बिहार हिंदू धार्मिक न्यास अधिनियम के तहत आदेश के खिलाफ दायर एलपीए पटना हाईकोर्ट में खारिज

Update: 2025-05-03 11:58 GMT

पटना हाईकोर्ट ने बिहार हिंदू धार्मिक न्यास अधिनियम के तहत एक मंदिर के देवता और उसकी संपत्ति के प्रबंधक को हटाने से संबंधित आदेश के खिलाफ दायर लेटर्स पेटेंट अपील (LPA) को यह कहते हुए खारिज कर दिया कि जब किसी कानून में स्पष्ट रूप से आगे अपील पर रोक लगाई गई है, तो उसे अनदेखा नहीं किया जा सकता और उसका कड़ाई से पालन किया जाना चाहिए।

अदालत ने बताया कि धारा 55(2) के तहत यह स्पष्ट रूप से कहा गया कि धारा 55(1) के अंतर्गत पारित किसी भी आदेश के खिलाफ कोई आगे अपील नहीं की जा सकती।

अधिनियम की धारा 55(1) के अनुसार, जिला न्यायाधीश द्वारा इस अधिनियम के तहत पारित आदेश के खिलाफ हाईकोर्ट में अपील की जा सकती है, लेकिन धारा 55(2) यह स्पष्ट करता है कि उस अपीलीय आदेश के खिलाफ कोई और अपील मान्य नहीं होगी।

जस्टिस पी. बी. बजंथरी और जस्टिस आलोक कुमार सिन्हा की खंडपीठ ने कहा,

“जब कोई अधिनियम ही आगे अपील दायर करने पर रोक लगाता है तो उसे नजरअंदाज नहीं किया जा सकता। इस प्रकार की वैधानिक रोक का सख्ती से पालन किया जाना चाहिए। वर्तमान अपील एकल पीठ द्वारा धारा 55(1) के तहत अपीलीय अधिकार क्षेत्र में पारित आदेश के खिलाफ दायर की गई और धारा 55(2) उसके खिलाफ अपील पर रोक लगाता है, इसलिए यह लेटर्स पेटेंट अपील कानूनन अमान्य है।”

मामले की पृष्ठभूमि:

विजय कुमार सिंह जो मुजफ्फरपुर जिले के देवगना गर्भारा स्थित राम लक्ष्मण जानकी मंदिर के सेवायत थे को 9 जनवरी 2008 की अधिसूचना द्वारा बिहार राज्य धार्मिक न्यास बोर्ड के प्रशासक ने पद से हटा दिया।

सिंह ने 2008 में इस हटाए जाने को हाईकोर्ट में रिट याचिका के माध्यम से चुनौती दी, जिसे 2012 में यह कहते हुए निपटाया गया कि वह धारा 32(3) के तहत जिला जज के समक्ष आवेदन कर सकते हैं।

उन्होंने अदालत द्वारा दी गई समयसीमा से देरी से (14 जून 2012 को) आवेदन दायर किया और फिर 2014 में देरी माफी याचिका दायर की। जिला जज ने देरी माफ नहीं की और हाईकोर्ट से स्पष्टीकरण लेने को कहा।

इसके बाद उन्होंने समय विस्तार की मांग की, जिसे हाईकोर्ट ने 15 अक्टूबर 2014 को यह कहते हुए निपटाया कि यदि याचिकाकर्ता कारण बता सके, तो जिला न्यायाधीश देरी माफ कर सकते हैं। इसके बाद भी देरी माफ नहीं की गई।

सिंह ने इस आदेश के खिलाफ मिश्रित अपील दायर की जिसे एकल जज ने खारिज कर दिया।

इसके बाद उन्होंने लेटर्स पेटेंट अपील दायर की, जिसे खंडपीठ ने गैर-स्वीकार्य करार दिया।

अदालत ने यह भी कहा कि अपीलकर्ता के वकील द्वारा दिए गए निर्णय केवल निष्कर्षों से तर्क निकालने का प्रयास करते हैं, जो सही विधिक दृष्टिकोण नहीं है।

अदालत ने दोहराया,

“कोई निर्णय वही होता है जो उसने निर्णय लिया है ना कि वह जो निष्कर्ष निकाला जा सकता है।”

जब अपीलकर्ता के वकील से धारा 55(2) में निहित कानूनी रोक का सामना कराया गया तो वे कोई ठोस जवाब या निर्णय प्रस्तुत नहीं कर सके।

इसलिए अदालत ने माना कि अपीलकर्ता ऐसा कोई निर्णय नहीं दिखा सके जो इस वैधानिक रोक को पार कर सके और अपील को खारिज कर दिया।

टाइटल: विजय कुमार सिंह बनाम बिहार राज्य एवं अन्य

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