POCSO | यौन उत्पीड़न को साबित करने के लिए वीर्य का स्खलन आवश्यक नहीं: पंजाब एंड हरियाणा हाईकोर्ट
पंजाब एंड हरियाणा हाईकोर्ट ने यौन अपराधों से बच्चों के संरक्षण अधिनियम 2012 (POCSO Act) के तहत नाबालिग के खिलाफ बलात्कार और यौन उत्पीड़न के लिए दोषसिद्धि बरकरार रखी। कोर्ट ने यह देखते हुए दोषसिद्धि बरकरार रखी कि यौन उत्पीड़न के लिए वीर्य की उपस्थिति को साबित करने की आवश्यकता नहीं है।
जस्टिस सुरेश्वर ठाकुर और जस्टिस कुलदीप तिवारी की खंडपीठ ने कहा,
"जब नाबालिग पीड़िता पर यौन उत्पीड़न किया जाता है तो नाबालिग पीड़िता की योनि में वीर्य स्खलन की आवश्यकता नहीं होती। नतीजतन नाबालिग पीड़िता के योनि स्वैब में किसी भी तरह के वीर्य का न होना भी अभियोक्ता की गवाही की साक्ष्य प्रभावकारिता को खत्म नहीं करता।"
ये टिप्पणियां ऐसे व्यक्ति द्वारा दायर अपील पर सुनवाई करते हुए की गईं, जिसे POCSO Act की धारा 6 के तहत नाबालिग पर बलात्कार करने के लिए दोषी ठहराया गया और जिसे 2022 में 20 साल के कारावास की सजा सुनाई गई थी।
अदालत ने इस तर्क को खारिज कर दिया कि नाबालिग अभियोक्ता और आरोपी के बीच संबंध सहमति से बने थे।
न्यायालय ने कहा,
"अभियुक्त द्वारा उठाया गया कोई भी बचाव कि अभियोक्ता पर किया गया यौन उत्पीड़न, अभियोक्ता द्वारा अभियोक्ता को सहमति प्रदान करने का परिणाम था, बल्कि पूरी तरह से महत्वहीन हो जाता है।"
खंडपीठ ने यह भी उल्लेख किया कि अभियोक्ता ने न्यायालय में यह बयान दिया कि अभियुक्त ने उसे विवाह के लिए उकसाया और विवाह के बहाने कई अवसरों पर उसके साथ बलात्कार किया।
DNA रिपोर्ट का अवलोकन करते हुए न्यायालय ने उल्लेख किया कि मेडिकल जांच के समय पीड़िता के निजी अंग में वीर्य मौजूद नहीं था। संबंधित DNA विशेषज्ञ, संबंधित सामग्री से, जैसा कि उसे भेजा गया, पीड़िता की DNA प्रोफाइलिंग और अभियुक्त की DNA प्रोफाइलिंग के बीच कोई भी संगत मिलान नहीं कर सका।"
न्यायालय ने इस दलील को स्वीकार करने से इनकार किया कि वीर्य की अनुपस्थिति का मतलब यह होगा कि अभियोक्ता द्वारा दी गई गवाही झूठी है।
उपर्युक्त के आलोक में न्यायालय ने अपील खारिज की और दोषसिद्धि बरकरार रखी।
केस टाइटल: XXXX बनाम पंजाब राज्य