पटना हाईकोर्ट ने शिक्षा के व्यवसायीकरण के आरोपों पर बिरला एजु-टेक के खिलाफ याचिका खारिज की, कहा- CBSE उप-नियमों के उल्लंघन का कोई ठोस साक्ष्य नहीं
पटना हाईकोर्ट ने बिरला एजु-टेक लिमिटेड पर शिक्षा के व्यवसायीकरण का आरोप लगाते हुए जांच की मांग करने वाली याचिका खारिज कर दी। कोर्ट ने कहा कि बिना किसी ठोस साक्ष्य के Birla Open Minds के तहत चलने वाले सभी स्कूलों के खिलाफ कोई व्यापक या सामान्य जांच नहीं की जा सकती।
जस्टिस अनिल कुमार सिन्हा ने अपने आदेश में कहा,
"इस न्यायालय का मत है कि Birla Open Minds School के नाम पर चल रहे सभी स्कूलों के खिलाफ कोई भी सामान्य जांच निर्देशित नहीं की जा सकती। हालांकि यदि किसी विशेष साक्ष्य के माध्यम से CBSE के समक्ष इसके उप-नियमों के उल्लंघन की जानकारी दी जाती है, विशेष रूप से फ्रेंचाइज़ी प्रक्रिया में हुए वित्तीय लेन-देन से संबंधित तो CBSE कानून व अपने नियमों के तहत कार्रवाई करने के लिए स्वतंत्र होगा।”
यह आदेश Sarojani Educational Trust द्वारा दायर रिट याचिका में दिया गया, जिसे ट्रस्ट के संस्थापक ट्रस्टी डॉ. नितीश कुमार ने दायर किया था।
मामले की पृष्ठभूमि:
याचिकाकर्ता ट्रस्ट ने जुलाई, 2019 में Birla Edutech Limited से Birla Open Minds School के संचालन के लिए फ्रेंचाइज़ी प्राप्त करने हेतु संपर्क किया था। इसके लिए 55 लाख+GST की मांग की गई, जो ब्रांड नाम, इन्फ्रास्ट्रक्चर विजिट आदि के लिए लिया गया।
इसके अतिरिक्त 14 लाख और मांगे गए जो बाद में दिए भी गए।
बाद में जब ट्रस्ट ने CBSE से 2023-24 शैक्षणिक सत्र के लिए संबद्धता प्राप्त करने की प्रक्रिया शुरू की तब उसे पता चला कि CBSE के उप-नियम इस तरह की फ्रेंचाइज़ी व्यवस्था के जरिए शिक्षा के व्यवसायीकरण पर रोक लगाते हैं। CBSE के 06.02.2014 के सर्कुलर के अनुसार, स्कूलों को एक हलफनामा देना होता है, जिसमें यह उल्लेख हो कि किसी ब्रांड नाम, लोगो या आदर्श वाक्य के उपयोग के बदले कोई वित्तीय लेन-देन नहीं हुआ।
इस जानकारी के बाद ट्रस्ट ने फ्रेंचाइज़ी प्रक्रिया को आगे न बढ़ाने का निर्णय लिया और प्रतिवादी को उल्लंघनों की जानकारी दी।
ट्रस्ट ने यह भी आरोप लगाया कि बिरला एजु-टेक ने अनुबंध से "फ्रेंचाइज़ी" शब्द हटाकर एक संशोधित अनुबंध देने की पेशकश की, जिससे CBSE नियमों का उल्लंघन छिपाया जा सके। उन्होंने आरोप लगाया कि यह एक व्यापक पैटर्न है, जिसके तहत विभिन्न संस्थानों से चुपचाप बड़ी धनराशि वसूली जाती है।
CBSE की ओर से दलीलें:
CBSE के वकील ने तर्क दिया कि याचिकाकर्ता एक निजी विवाद को रिट याचिका के माध्यम से कोर्ट में लाया, जबकि प्रतिवादी संस्था एक निजी संगठन है, जो विभिन्न स्कूलों को फ्रेंचाइज़ी प्रदान करता है। बिना किसी ठोस साक्ष्य के सभी स्कूलों पर जांच नहीं की जा सकती।
CBSE ने यह भी कहा कि यदि किसी विशेष स्कूल या संस्था के विरुद्ध कोई ठोस शिकायत या साक्ष्य प्रस्तुत किया जाता है तो 2018 में संशोधित उप-नियमों के तहत वह निश्चित रूप से कानूनी कार्रवाई करेगा।
कोर्ट का निष्कर्ष:
सभी पक्षों को सुनने के बाद हाईकोर्ट ने कहा कि किसी विशेष साक्ष्य के बिना कोई व्यापक जांच निर्देशित नहीं की जा सकती और याचिका खारिज कर दी।
केस टाइटल: Sarojani Educational Trust बनाम केंद्रीय माध्यमिक शिक्षा बोर्ड व अन्य