गिरफ्तारी के आधार और तलाशी के कारण दर्ज नहीं किए गए: पंजाब एवं हरियाणा हाईकोर्ट ने NDPS मामले में गिरफ्तारी को गैरकानूनी घोषित किया

Update: 2025-05-15 09:59 GMT

पंजाब एंड हरियाणा हाईकोर्ट ने एक एनडीपीएस (NDPS) मामले में आरोपी की गिरफ्तारी को अवैध करार दिया। कोर्ट ने कहा कि न तो आरोपी की संपत्ति की तलाशी के कारण दर्ज किए गए और न ही जांच एजेंसी द्वारा गिरफ्तारी के आधार प्रदान किए गए, जिससे भारतीय नागरिक सुरक्षा संहिता (BNSS) के प्रावधानों का उल्लंघन हुआ।

मामले में यह आरोप था कि गुप्त सूचना के आधार पर आरोपी के परिसर से बड़ी मात्रा में नशीले पदार्थों की कमाई विदेशी मुद्रा के रूप में बरामद हुई।

जस्टिस महाबीर सिंह सिंधु ने कहा,

“सीनियर एडवोकेट की यह दलील में दम है कि जांच एजेंसी के लिए यह अनिवार्य था कि वह याचिकाकर्ता को गिरफ्तारी के आधार प्रदान करे लेकिन वे इसमें पूरी तरह विफल रहे। इस तरह उन्होंने दंड प्रक्रिया संहिता (CrPC) की धारा 50 (BNSS की धारा 47) का उल्लंघन किया। साथ ही संविधान के अनुच्छेद 22 में प्रदत्त सुरक्षा उपायों का भी उल्लंघन किया। अतः याचिकाकर्ता की प्रारंभिक गिरफ्तारी पूरी तरह से अवैध थी और कानून की दृष्टि से अस्थिर है।”

कोर्ट ने आगे कहा कि BNSS की धारा 185 के तहत तलाशी के लिए कारण दर्ज करना आवश्यक है। ऐसा न करना तलाशी को अवैध बना देता है।

कोर्ट ने पाया कि याचिकाकर्ता का फगवाड़ा स्थित परिसर बंद है, जिसे पुलिस ने ताला तोड़कर खोला। लेकिन पुलिस रिकॉर्ड में कहीं भी ऐसा कोई कारण दर्ज नहीं है कि ताला तोड़ने की क्या जरूरत पड़ी। साथ ही BNSS के धारा 185(5) के तहत मजिस्ट्रेट को सूचित करने की प्रक्रिया का भी पालन नहीं किया गया।

यह सुनवाई याचिकाकर्ता द्वारा BNSS की धारा 528 के तहत दायर एक याचिका पर हो रही थी। यह FIR BNSS की धारा 309(4), 191(3) व 190 और NDPS Act की धारा 21-C, 25, 27-A और 29 के तहत दर्ज की गई। याचिका में मजिस्ट्रेट द्वारा आरोपी को तीन दिन की पुलिस रिमांड पर भेजने का आदेश रद्द करने की मांग की गई।

याचिकाकर्ता की ओर से सीनियर एडवोकेट बिपन घई ने दलील दी कि गिरफ्तारी के समय याचिकाकर्ता को गिरफ्तारी के आधार नहीं दिए गए, जो अनिवार्य है। इसलिए गिरफ्तारी स्वतः ही अवैध है। यहां तक कि परिवार को भी गिरफ्तारी की जानकारी नहीं दी गई।

राज्य की ओर से एडिशनल एडवोकेट जनरल टी.पी.एस. वालिया ने याचिका का विरोध करते हुए कहा कि याचिकाकर्ता एक गिरोह का सदस्य है, जो मादक पदार्थों की बिक्री कर रहा है। इससे राज्य को गंभीर नुकसान हुआ है। उन्होंने यह स्वीकार नहीं किया कि गिरफ्तारी के आधार नहीं दिए गए।

कोर्ट ने पुलिस दस्तावेजों की समीक्षा के बाद कहा,

“रिकॉर्ड में ऐसा कोई साक्ष्य नहीं है, जिससे साबित हो कि गिरफ्तारी के आधार याचिकाकर्ता को दिए गए केवल एक गिरफ्तारी मेमो उसे दिया गया था।”

कोर्ट ने 'पंकज बंसल बनाम राज्य' मामले का हवाला देते हुए कहा कि अब यह अनिवार्य है कि गिरफ्तारी के आधार की लिखित प्रति बिना किसी अपवाद के हर गिरफ्तार व्यक्ति को दी जाए।

जस्टिस सिंधु ने राज्य के पर्याप्त अनुपालन के तर्क को खारिज करते हुए कहा कि जब कानून में किसी आरोपी को कोई अधिकार या सुरक्षा दी गई हो तो उसका पालन पूरी तरह और सख्ती से किया जाना चाहिए।

राज्य का यह तर्क भी अस्वीकार किया गया कि मजिस्ट्रेट द्वारा गिरफ्तारी को मंजूरी देने के बाद अब गिरफ्तारी को चुनौती नहीं दी जा सकती।

कोर्ट ने “Sublato Fundamento Cadit Opus” (जब नींव गिरती है तो पूरा ढांचा गिर जाता है) नामक कानूनी सिद्धांत का हवाला देते हुए कहा कि एक बार जब गिरफ्तारी की वैधता खत्म हो जाती है तो आगे की प्रक्रिया भी टिकाऊ नहीं रह जाती।

उपरोक्त तथ्यों के आलोक में हाईकोर्ट ने मजिस्ट्रेट द्वारा पारित रिमांड आदेश को अवैध घोषित किया और आरोपी की गिरफ्तारी को गैरकानूनी ठहराया। याचिका को स्वीकार कर लिया गया।

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