पीड़ित पिता की याचिका पर मद्रास हाईकोर्ट ने ईशा फाउंडेशन के खिलाफ दर्ज आपराधिक मामलों का ब्यौरा मांगा

Update: 2024-10-01 06:10 GMT

अपने इंस्टाग्राम अकाउंट पर कथित रूप से आपत्तिजनक सामग्री अपलोड करने के लिए धारा 153A आईपीसी के तहत दर्ज FIR रद्द करने की याचिका खारिज करते हुए मध्य प्रदेश हाईकोर्ट ने कहा कि व्यक्ति का यह बचाव कि पोस्ट उसके अकाउंट को हैक करके अपलोड की गई थी, इस स्तर पर विचार नहीं किया जा सकता।

संदर्भ के लिए आईपीसी की धारा 153ए धर्म, जाति, जन्म स्थान, निवास, भाषा आदि के आधार पर विभिन्न समूहों के बीच दुश्मनी को बढ़ावा देने और सद्भाव बनाए रखने के लिए हानिकारक कार्य करने से संबंधित है।

जस्टिस जी.एस. अहलूवालिया की एकल पीठ ने अपने आदेश में कहा,

"याचिकाकर्ता ने स्वीकार किया कि उसके इंस्टाग्राम अकाउंट पर आपत्तिजनक पोस्ट अपलोड की गई। अब सुनवाई का एकमात्र प्रश्न यह है कि क्या यह याचिकाकर्ता की ओर से जानबूझकर किया गया कार्य था या किसी और ने उसके इंस्टाग्राम अकाउंट को हैक करके उक्त पोस्ट अपलोड की थी? यह याचिकाकर्ता का बचाव है जिस पर इस स्तर पर विचार नहीं किया जा सकता।

FIR को देखते हुए अदालत ने कहा कि इससे यह स्पष्ट होता है कि शिकायतकर्ता ने याचिकाकर्ता से पूछा था कि उसके इंस्टाग्राम अकाउंट पर अपमानजनक पोस्ट क्यों अपलोड की गई थी।

यह समझाने के बजाय कि उक्त पोस्ट किसी और ने उसके अकाउंट को हैक करके अपलोड की थी। याचिकाकर्ता ने शिकायतकर्ता को गाली देना और अपमानित करना शुरू कर दिया। उसकी धार्मिक भावनाओं को भी ठेस पहुंचाई, आदेश में कहा गया कि याचिकाकर्ता का यह आचरण दर्शाता है कि उसका बचाव गलत था।

अदालत ने कहा,

“याचिकाकर्ता का यह आचरण दर्शाता है कि उसके इंस्टाग्राम अकाउंट पर किसी और द्वारा आपत्तिजनक पोस्ट अपलोड करने का बचाव गलत है। चाहे वह कुछ भी हो। याचिकाकर्ता ने खुद ही अपने इंस्टाग्राम अकाउंट पर आपत्तिजनक पोस्ट अपलोड करने की बात स्वीकार की। इसलिए उसे शिकायतकर्ता के साथ जिस तरह से प्रतिक्रिया व्यक्त की गई उस तरह से प्रतिक्रिया करने का कोई अधिकार नहीं है। FIR में लगाए गए आरोप सही हैं या नहीं, इस पर इस समय विचार नहीं किया जा सकता है।”

हाईकोर्ट ने आगे कहा कि सीआरपीसी की धारा 482 या भारत के संविधान के अनुच्छेद 226 के तहत शक्ति का प्रयोग करते समय उसे आरोपों को सत्य मानकर विचार करना होगा। फिर इस निष्कर्ष पर पहुंचना होगा कि कोई अपराध बनता है या नहीं।

"संदिग्ध/आरोपी के बचाव को ध्यान में नहीं रखा जा सकता। इस तथ्य को ध्यान में रखते हुए कि संबंधित FIR में संज्ञेय अपराध का खुलासा किया गया, हस्तक्षेप करने का कोई मामला नहीं बनता है।”

हाईकोर्ट ने याचिका खारिज करते हुए कहा,

याचिकाकर्ता के वकील ने प्रस्तुत किया कि 15 अगस्त, 2023 को कुछ व्यक्तियों ने याचिकाकर्ता के इंस्टाग्राम अकाउंट को हैक करके आपत्तिजनक पोस्ट अपलोड की, जिससे दूसरे धर्म की भावनाओं को ठेस पहुंची। उन्होंने तर्क दिया कि उसी दिन याचिकाकर्ता ने संबंधित पुलिस स्टेशन को लिखित शिकायत दी, जिसमें कहा गया कि किसी अज्ञात व्यक्ति ने उनके इंस्टाग्राम अकाउंट पर आपत्तिजनक पोस्ट अपलोड की। 17 अगस्त 2023 को याचिकाकर्ता के पिता ने भी आपत्तिजनक पोस्ट अपलोड करने के संबंध में शिकायत की।

हालांकि, उसी दिन आईपीसी की धारा 294, 153-A, 295 (ए) और अनुसूचित जाति और अनुसूचित जनजाति के प्रावधानों के तहत अपराध के लिए एक FIR दर्ज की गई थी। SC/ST Act के तहत मामला दर्ज किया गहै। वकील ने कहा कि FIR में लगाए गए आरोप झूठे हैं और याचिकाकर्ता के पिता ने 17 अगस्त को शिकायत दर्ज कराकर अपनी आशंका पहले ही जाहिर कर दी थी।

केस टाइटल: मोहम्मद बिलाल बनाम मध्य प्रदेश राज्य और अन्य

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