ड्रग ओवरडोज़ मामले में पंजाब-हरियाणा हाईकोर्ट ने आरोपी को दी ज़मानत

Update: 2025-09-29 13:08 GMT

पंजाब एंड हरियाणा हाईकोर्ट ने युवक की कथित तौर पर ड्रग ओवरडोज़ से हुई मौत के मामले में आरोपी व्यक्ति को ज़मानत देते हुए कहा कि शुद्ध दवाएं अक्सर मिलावटी पदार्थों से ज़्यादा घातक हो सकती हैं।

याचिकाओं का अध्ययन करते हुए अदालत ने पाया कि मौत का कारण ड्रग ओवरडोज़ था। इस स्तर पर यह पता नहीं लगाया जा सकता कि अभियुक्त-याचिकाकर्ता ने मृतक को ज़बरदस्ती ड्रग का ओवरडोज़ दिया या मृतक ने ख़ुद ही इसे लिया।

अदालत ने कहा,

"इस संभावना से भी इनकार नहीं किया जा सकता कि मृतक ने बिना मिलावट वाली या कम मिलावट वाली दवा का सेवन किया हो। यह एक बुनियादी सच्चाई है कि दवाएं अक्सर मिलावटी होती हैं। ज़्यादातर मिलावट ही इसकी वजह होती है। हालांकि, कभी-कभी किसी व्यक्ति को शुद्ध या थोड़ी मिलावटी दवा मिल जाती है और वह उतनी मात्रा में दवा ले लेता है, जितनी पर वह निर्भर होता है। सहनशीलता से ज़्यादा मात्रा में सेवन करने पर ऐसे व्यक्ति के स्वास्थ्य पर प्रतिकूल प्रभाव पड़ने की संभावना हमेशा बनी रहती है।"

संगरूर सिविल अस्पताल में पड़े एक शव के संबंध में 10 मार्च, 2023 को शिकायत प्राप्त होने के बाद IPC की धारा 304, 201 और 34 के तहत FIR दर्ज की गई थी। पूछताछ के दौरान, डॉक्टर ने पुलिस को बताया कि पीड़िता की मौत 8 से 10 घंटे पहले नशीले पदार्थ के सेवन से हुई थी।

बयानों को सुनने के बाद अदालत ने पाया कि FIR में दर्ज तिथि तक याचिकाकर्ता की कुल हिरासत अवधि लगभग दो वर्ष और छह महीने थी।

अदालत ने कहा कि कानून की किसी भी अन्य शाखा की तरह जमानत कानून का भी अपना दर्शन है और न्याय प्रशासन में इसका महत्वपूर्ण स्थान है। जमानत की अवधारणा, कथित अपराध करने वाले व्यक्ति की स्वतंत्रता को प्रतिबंधित करने की पुलिस की शक्ति और कथित अपराधी के पक्ष में निर्दोषता की धारणा के बीच संघर्ष से उत्पन्न होती है। इसलिए वामन नारायण घिया बनाम राजस्थान राज्य मामले में सुप्रीम कोर्ट के निर्णय पर भरोसा किया गया।

बाबू सिंह एवं अन्य बनाम उत्तर प्रदेश राज्य मामले में सुप्रीम कोर्ट के निर्णय का हवाला देते हुए अदालत ने आगे कहा,

"ज़मानत से इनकार किए जाने पर व्यक्तिगत स्वतंत्रता का हनन हमारी संवैधानिक व्यवस्था का ऐसा अमूल्य मूल्य है, जिसे अनुच्छेद 21 के तहत मान्यता प्राप्त है। इसे अस्वीकार करने की न्यायिक शक्ति महान विश्वास है, जिसका प्रयोग, आकस्मिक रूप से नहीं बल्कि न्यायिक रूप से व्यक्ति और समुदाय पर पड़ने वाले प्रभाव की गहरी चिंता के साथ किया जा सकता है। जब विचाराधीन कैदियों को अनिश्चित काल तक जेल में रखा जाता है तो संविधान के अनुच्छेद 21 का उल्लंघन होता है।"

उपरोक्त के आलोक में याचिका स्वीकार कर ली गई।

Title: MANPREET ALIAS MANI v. STATE OF PUNJAB

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