यदि किसी व्यक्ति की अपील पर शीघ्र सुनवाई की संभावना नहीं तो दोबारा दोषी ठहराए गए व्यक्ति पर लगाई गई सजा को निलंबित किया जा सकता है: पंजाब एंड हरियाणा हाईकोर्ट

Update: 2024-09-28 06:40 GMT

पंजाब एंड हरियाणा हाईकोर्ट ने कहा कि किसी व्यक्ति जो पहले से ही किसी अन्य मामले में दोषी ठहराया गया पर लगाई गई सजा को भी निलंबित किया जा सकता है, जब उसकी अपील पर शीघ्र सुनवाई की कोई संभावना नहीं है।

जस्टिस सुरेश्वर ठाकुर और जस्टिस सुदीप्ति शर्मा की खंडपीठ ने टिप्पणी की कि अनुच्छेद 21 के तहत शीघ्र सुनवाई का अधिकार पुनः दोषी को भी उपलब्ध है।

उन्होंने कहा,

“सिद्धांत उस पुनः दोषी पर भी लागू माना जा सकता है, जो इस न्यायालय के समक्ष अपील के लंबित रहने के दौरान कारावास की मूल सजा के निष्पादन के लिए छूट चाहता है, खासकर तब जब अपील की शीघ्र सुनवाई की कोई संभावना नहीं है।"

पीठ ने कहा कि अपील दायर करने वाले दोषी की लंबी हिरासत धारा 389 सीआरपीसी के तहत सजा के निलंबन की राहत देने के लिए निर्णायक कारक होगी, जो BNNS की धारा 430 के समरूप है।

ये टिप्पणियां एकल न्यायाधीश के संदर्भ की सुनवाई के दौरान की गईं, जिसमें उसने समन्वय पीठ की राय को टाल दिया। मामला बड़ी पीठ को यह तय करने के लिए भेजा कि क्या NDPS Act के तहत बार-बार दोषी ठहराए जाने का तथ्य किसी दोषी को सजा के निलंबन से वंचित करेगा।

निर्णयों की श्रृंखला का उल्लेख करने के बाद न्यायालय ने कहा,

"दोषी की सजा के बाद विशेष रूप से जब संबंधित अपील पर कम से कम समय में सुनवाई होने की संभावना नहीं होती है, तो अपीलकर्ता को छूट देने के लिए प्रासंगिक शासी सिद्धांत के रूप में दोषी की लंबी कैद का उल्लेख किया जाता है।"

समानता को चित्रित करते हुए न्यायालय ने कहा कि जब एक दोहरा अपराधी, या पुनः दोषी को CrPc की धारा 439 के तहत जमानत दी जाती है तो यह सख्त कठोर शर्तों के अधीन होता है। यदि इन शर्तों का पालन नहीं किया जाता है तो जमानत रद्द कर दी जाती है। CrPc की धारा 389 के तहत भी सख्त शर्तों के अधीन निलंबन दिया जा सकता है। यदि उन शर्तों का पालन नहीं किया जाता है तो राहत रद्द की जा सकती है।

पीठ की ओर से बोलते हुए जस्टिस ठाकुर ने स्पष्ट किया कि पुनः दोषी की सजा के निलंबन के आवेदन को इस आधार पर पूरी तरह से खारिज नहीं किया जाना चाहिए कि उसे पहले ही किसी अन्य मामले में दोषी ठहराया जा चुका है।

उपर्युक्त के आलोक में न्यायालय ने इस बात पर प्रकाश डाला कि आपराधिक मुकदमे में शीघ्र सुनवाई अत्यंत महत्वपूर्ण है। दोषी को दी गई संवैधानिक गारंटी, उसकी अपील पर किए जाने वाले त्वरित निर्णयों के साथ-साथ, पूरी तरह से जीवंत हो जाएगी।

केस टाइटल- नरिंदर सिंह उर्फ मिंटा बनाम पंजाब राज्य

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