आज के समय में 7 हज़ार का भरण-पोषण भत्ता बहुत मामूली राशि: पटना हाईकोर्ट ने कहा- स्वस्थ फल विक्रेता पति भुगतान करने में सक्षम
पटना हाईकोर्ट ने हाल ही में फैमिली कोर्ट का आदेश बरकरार रखा, जिसमें एक फल विक्रेता पति को CrPC की धारा 125 के तहत अपनी पत्नी को 7,000 प्रति माह भरण-पोषण के रूप में देने का निर्देश दिया गया था, क्योंकि न्यायालय ने कहा था कि उक्त राशि आज के समय में 'बहुत मामूली' राशि है।
जस्टिस बिबेक चौधरी की पीठ ने पति की आपराधिक पुनर्विचार याचिका यह कहते हुए खारिज की कि पत्नी के पक्ष में भरण-पोषण भत्ता देते समय वास्तविक आय नहीं बल्कि पति की कमाने की क्षमता मुख्य विचारणीय बिंदु है।
इस मामले में याचिकाकर्ता (मोहम्मद सद्दाम हुसैन) ने फैमिली कोर्ट के अगस्त, 2024 के आदेश को चुनौती दी थी। इसमें उसे अपनी पत्नी को 7,000 प्रति माह भरण-पोषण देने का निर्देश दिया गया था, जो उसकी याचिका दायर करने की तिथि 20 सितंबर, 2021 से प्रभावी है।
याचिकाकर्ता-संशोधनकर्ता ने तर्क दिया कि वह ठेले पर फल बेचकर केवल लगभग 3,000 प्रति माह कमाता है। आदेश का पालन करने के लिए उसकी आय पर्याप्त नहीं है।
उसने आगे तर्क दिया कि उसने अपनी पत्नी को घर पर रखने और पूरे सम्मान और गरिमा के साथ उसका भरण-पोषण करने की इच्छा व्यक्त की। उसने बिना किसी पर्याप्त कारण के इनकार कर दिया। इस आधार पर उसने दावा किया कि वह भरण-पोषण पाने की हकदार नहीं है।
पत्नी के वकील ने दलील दी कि हालांकि याचिकाकर्ता एक फल विक्रेता है, फिर भी वह फल बेचकर 20,000 से 25,000 प्रति माह कमाता है।
यह भी तर्क दिया गया कि आजकल, फल बेचने का व्यवसाय आय का एक आकर्षक स्रोत है। निचली अदालत ने उसकी आय 20,000 प्रति माह आंकी। तदनुसार, उसे अपनी पत्नी को 7,000 प्रति माह भरण-पोषण भत्ता देने का निर्देश दिया जो बिल्कुल भी अधिक नहीं है।
दोनों पक्षकारों को सुनने के बाद न्यायालय ने कहा कि भरण-पोषण भत्ता केवल घोषित आय के आधार पर नहीं, बल्कि पति की कमाने की क्षमता के आधार पर भी निर्धारित किया जाता है।
न्यायालय ने कहा,
"पत्नी के पक्ष में भरण-पोषण भत्ता देते समय मुख्य विचार वास्तविक आय का नहीं बल्कि पति की कमाने की क्षमता का होता है।"
इसके अलावा, वर्तमान समय में बढ़ती जीवन-यापन लागत पर जस्टिस चौधरी ने इस प्रकार टिप्पणी की,
"आज 7,000 रुपये प्रति माह किसी व्यक्ति के भरण-पोषण के लिए बहुत कम राशि है। आज एक व्यक्ति के लिए दो बार का साधारण भोजन करने पर प्रति माह 3,000 रुपये से अधिक खर्च होते हैं। इसके बाद प्रतिपक्ष के कपड़े दवा और जीवन की अन्य बुनियादी आवश्यकताओं पर खर्च होता है।"
इस पृष्ठभूमि में न्यायालय ने कहा कि याचिकाकर्ता एक स्वस्थ व्यक्ति है, जो फल बेचकर जीविका कमाता है। इसलिए फैमिली कोर्ट द्वारा निर्धारित राशि का भुगतान करने में सक्षम है।
परिणामस्वरूप उसकी याचिका खारिज कर दी गई।