पंजाब एंड हरियाणा हाईकोर्ट ने दूसरी शादी करने के कारण सेवा से बर्खास्त किए गए मुस्लिम वायुसेना अधिकारी को राहत दी

Update: 2024-10-09 04:41 GMT

पंजाब एंड हरियाणा हाईकोर्ट ने भारतीय वायुसेना (IAF) के एक अधिकारी की बर्खास्तगी का आदेश रद्द कर दिया, जिसने मुस्लिम पर्सनल लॉ के तहत दूसरी शादी की थी, यह देखते हुए कि उसने देशभक्त सैनिक के रूप में बेदाग सेवा की है। उसकी बर्खास्तगी आजीविका के अधिकार का उल्लंघन होगी।

IAF अधिकारी सेवा से बर्खास्त कर दिया गया, क्योंकि उसने सक्षम अधिकारियों की सहमति के बिना दूसरी शादी की थी। हालांकि न्यायालय ने कहा कि दूसरी शादी मुस्लिम कानून के तहत वैध है। वर्तमान मामले में यह पहली पत्नी की सहमति से की गई।

जस्टिस सुरेश्वर ठाकुर और जस्टिस सुदीप्ति शर्मा की खंडपीठ ने कहा,

"वर्तमान याचिकाकर्ता अपने पूरे परिवार के लिए अकेला कमाने वाला है, जिससे याचिकाकर्ता और उस पर आश्रितों के आजीविका के अधिकार पर गंभीर प्रतिकूल प्रभाव पड़ेगा।"

न्यायालय ने कहा कि याचिकाकर्ता और उसके परिवार के सदस्यों को आजीविका के किसी भी स्रोत से वंचित करना संविधान के अनुच्छेद 21 का उल्लंघन होगा। खंडपीठ ने यह भी माना कि अधिकारी ने भारतीय वायु सेना में अपनी सेवा दी है। एक देशभक्त सैनिक के रूप में उनका बेदाग रिकॉर्ड है।

ये टिप्पणियां मुस्लिम वायुसेना अधिकारी की याचिका पर सुनवाई करते हुए की गईं। वायुसेना अधिकारी ने 2012 में अपनी पहली शादी के दौरान अन्य मुस्लिम महिला से शादी की थी। वायुसेना के नियमों के अनुसार सक्षम प्राधिकारी से कोई अनुमति लिए बिना दूसरी शादी की गई थी।

याचिकाकर्ता के अनुसार, उसने दूसरी शादी करने के तथ्य का खुलासा किया था, जिसके परिणामस्वरूप उसके खिलाफ कोर्ट ऑफ इंक्वायरी आयोजित की गई। तदनुसार, कारण बताओ नोटिस जारी किया गया। उसके जवाब में याचिकाकर्ता ने 23 जून 2014 को अपना जवाब प्रस्तुत किया, जिसमें उसने बिना अनुमति के बहुविवाह करने के तथ्य पर विवाद नहीं किया, बल्कि उसने प्रस्तुत किया कि उसका धर्म चार वैध विवाहों की अनुमति देता है, बशर्ते कि वह सभी पति-पत्नी को समान रूप से भरण-पोषण कर सके और उन्हें समान अधिकार दे सके।

अधिकारी ने वायु सेना के लिए विनियमों की अनभिज्ञता का भी दावा किया। हालांकि, जांच करने के बाद उसे सेवा से बर्खास्त कर दिया गया।

प्रस्तुतियां सुनने के बाद न्यायालय ने कहा कि याचिका 2021 में दायर की गई, लेकिन न्याय को आगे बढ़ाने के लिए सीमा की बाधा याचिका पर निर्णय लेने के लिए आगे बढ़ने में बाधा नहीं बन सकती।

इसने यह भी नोट किया कि अधिकारी का बर्खास्तगी आदेश "कठोर, कथित रूप से किए गए दुष्कर्म के अनुपात से असंगत है।"

न्यायालय ने कहा,

"इसके अलावा, इस न्यायालय को अभिलेखों से यह भी पता लगाना होगा कि क्या आरोपित आदेश में कुछ विवेक का प्रयोग नहीं किया गया। वर्तमान याचिकाकर्ता द्वारा कथित दुराचार के लिए प्रासंगिक परिस्थितियों को कम करने के लिए क्या किया गया।"

खंडपीठ ने यह भी कहा कि मुस्लिम कानून के तहत दूसरी शादी वैध है। पहली पत्नी ने अपने पति की दूसरी शादी के बारे में शिकायत नहीं की, जिसका अर्थ है कि उसने सहमति दी थी तथा दूसरी पत्नी के साथ रहने के लिए तैयार थी।

खंडपीठ की ओर से बोलते हुए जस्टिस ठाकुर ने इस बात पर प्रकाश डाला कि नियमों के अनुसार कमांडिंग अधिकारी को मामले की रिपोर्ट के साथ यह सिफारिश भी करनी होती है कि कार्रवाई की जानी चाहिए या नहीं तथा तर्क भी देना होता है। हालांकि, वर्तमान मामले में इसका पालन नहीं किया गया।

न्यायालय ने कहा,

"हालांकि, उक्त अधिकार को ठंडे बस्ते में डाल दिया गया। इसके विपरीत वर्तमान याचिकाकर्ता को सेवा से बर्खास्तगी की अत्यंत कठोर सजा दी गई।"

उपरोक्त के आलोक में न्यायालय ने याचिका स्वीकार कर ली तथा बर्खास्तगी आदेश रद्द कर दिया।

केस टाइटल- XXX बनाम यूओआई और अन्य

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