मदुरै अधीनम उत्तराधिकार विवाद: मद्रास हाईकोर्ट ने मुकदमे में सीनियर पुजारी को प्रतिस्थापित करने के खिलाफ नित्यानंद सामी की याचिका खारिज की
मद्रास हाईकोर्ट ने हाल ही में नित्यानंद स्वामी द्वारा दायर याचिका खारिज की। उक्त याचिका में मदुरै के प्रमुख अधीनस्थ न्यायालय के आदेश को चुनौती दी गई। मामले में मदुरै के जूनियर पुजारी की नियुक्ति के संबंध में लंबित मुकदमे में उत्तराधिकारी सीनियर पादरी हरिहर ज्ञानसम्बंद देसिग परमाचार्य स्वामीगल को शामिल करने की अनुमति दी गई।
अप्रैल 2012 में, 292वें पादरी अरुणगिरिनाथ ज्ञानसम्बन्द देसिग परमाचार्य स्वामीगल द्वारा नित्यानंद को मदुरै अधीनम का जूनियर पुजारी नियुक्त किया गया। हालांकि, बाद में उसी वर्ष व्यापक आलोचना के परिणामस्वरूप नित्यानंद को पद से हटा दिया गया।
सीनियर पुजारी ने मुख्य मुकदमा इस घोषणा से राहत के लिए दायर किया कि शुरू में निष्पादित ट्रस्ट की घोषणा का कार्य शून्य और अमान्य था। नित्यानंद और उनके लोगों/एजेंटों को मदुरै अधीनम के प्रशासन और प्रबंधन में हस्तक्षेप करने से रोका जाए।
मुकदमा लंबित रहने के दौरान, सीनियर पुजारी को मुक्ति मिल गई और उनके उत्तराधिकारी हरिहर ज्ञानसम्बन्द देसिग परमाचार्य स्वामीगल 293वें अधीनाकार/पुजारी बन गए। हरिहर ने शिकायत में संशोधन करने और खुद को वादी के रूप में प्रतिस्थापित करने के लिए एक IA भी दायर की, जिसे ट्रायल कोर्ट ने यह कहते हुए अनुमति दी कि इससे मुकदमे का स्वरूप नहीं बदलेगा और नित्यानंद को कोई नुकसान नहीं होगा। ट्रायल कोर्ट के इस आदेश को चुनौती देते हुए वर्तमान पुनरीक्षण याचिका दायर की गई।
नित्यानंद ने दावा किया कि सीनियर पुजारी के जीवनकाल में ही उन्होंने नित्यानंद को अपना उत्तराधिकारी घोषित किया था। इसलिए हरिहर को अधीनम के 293वें उत्तराधिकारी के रूप में नामित नहीं किया जा सकता। उन्होंने तर्क दिया कि जैसे ही सीनियर पुजारी ने मुक्ति प्राप्त की अधीनाकार का पद स्वतः ही उनके पक्ष में आ गया और कोई अन्य व्यक्ति इस पद के लिए दावा नहीं कर सकता।
उन्होंने आगे तर्क दिया कि हरिहर को मुकदमे में खुद को प्रतिस्थापित करने की अनुमति देना मुख्य मुकदमे को ही डिक्री करने के समान होगा, जो कानून के तहत स्वीकार्य नहीं है। उन्होंने बताया कि सीनियर पुजारी ने अपनी व्यक्तिगत क्षमता में मामला दायर किया। इस प्रकार हरिहर को कोई अधिकार नहीं मिलेगा।
दूसरी ओर, हरिहर ने तर्क दिया कि नित्यानंद का नामांकन रद्द किया गया और नामांकन पर सवाल उठाने का उनके पास कोई अधिकार नहीं था। उन्होंने कहा कि 293वें पुजारी के रूप में उनकी नियुक्ति को हिंदू धार्मिक और धर्मार्थ बंदोबस्ती विभाग के आयुक्त ने रिकॉर्ड पर लिया। ऐसी परिस्थितियों में वह कानूनी रूप से मुकदमे में खुद को प्रतिस्थापित करने के हकदार हैं।
इस दलील पर ध्यान देते हुए जस्टिस आर विजयकुमार की पीठ ने कहा कि संशोधन के लिए आवेदन में किसी हस्तक्षेप की आवश्यकता नहीं है लेकिन यह स्पष्ट किया कि हरिहर का प्रतिस्थापन केवल मुकदमे को आगे बढ़ाने के सीमित उद्देश्य के लिए था। इससे उन्हें कोई अतिरिक्त लाभ नहीं होगा।
केस टाइटल- नित्यानंद स्वामी बनाम श्री ला श्री हरिहर