कस्टम्स एक्ट में उल्लंघन की आशंका होने पर जांच के लिए असीमित शक्तियां प्राप्त: पटना हाईकोर्ट
पटना हाईकोर्ट ने अपने हालिया निर्णय में कहा कि कस्टम्स एक्ट, 1962 उस स्थिति में असीमित जांच शक्ति प्रदान करता है, जब इसके प्रावधानों के उल्लंघन की आशंका हो।
जस्टिस मोहित कुमार शाह ने इस मामले की सुनवाई करते हुए टिप्पणी की,
“केवल कुछ तकनीकी आधारों पर जांच को प्रारंभिक चरण में ही रोका नहीं जा सकता। कस्टम्स एक्ट उस स्थिति में पूर्ण जांच शक्ति प्रदान करता है, जब यह विश्वास करने का कारण हो कि इसके प्रावधानों का उल्लंघन हुआ है।”
यह निर्णय सिविल रिट क्षेत्राधिकार मामले में दिया गया था, जो विशाल रोडवेज द्वारा दायर किया गया। इसमें जनवरी, 2020 में मुजफ्फरपुर (बिहार) में कस्टम्स (निवारक) अधिकारियों द्वारा जब्त किए गए एक ट्रक और 304 बोरियों (20,520 किलोग्राम सुपारी) की रिहाई की मांग की गई। याचिकाकर्ताओं ने जब्ती और कुर्की की कार्यवाही को ही कस्टम्स एक्ट के विरुद्ध बताया।
मामले की पृष्ठभूमि:
जब्त की गई सुपारी की खेप को विदेशी (इंडोनेशियाई) सुपारी होने का संदेह था। यह जब्ती एकीकृत तस्करी-रोधी इकाई (IASU) द्वारा उचित विश्वास के आधार पर की गई। याचिकाकर्ताओं ने दावा किया कि यह माल नष्ट हो सकता है, इसलिए उन्होंने कैश और बैंक गारंटी देकर माल की रिहाई की मांग की।
कस्टम्स अधिकारियों ने रिट याचिका की वैधता पर सवाल उठाए और कहा कि याचिका दाखिल करने वाले श्यामा कांत चौधरी ने यह स्पष्ट नहीं किया कि वे विशाल रोडवेज की ओर से अधिकृत हैं या नहीं। साथ ही वाहन के रजिस्टर्ड स्वामी अमित मिश्रा ने न तो खुद कोई याचिका दाखिल की न ही किसी को अधिकृत किया।
कोर्ट का अवलोकन:
याचिकाकर्ता स्वच्छ मंशा के साथ कोर्ट में नहीं आए। दोनों पक्षों से आरोप-प्रत्यारोप किए गए। कस्टम्स विभाग ने रिट याचिका की वैधता को लेकर गंभीर आपत्ति दर्ज करवाई। इस स्तर पर कोर्ट द्वारा हस्तक्षेप करने से जांच प्रक्रिया प्रभावित हो सकती है।
मामले के गुण-दोषों पर टिप्पणी करना फिलहाल उचित नहीं है, क्योंकि इससे याचिकाकर्ताओं के मामले को नुकसान हो सकता है।
अंततः कोर्ट ने आदेश दिया
याचिकाकर्ता चाहे तो अपने सभी मुद्दे उपयुक्त चरण पर कस्टम्स अधिकारियों के समक्ष उठा सकते हैं। कस्टम्स विभाग को निर्देश दिया गया कि वे कानून के अनुसार उचित समय में फैसला लें। कोर्ट ने यह भी अपेक्षा जताई कि जांच और उससे उत्पन्न निर्णय की प्रक्रिया 6 महीने के भीतर पूरी की जाए।
केस टाइटल: विशाल रोडवेज बनाम भारत संघ (UOI)