धार्मिक कर्मकांड पर रोक लगाकर साम्प्रदायिक सौहार्द नहीं बन सकती: थिरुपरंकुंद्रम दीपम मामले पर मद्रास हाईकोर्ट की टिप्पणी

Update: 2025-12-04 11:44 GMT

मद्रास हाईकोर्ट ने गुरुवार को थिरुपरंकुंद्रम पहाड़ी पर दीप प्रज्वलन से जुड़े मामले की सुनवाई के दौरान महत्वपूर्ण मौखिक टिप्पणी करते हुए कहा कि किसी एक समुदाय को उसके धार्मिक कृत्य करने से रोककर साम्प्रदायिक सौहार्द नहीं बनाया जा सकता। सौहार्द तभी संभव है जब विभिन्न समुदाय आपसी सह-अस्तित्व के साथ एक-दूसरे की आस्थाओं का सम्मान करें।

जस्टिस जी. जयचंद्रन और जस्टिस के.के. रामकृष्णन की खंडपीठ ने यह टिप्पणी उस अपील की सुनवाई के दौरान की, जो सिंगल जज द्वारा दिए गए उस आदेश के विरुद्ध दायर की गई, जिसमें दरगाह के पास स्थित थिरुपरंकुंद्रम पहाड़ी पर पत्थर के स्तंभ (दीपथून) पर कार्तिगई दीपम के अवसर पर दीप जलाने की अनुमति दी गई।

खंडपीठ ने मौखिक टिप्पणी में कहा,

“साम्प्रदायिक सौहार्द किसी एक पक्ष को उसके धार्मिक कर्मकांड से रोककर नहीं बनाया जा सकता। यह केवल सह-अस्तित्व से ही संभव है। यदि वे वर्ष में केवल एक बार बिना किसी को प्रभावित किए दीप जला रहे हैं तो इसमें परेशानी क्या है? सौ साल पहले परिस्थितियां और समझ अलग थीं, आज हालात अलग हैं। हमें यह भी नहीं पता कि सौ साल बाद ये परंपराएं जारी रहेंगी या नहीं।”

सुनवाई के दौरान जस्टिस जयचंद्रन ने दोनों पक्षों को संबोधित करते हुए कहा,

“आपकी भी संरचना है और उनकी भी संरचना है।”

गौरतलब है कि 1 दिसंबर को सिंगल जज ने अरुलमिघु सुब्रमणिया स्वामी मंदिर प्रबंधन को निर्देश दिया कि कार्तिगई दीपम के अवसर पर पहाड़ी की चोटी पर दीप जलाने की व्यवस्था की जाए। आदेश का पालन न होने का आरोप लगाते हुए याचिकाकर्ताओं ने अवमानना याचिका दायर की थी।

कल शाम करीब 6:05 बजे जब मामला सुना गया तो याचिकाकर्ताओं ने अदालत को बताया कि न्यायालय के आदेश का अब तक पालन नहीं हुआ है। इस पर सिंगल जज ने स्वयं याचिकाकर्ता-भक्त तथा दस अन्य व्यक्तियों को दीप जलाने की अनुमति दी और केंद्रीय औद्योगिक सुरक्षा बल (CISF) को सुरक्षा प्रदान करने का निर्देश भी दिया।

इस आदेश को चुनौती देते हुए मदुरै के जिला कलेक्टर, शहर पुलिस आयुक्त तथा अरुलमिघु सुब्रमणिया स्वामी मंदिर के कार्यकारी अधिकारी ने अब खंडपीठ में अपील दायर की।

गुरुवार सुबह सुनवाई के दौरान एडिशनल एडवोकेट जनरल जे. रविंद्रन ने अपीलकर्ताओं की ओर से दलील दी कि सिंगल जज ने शाम 5 बजे ही मामले को पूर्वाग्रह के साथ देख लिया था और बाद में याचिकाकर्ताओं को स्वयं दीप जलाने की अनुमति देकर न्यायिक अतिक्रमण किया। उन्होंने कहा कि जब प्रारंभिक आदेश के खिलाफ अपील लंबित थी तब इस प्रकार का अंतरिम राहत देना उचित नहीं था, विशेष रूप से तब जब अवमानना याचिका में ऐसी कोई प्रार्थना भी नहीं की गई थी। उन्होंने यह भी दलील दी कि जिस दीपथून पर दीप जलाने की बात हो रही है, वहां पिछले सौ वर्षों से किसी प्रकार का दीप प्रज्वलन नहीं हुआ।

हिंदू धार्मिक एवं धर्मार्थ बंदोबस्त (HR&CE) विभाग की ओर से भी कहा गया कि सिंगल जज ने यह टिप्पणी कर गलत किया कि मंदिर प्रशासन को पहले के आदेश से कोई आपत्ति नहीं हो सकती, जबकि उस आदेश के खिलाफ अपील पहले से लंबित थी।

वहीं अवमानना याचिका में याचिकाकर्ताओं की ओर से वकील एम.आर. वेंकटेश ने दलील दी कि दीपथून प्राचीन काल से अस्तित्व में है और पूर्व के मुकदमों में भी यह अनुमति दी गई कि दीप दरगाह से 15 मीटर के भीतर न जलाया जाए बल्कि किसी अन्य सुरक्षित स्थान पर दीप प्रज्वलित किया जाए, जिसका इस बार भी पालन किया गया। ब्रिटिश काल में दीप न जलाए जाने की दलील खारिज करते हुए उन्होंने कहा कि परंपराओं को अंग्रेजी शासन के समय से नहीं आंका जाना चाहिए, क्योंकि दीप प्रज्वलन प्राचीन तमिल संस्कृति का अभिन्न हिस्सा है।

दरगाह की ओर से सीनियर एडवोकेट टी. मोहन ने अदालत को बताया कि दरगाह प्रशासन भी सिंगल जज के प्रारंभिक आदेश के खिलाफ अपील दायर करना चाहता था और यह मान लेना कि दरगाह अपील नहीं करने वाली थी, एकतरफा निष्कर्ष है।

दोनों पक्षों की दलीलें सुनने के बाद खंडपीठ ने दोहराया कि सच्चा साम्प्रदायिक सौहार्द तभी संभव है, जब सभी समुदाय एक-दूसरे के धार्मिक आचरणों को स्वीकार करते हुए साथ-साथ शांतिपूर्वक सह-अस्तित्व में रहें।

अदालत ने कहा कि वह सभी पक्षों को सुनने के बाद शीघ्र ही इस मामले में अपना आदेश पारित करेगी।

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