पंजाब एंड हरियाणा हाईकोर्ट ने भूतपूर्व सैनिकों के लिए नियमों के प्रावधानों को असंवैधानिक घोषित किया

Update: 2024-11-22 04:10 GMT

पंजाब एंड हरियाणा हाईकोर्ट ने पंजाब भूतपूर्व सैनिकों की भर्ती (प्रथम संशोधन) नियम, 2012 और 2018 के प्रावधानों को संविधान के विरुद्ध घोषित किया, जिसके अंतर्गत 1 जनवरी, 2012 के बाद सिविल पदों पर नियुक्त भूतपूर्व सैनिकों को पेंशन और वेतन वृद्धि के लाभ सीमित कर दिए गए तथा उस तिथि से पहले की अवधि के लिए बकाया राशि देने से इनकार कर दिया गया।

जस्टिस सुरेश्वर ठाकुर और जस्टिस सुदीप्ति शर्मा की खंडपीठ ने कहा कि नियमों ने पेंशनभोगियों को लाभ देने के लिए "मनमाना कट ऑफ तिथि निर्धारित की" तथा संविधान के अनुच्छेद 14 और 16 का उल्लंघन किया।

न्यायालय ने कहा,

"एक ही व्यक्ति या एक ही श्रेणी के व्यक्तियों के संबंध में की गई उक्त भिन्न धारणाएं स्वाभाविक रूप से किसी बोधगम्य अंतर के बिना हैं और न ही इनका प्रस्तावित उद्देश्य से कोई संबंध है।"

खंडपीठ ने कहा कि वाक्यांश अर्थात् "बशर्ते कि उपरोक्त लाभ 1 जनवरी, 2012 से काल्पनिक आधार पर वेतन निर्धारण पर स्वीकार्य होंगे और वेतन के ऐसे निर्धारण के परिणामस्वरूप कोई बकाया देय नहीं होगा" जैसा कि पहले 2012 के नियमों में और अब 2018 के नियमों में है, बल्कि दूसरे राष्ट्रीय आपातकाल के दौरान सेवा करने वालों की सैन्य वीरता की मान्यता को मनमाने ढंग से छीन लिया गया। ये टिप्पणियां पंजाब भूतपूर्व सैनिक भर्ती नियम, 1982 के नियम 8-बी में 10 अप्रैल, 2012 की अधिसूचना के माध्यम से पेश किए गए संशोधन के माध्यम से डाले गए प्रावधान की वैधता को चुनौती देने वाली याचिकाओं की एक श्रृंखला की सुनवाई के दौरान की गईं।

आक्षेपित प्रावधान द्वितीय राष्ट्रीय आपातकाल के दौरान सैन्य सेवा प्रदान करने वाले भूतपूर्व सैनिकों के लिए वेतन वृद्धि और पेंशन जैसे लाभों के लिए पात्रता मानदंड से संबंधित था।

प्रावधानों की जांच करने के बाद न्यायालय ने कहा कि प्रावधान को कम करके आंका जाना चाहिए, क्योंकि "वे सैन्य सैनिक पर एक भारी बोझ डालते हैं, जिसने स्पष्ट रूप से द्वितीय राष्ट्रीय आपातकाल के दौरान सेवा की, यह सुनिश्चित करने के लिए कि उसकी सेवामुक्ति की तारीख से एक वर्ष के भीतर और/या उसकी सेवामुक्ति के तीन वर्षों के भीतर सरकार में किसी भी सेवा या पद पर उसकी नियुक्ति सुनिश्चित की जाए, जिससे द्वितीय राष्ट्रीय आपातकाल के दौरान दी गई प्रासंगिक सैन्य सेवा को वेतन वृद्धि और पेंशन के उद्देश्य के लिए गणना योग्य बनाया जा सके।"

बता दें कि हाईकोर्ट ने हाल ही में यह निर्णय दिया कि भूतपूर्व सैनिकों द्वारा प्रथम आपातकाल के दौरान की गई सेवा को उस सरकारी पद से मिलने वाले पेंशन लाभों के लिए गिना जाएगा, जो सेवा के एक वर्ष बाद भी प्राप्त हुआ है, यदि भूतपूर्व सैनिकों के लिए आरक्षित पद निर्धारित समय के भीतर विज्ञापित नहीं किया जाता।

केस टाइटल: कमीकर सिंह एवं अन्य बनाम पंजाब राज्य एवं अन्य [अन्य संबंधित याचिकाएं]

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