हाईकोर्ट ने पंजाब सरकार पर पंचायत चुनाव में राज्य मशीनरी के "सत्ता के खुलेआम दुरुपयोग" का लगाया आरोप, कहा- निष्पक्ष चुनाव को नष्ट करने का प्रयास

Update: 2024-10-11 05:28 GMT

पंजाब एंड हरियाणा हाईकोर्ट ने पंजाब सरकार पर आगामी पंचायत चुनाव में नामांकन पत्र दाखिल करने के चरण में राज्य मशीनरी के "सत्ता के खुलेआम दुरुपयोग" का आरोप लगाया। इसने याचिका में शामिल गांवों के संबंध में आगे की चुनाव कार्यवाही पर अंतरिम रोक लगाई।

चुनाव 15 अक्टूबर को होने थे।

जस्टिस संदीप मौदगिल और जस्टिस दीपक गुप्ता की अवकाश पीठ ने कहा कि चुनाव शुरू होने से पहले ही अन्य उम्मीदवारों के नामांकन पत्रों को मनमाने ढंग से खारिज करके उम्मीदवारों को "निर्विरोध" विजेता घोषित कर दिया गया। कुछ मामलों में "राज्य में सत्ताधारी पार्टी" के अधिकारियों ने नामांकन पत्र फाड़ दिए। दावा किया कि पत्र खो गए हैं। कुछ अन्य मामलों में नामांकन पत्र बिना किसी कारण या झूठे कारणों से खारिज कर दिए गए।

अदालत ने अपने समक्ष पेश की गई तस्वीरों से पाया कि इस तरह की कार्रवाइयों के बाद घोषित किए गए अधिकांश "विजेता" सीएम भगवंत सिंह मान या आप विधायकों के साथ जश्न मनाते देखे गए। न्यायालय ने कहा कि किसी भी उम्मीदवार को निर्विरोध विजेता घोषित नहीं किया जा सकता, क्योंकि मतदाताओं के पास "नोटा" का विकल्प होता है।

न्यायालय ने कहा,

"यह असंवैधानिक है और कानून की प्रक्रिया का दुरुपयोग है, जैसा कि न्यायालय द्वारा विशेष रूप से इस तथ्य के आलोक में माना जा सकता है कि मतदाताओं को मतदान का अवसर प्रदान किया जाना चाहिए, जिसमें वे या तो प्रतियोगिता में छूटे हुए उम्मीदवार को या नोटा को वोट देने का विकल्प चुन सकते हैं। हालांकि वोट देने का अधिकार न तो मौलिक अधिकार है और न ही संवैधानिक अधिकार है, बल्कि यह एक वैधानिक अधिकार है, जिसे नोटा के पक्ष में भी नहीं छीना जा सकता।"

न्यायालय ने कहा,

"हमारा देश लोकतांत्रिक देश है, जिसमें स्वतंत्र इच्छा के साथ चुनाव करने का अधिकार है। ऐसा विकल्प केवल मतदान के इस वैधानिक अधिकार का उपयोग करके ही व्यक्त किया जा सकता है। पंजाब राज्य की कार्रवाई ने न केवल मतदाताओं और निर्वाचकों के ऐसे अधिकार पर प्रतिबंध लगाया, बल्कि यह हमारे संविधान के मूल ढांचे यानी स्वतंत्र और निष्पक्ष चुनाव को नष्ट करने का भी प्रयास है, जो अनिवार्य रूप से इसके दायरे में मतदाता को दबाव या जबरदस्ती के डर के बिना इसका उपयोग करने का अधिकार देता है।"

यह घटनाक्रम 250 से अधिक याचिकाओं के एक समूह में सामने आया है। न्यायालय ने कहा कि जिन उम्मीदवारों के नामांकन खारिज किए गए, उनके द्वारा दी गई जानकारी पर कथित संदेह के बारे में न तो सुनवाई का कोई अवसर दिया गया और न ही कोई जांच की गई।

न्यायालय ने कहा,

"किसी भी लिपिकीय त्रुटि/छोटी-मोटी विसंगतियों को सुधारने का कोई अवसर नहीं दिया गया, जो पंजाब पंचायती राज अधिनियम, 1994 की धारा 38 और 39 के तहत अयोग्यता का आधार भी नहीं हैं।"

खंडपीठ ने कहा,

"मतदान की तिथि पर जाए बिना कुछ उम्मीदवारों को निर्विरोध घोषित करने से मतदाताओं का अधिकार समाप्त हो जाता है, अर्थात किसी भी उम्मीदवार को वोट न देने का अधिकार, जिसे माननीय सुप्रीम कोर्ट ने पीपुल्स यूनियन फॉर सिविल लिबर्टीज के मामले (सुप्रा) में लोकतंत्र में अत्यंत महत्वपूर्ण माना, जिसमें इस तरह की गड़बड़ी प्रथम दृष्टया रिकॉर्ड पर स्पष्ट है। संविधान के अनुच्छेद 226 के तहत अपनी शक्तियों का प्रयोग करते हुए हाईकोर्ट द्वारा हस्तक्षेप का यह अर्थ नहीं है कि वह "चुनाव पर सवाल उठा रहा है।"

न्यायालय ने कहा कि स्थानीय भागीदारी स्तर पर चुनाव लोकतांत्रिक ढांचे में सूक्ष्म जगत के रूप में कार्य करते हैं। इसे स्वतंत्र और निष्पक्ष चुनावी प्रक्रिया के रूप में सुनिश्चित किया जाना चाहिए।

अगली तारीख तक याचिका में चुनौती दी गई जगहों के चुनावों पर रोक लगाते हुए न्यायालय ने कहा,

"प्रतिनिधि लोकतंत्र की वैधता और विश्वास को बनाए रखना अनिवार्य है, जिसके लिए अंतरिम आदेश जारी करने की आवश्यकता है। इसलिए इस न्यायालय के समक्ष विचाराधीन चुनाव में आगे की प्रक्रिया रिट याचिकाओं के वर्तमान समूह तक सीमित है। इस प्रकार अगली सुनवाई तक के लिए रोक लगाई जाती है।"

मामला अगली सुनवाई के लिए 16 अक्टूबर को सूचीबद्ध किया गया।

केस टाइटल: रमनजीत कौर बनाम पंजाब राज्य और अन्य [संबंधित मामलों के साथ]

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