कुमार एवं अन्य बनाम मनिंदरबीर सिंह