RP Act 1951 | हाईकोर्ट के पास चुनाव याचिका दायर करने में देरी को माफ करने या सीमा अवधि बढ़ाने का कोई अधिकार नहीं: इलाहाबाद हाईकोर्ट

Update: 2024-10-03 05:55 GMT

इलाहाबाद हाईकोर्ट ने कहा कि जनप्रतिनिधित्व अधिनियम, 1951 के तहत, उसके पास सीमा अवधि बढ़ाने या चुनाव याचिका दायर करने में देरी को माफ करने का अधिकार नहीं है।

जस्टिस समित गोपाल की पीठ ने यह भी कहा कि 1951 अधिनियम अपने आपमें संहिता है। इस प्रकार परिसीमा अधिनियम 1963 के प्रावधान चुनाव याचिकाओं पर लागू नहीं होते हैं। चुनाव याचिका दायर करना अधिनियम, 1951 की धारा 81 द्वारा सख्ती से शासित है।

न्यायालय ने कहा कि चुनाव याचिका के गुण-दोष को तब तक नहीं देखा और विचार नहीं किया जा सकता जब तक कि वह सुनवाई योग्य न हो और परिसीमा द्वारा वर्जित न हो।

संदर्भ के लिए जनप्रतिनिधित्व अधिनियम, 1951 की धारा 81 में प्रावधान है कि चुनाव याचिका निर्वाचित उम्मीदवार के चुनाव की तिथि से 45 दिनों के भीतर, लेकिन उससे पहले नहीं हाईकोर्ट में प्रस्तुत की जा सकती है या यदि चुनाव में एक से अधिक निर्वाचित उम्मीदवार हैं। उनके चुनाव की तिथियाँ अलग-अलग हैं तो उन दो तिथियों में से बाद वाली तिथि को।

अधिनियम की धारा 86 के अनुसार हाईकोर्ट को उन चुनाव याचिकाओं को खारिज करना आवश्यक है, जो अधिनियम की धारा 81, 82 और 117 का अनुपालन नहीं करती हैं।

न्यायालय याचिकाकर्ता (प्रहलाद सिंह) द्वारा दायर चुनाव याचिका पर विचार कर रहा था, जिसमें निर्वाचित उम्मीदवार योगेश चौधरी (प्रतिवादी) के विधान परिषद सदस्य के रूप में चुनाव को चुनौती दी गई।

याचिकाकर्ता का प्राथमिक मामला यह था कि प्रतिवादी ने प्रारूप सी-2 में अपने आपराधिक इतिहास का खुलासा और स्पष्टीकरण करते हुए अपने खिलाफ लंबित 06 मामलों का खुलासा किया, लेकिन धारा 420, 467, 468, 471, 120-बी, 504 और 506 आईपीसी के तहत अपराधों के लिए 1 अन्य आपराधिक मामले का खुलासा नहीं किया।

चुनाव याचिका 30 जुलाई, 2024 को हाईकोर्ट के रजिस्ट्रार जनरल के समक्ष 1951 अधिनियम की धारा 81 में निर्धारित 92 दिनों से अधिक समय के लिए प्रस्तुत की गई।

न्यायालय ने देखा कि 1951 अधिनियम में कोई भी प्रावधान देरी को माफ करने, यदि कोई हो, और सीमा अवधि के विस्तार के लिए शक्तियां नहीं देता है।

न्यायालय ने हुकुमदेव नारायण यादव बनाम ललित नारायण मिश्रा के मामले में सुप्रीम कोर्ट के फैसले का भी हवाला दिया, जिसमें सुप्रीम कोर्ट ने माना था कि परिसीमा अधिनियम की धारा 4 से 24, 1951 के अधिनियम के तहत कार्यवाही पर लागू नहीं होंगी।

इसके अलावा, न्यायालय ने कहा कि चुनाव याचिका पर सुनवाई करते समय हाईकोर्ट भारत के संविधान के अनुच्छेद 329 (बी) के तहत प्राधिकरण के रूप में कार्य करता है, जिसका अधिकार क्षेत्र अधिनियम, 1951 के वैधानिक प्रावधानों द्वारा परिचालित है।

इस संबंध में एकल न्यायाधीश ने थम्पनूर रवि बनाम चारुपारा रवि: (1999) 8 एससीसी 74 में सुप्रीम कोर्ट के फैसले पर भरोसा किया, जिसमें कहा गया कि चुनाव याचिका पर सुनवाई करने वाला हाईकोर्ट अपने आप में संवैधानिक न्यायालय के रूप में कार्य नहीं करता है और न ही उसके पास असाधारण संवैधानिक या अंतर्निहित शक्तियां हैं।

यह मानते हुए कि जब तक चुनाव याचिका सुनवाई योग्य नहीं होती। उस पर समय-सीमा का प्रतिबंध नहीं होता, तब तक मामले के गुण-दोष को नहीं देखा जा सकता। उस पर विचार नहीं किया जा सकता, न्यायालय ने चुनाव याचिका को अधिनियम, 1951 की धारा 81 सहपठित धारा 86 द्वारा प्रतिबंधित होने के कारण खारिज कर दिया।

केस टाइटल - प्रहलाद सिंह बनाम योगेश चौधरी

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