बर्खास्त पुलिस अधिकारी लंबी सेवा के बावजूद पेंशन के हकदार नहीं: पंजाब एंड हरियाणा हाईकोर्ट

Update: 2025-03-25 07:52 GMT
बर्खास्त पुलिस अधिकारी लंबी सेवा के बावजूद पेंशन के हकदार नहीं: पंजाब एंड हरियाणा हाईकोर्ट

पंजाब एंड हरियाणा हाईकोर्ट: जस्टिस जगमोहन बंसल की एकल पीठ ने बर्खास्त पुलिस अधिकारी के लिए पेंशन लाभ की मांग करने वाली याचिका को खारिज कर दिया। न्यायालय ने माना कि पंजाब सिविल सेवा नियम और पंजाब पुलिस नियम के तहत सेवा से बर्खास्त कर्मचारी सेवा की अवधि की परवाह किए बिना पेंशन का हकदार नहीं है।

न्यायालय ने स्पष्ट किया कि पंजाब सिविल सेवा नियम के नियम 2.5 में बर्खास्त कर्मचारियों के लिए पेंशन पर स्पष्ट रूप से रोक लगाई गई। हालांकि विशेष परिस्थितियों में अनुकंपा भत्ते पर विचार किया जा सकता है। न्यायालय ने फैसला सुनाया कि बर्खास्तगी के बावजूद पेंशन देने से बर्खास्तगी के आदेश निरर्थक हो जाएंगे।

मामला

मलूक सिंह भारतीय सेना से रिटायर होने के बाद 1975 में पंजाब पुलिस में शामिल हुए थे। हालांकि, उन्हें 29 मई, 1999 को सेवा से बर्खास्त कर दिया गया था।

उन्होंने उच्च अधिकारियों के समक्ष इस बर्खास्तगी की अपील की और सरकार के समक्ष दया याचिका दायर की। असफल होने पर उन्होंने अपनी बर्खास्तगी को चुनौती देते हुए 2001 में हाईकोर्ट में एक रिट याचिका दायर की।

2003 में एक खंडपीठ ने उनकी याचिका का निपटारा कर दिया हालांकि उन्होंने सजा के आदेश में हस्तक्षेप नहीं किया लेकिन उन्होंने उनकी 21 साल की सेवा पर विचार किया और उन्हें पेंशन लाभ लेने की अनुमति दी।

अदालत ने अधिकारियों को चार महीने के भीतर उनके दावे पर फैसला करने का भी निर्देश दिया। इस आदेश के बाद सिंह ने पेंशन लाभ की मांग करते हुए अधिकारियों से संपर्क किया।

हालांकि17 मार्च, 2004 के आदेश द्वारा उनके दावे को खारिज कर दिया गया। व्यथित होकर सिंह ने इस अस्वीकृति को चुनौती देते हुए वर्तमान रिट याचिका दायर की।

इस याचिका के लंबित रहने के दौरान मलूक सिंह का निधन हो गया और उनके कानूनी प्रतिनिधियों ने मामले को आगे बढ़ाना जारी रखा।

तर्क

मलूक सिंह का प्रतिनिधित्व करने वाले ईश पुनीत सिंह ने तर्क दिया कि डिवीजन बेंच के पहले के आदेश और मनोहर लाल बनाम पंजाब राज्य और अन्य (2008 एससीसी ऑनलाइन पी एंड एच 1863) के मद्देनजर, सिंह सेवा से बर्खास्तगी के बावजूद पेंशन लाभ के हकदार थे।

उन्होंने तर्क दिया कि सिंह की 21 साल की अर्हक सेवा ने उन्हें उनकी बर्खास्तगी के बावजूद पेंशन के लिए पात्र बना दिया।

दूसरी ओर पंजाब के डीएजी अमन धीर ने तर्क दिया कि मलूक सिंह के बर्खास्तगी आदेश को डिवीजन बेंच ने बरकरार रखा था इसलिए वे पेंशन का दावा नहीं कर सकते।

उन्होंने तर्क दिया कि इससे बर्खास्तगी आदेश निरर्थक हो जाएगा। इसके अलावा पंजाब सिविल सेवा नियमों के नियम 2.5 पर भरोसा करते हुए उन्होंने तर्क दिया कि बर्खास्त सरकारी कर्मचारी को पेंशन नहीं दी जा सकती।

हालांकि विशेष परिस्थितियों में अनुकंपा भत्ते पर विचार किया जा सकता है।

अदालत का तर्क

सबसे पहले अदालत ने देखा कि डिवीजन बेंच ने पहले बर्खास्तगी आदेश को बरकरार रखा था जबकि पेंशन लाभ के लिए अधिकारियों से संपर्क करने की स्वतंत्रता दी थी।

उन्होंने नोट किया कि डिवीजन बेंच ने सीधे पेंशन नहीं दी बल्कि अधिकारियों से केवल दावे पर विचार करने के लिए कहा।

दूसरा पंजाब सिविल सेवा नियमों के नियम 2.5 की जांच करते हुए अदालत ने पाया कि बर्खास्त कर्मचारी स्पष्ट रूप से पेंशन का हकदार नहीं है।

हालांकि विशेष परिस्थितियों में उसे अनुकंपा भत्ता दिया जा सकता है। अदालत ने कहा कि अगर पेंशन को केवल सेवा की अवधि के आधार पर बढ़ाया जाता है तो कोई भी बर्खास्तगी या निष्कासन आदेश निरर्थक हो जाएगा।

इसके अलावा अदालत ने मनोहर लाल मामले को भी अलग किया। अदालत ने स्पष्ट किया कि पंजाब सिविल सेवा नियमावली के नियम 2.5 को उस मामले में पीठ के ध्यान में भी नहीं लाया गया।

तीसरा न्यायालय ने पंजाब पुलिस नियम (PPR) के नियम 16.2 का विश्लेषण किया। उन्होंने कहा कि अनुशासनात्मक प्राधिकारी को बर्खास्तगी आदेश पारित करते समय सेवा की अवधि और पेंशन दावों पर विचार करना आवश्यक है। हालांकि, एक बार ऐसा आदेश बरकरार रहने के बाद बर्खास्त कर्मचारी अधिकार के रूप में पेंशन का दावा नहीं कर सकता।

इसके अलावा PPR के नियम 9.18 की जांच करते हुए न्यायालय ने स्पष्ट किया कि रिटायरमेंट पेंशन केवल उन अधिकारियों को दी जाती है, जिन्हें सेवा पूरी करने के बाद सेवानिवृत्त होने की अनुमति है या जिन्हें योग्यता सेवा पूरी करने के बाद अनिवार्य रूप से रिटायर किया जाता है। उन्होंने माना कि इस नियम का उद्देश्य सेवा से बर्खास्त व्यक्तियों को पेंशन से वंचित करना है।

अंत में न्यायालय ने पाया कि याचिका दायर करने में सात साल की अस्पष्ट देरी हुई। चुनौती वाला आदेश 2004 में पारित किया गया था जबकि मलूक सिंह ने 2011 में ही न्यायालय का दरवाजा खटखटाया था।

इस प्रकार, न्यायालय ने याचिका खारिज कर दी। हालांकि उन्होंने पाया कि सिंह अभी भी पंजाब सिविल सेवा नियम के नियम 2.5 के तहत अनुकंपा भत्ते का दावा कर सकते हैं।

टाइटल- मलूक सिंह बनाम पंजाब राज्य एवं अन्य।

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